Wednesday, August 2, 2023

मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना...

सियासत नहीं, समाधान चाहिए


डॉ. संदीप सिंहमार

वरिष्ठ लेखक एवं स्वतंत्र टिप्पणीकार 

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मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना...अल्लामा इकबाल के मशहूर शेर की ये पंक्ति देश के वर्तमान हालातों पर बिल्कुल सटीक रही हैं । यह बात सौ फीसदी सही है कि दुनिया का कोई भी धर्म या मजहब आपस में लड़ाई-झगड़ा करना नहीं सिखाता। फिर भी यदि हम धर्म के नाम पर लड़ते झगड़ते हैं तो इसके जिम्मेदार हम खुद हैं। हमारे देश की राजनीति है व काफी हद तक आम जनता के आंख में कानों तक समाचार पहुंचाने वाले खबरची भी इसके जिम्मेदार हो सकते हैं। खास बात यह है कि जब भारत देश स्वतंत्र हुआ तो संविधान निर्मात्री सभा ने देश के पहले विधि मंत्री डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के नेतृत्व में एक संविधान तैयार किया। इस संविधान में भी भारत देश को धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र माना गया। इसका मतलब साफ तौर पर यह है कि भारत देश में एक नहीं बल्कि सभी धर्मों के लोगों का आदर सत्कार किया जाएगा। संत महापुरुषों ने भी ऐसा कहा है कि ना हिंदू बुरा है, ना मुसलमान बुरा है, बुराई पर जो उतर आए,वह इंसान बुरा है। इसलिए हम किसी भी एक धर्म को बुराई का प्रतीक नहीं मान सकते। पर यहां सबसे बड़ी सोचने और समझने की बात यह है कि जब जब देश में चुनाव होते हैं, तब सभी धर्मों को साथ लेकर चलने की बात होती है। लेकिन जब चुनाव समाप्त हो जाते हैं तो एक धर्म विशेष को उठाकर चलने की बात की जाती है। यही एक सबसे बड़ी वजह है कि धर्म के नाम पर लोगों के बीच में एक बड़ी खाई पैदा हो गई है। जिसे अब भर पाना सत्तासीन लोगों के लिए व आम लोगों के लिए भी आसान नहीं है। भारत ऋषि मुनियों की धरा रही है। किसी भी संत-महापुरुष, ऋषि-मुनि ने एक धर्म विशेष का समर्थन नहीं किया। सभी ने हमेशा सर्वधर्म संगम की बात कही। विश्व प्रसिद्ध महाकाव्य रामायण और महाभारत में भी किसी भी धर्म का विरोध नहीं किया गया बल्कि राक्षसी प्रवृत्ति के लोगों का विरोध दिखाया गया है। जब हमारे देश में सभी धर्मों का संगम देखने को मिलता हो तो ऐसी स्थिति में धर्म के नाम पर या जाति विशेष के नाम पर आखिर झगड़े होते क्यों? यह सबसे बड़ा सुलगता सवाल है? इसी सवाल के बीच आज हरियाणा का नुहं व देश का मणिपुर राज्य जल रहा है। सबसे बड़ी बात इस पूरे धार्मिक उन्माद को हमारे देश के राजनीतिक अपने-अपने परिदृश्य से देख रहे हैं। मामला चाहे मणिपुर का हो या हरियाणा का धर्म या जाति के नाम पर कहीं भी झगड़ा नहीं होना चाहिए। क्योंकि जब भी कभी ऐसा होता है तो नुकसान आखिर इंसानियत का व देश की अर्थव्यवस्था का होता है। मणिपुर की ही बात लेते हैं।  मणिपुर के मामले में जब 2 महीने बाद भी 2 जाति विशेष के लोगों के बीच दंगे थमते नजर नहीं आए तो देश की सर्वोच्च अदालत ने इस मामले में हस्तक्षेप करना पड़ा। यदि राजनीतिक इच्छाशक्ति हो तो चाहे मणिपुर हो या हरियाणा का मेवात इन त्वरित मुद्दों को शांत किया जा सकता है। देश में धर्म तो अनेक हैं, लेकिन जब भी कभी झगड़े होते हैं तो विशेषकर हिंदू और मुस्लिम संप्रदाय के बीच होते हैं। सिर्फ एक किसान आंदोलन के दौरान सिख समुदाय के लोग 13 महीने तक दिल्ली की सरहदों पर किसानों की मांगों को लेकर डटे रहे। तब भी देशवासियों को याद होगा देश के राजनेताओं ने इन लोगों को भी खालिस्तानी तक करार दे दिया था। लेकिन जैसे ही पंजाब के चुनाव नजदीक आए तो जो पंजाब व हरियाणा के किसान जो मांग कर रहे थे, उन मांगों को मान लिया गया। उस वक्त सैकड़ों किसानों की मौत हुई थी। देखी और समझी जाए तो इन मौतों का आखिर जिम्मेदार कौन है? जवाब एक ही होगा देश के राजनीतिक। चाहे वह कुर्सी पर आसीन हो या फिर विपक्ष में अपनी रोटियां सेक रहे हो। चाहे पक्ष हो या विपक्ष जब देश पर कोई ऐसी विपत्ति आती है तो उस वक्त दोनों पक्षों को ऐसे अहम मुद्दों पर एक साथ आकर समस्या का समाधान निकालने की और आगे बढ़ना चाहिए। लेकिन हमारे देश की राजनीति कुछ और कहती है। हमारे देश की राजनीति ऐसे वक्त में भी सियासत करती है। जन संचार के विभिन्न साधनों समाचार पत्रों व टीवी चैनलों पर आकर आम जनता को गुमराह करने का काम करते हैं। यदि सच्चाई आम जनता के सामने आ जाए और देश की आम जनता जिस दिन राजनीति के मायने को समझ समझ जाए तो उस दिन अपने आप परिवर्तन दिखने शुरू हो जाएंगे। पर जिस दिन ऐसा होगा उस दिन राजनीति को पूछेगा कौन? हरियाणा के नूंह में सोमवार से उपद्रवियों का जो नंगा नाच चल रहा है, इसके लिए सीधे तौर पर प्रदेश की खुफिया एजेंसियों को जिम्मेदार माना जाना चाहिए। क्योंकि जब भी कभी कोई इस प्रकार का कार्यक्रम, यात्रा या समागम होता है तो सबसे पहले प्रदेश की खुफिया एजेंसियां अपनी रिपोर्ट प्रदेश सरकार के गृह मंत्रालय को देती हैं। उसी आधार पर इस तरह की यात्राएं निकालने की इजाजत मिलती है। यह छोटी सी सरकारी चूक एक बड़े हादसे का कारण बन गई। आज मेवात जिला जल रहा है। जिधर देखो उधर आग ही आग दिखाई दे रही है। लोगों की आंखें क्रोध से लाल हैं। हालांकि मामले को बढ़ता देख हरियाणा के मुख्यमंत्री, हरियाणा के डीजीपी,हरियाणा के गृह मंत्री के साथ-साथ केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने भी इस मामले की रिपोर्ट तलब की है। इतना ही नहीं 20 पैरामिलिट्री कंपनियों को इन इलाकों में तैनात किया गया है। फिर भी गुस्से की आग थमने का नाम नहीं ले रही है। जब यह मामला शांत होता दिखाई नहीं दिया तो आखिर मेवात में कर्फ्यू तक लगाना पड़ा। इंटरनेट सेवाएं बंद करनी पड़ी। इससे पहले धारा 144 लगाई गई। मेवात के साथ-साथ गुरुग्राम, रेवाड़ी, सोनीपत फरीदाबाद व पलवल सहित छह जिलों में धारा 144 लगानी पड़ी। लेकिन इससे पहले भी स्थिति को संभाला जा सकता था और अब भी इस हालात को काबू किया जा सकता है। लेकिन हर बार बात को हल्के में लिया जाता है। पिछले दिनों की याद होगी जब माइनिंग के एक मामले में हरियाणा पुलिस विभाग के एक डीएसपी को एक डम्फर के नीचे कुचलकर मौत की नींद सुला दिया गया था। उस वक्त भी जिला यही था। तब हरियाणा सरकार ने साफ तौर पर कहा था कि इस इलाके में अब सुरक्षा व्यवस्था बढ़ाई जाएगी। पर उसके बाद इस जिले को अपने हाल पर छोड़ दिया गया। अब सोमवार से धर्म के नाम पर इस कदर आग भड़क रही है कि उसकी आग पड़ोसी राज्यों तक भी पहुंच गई है। राजस्थान के भरतपुर जिले की तहसीलों में भी इंटरनेट व्यवस्था बंद की गई है। गुरुग्राम की एक मस्जिद पर हमला बोला गया। यहां भी एक व्यक्ति की मौत हो चुकी है। इसके अलावा अब तक हरियाणा सरकार के 2 होमगार्डों सहित कुल 5 लोगों की जहां मौत हो चुकी है। वहीं सरकारी संपत्तियों सहित निजी संपत्तियों का भी जमकर नुकसान पहुंचा है। लोगों को अपनी जान बचाने के लिए सरकार से जिंदगी की भीख मांगनी पड़ रही है। ऐसी स्थिति देश में नहीं होनी चाहिए, क्योंकि हमारा देश एक धर्मनिरपेक्ष देश है। जिस देश में सर्वधर्म संगम की बात की जाती हो, ऐसे देश में इस तरह के उपद्रव का कोई स्थान नहीं है। उपद्रवियों की कोई जाति या धर्म भी नहीं होता। ऐसे लोगों को किसी धर्म विशेष का न कहकर उन्हें सिर्फ उपद्रवी की संज्ञा देकर कड़ी से कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए, ताकि भविष्य में कभी भी इस प्रकार के आगजनी की घटनाएं देखने को ना मिले। दोनों धर्मों के जिम्मेदारों को भी अब सामने आकर इस क्रोध की अग्नि को बुझाने का काम करना चाहिए।

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