Sunday, June 23, 2013

खराब मौसम के बाद फिर शुरू हुए बचाव कार्य

उत्तराखंडः खराब मौसम के बाद फिर शुरू हुए बचाव कार्य 
देहरादून, एजेंसी

बारिश से प्रभावित उत्तराखंड में रविवार को सुबह खराब मौसम के चलते राहत और बचाव अभियान कुछ समय तक स्थगित रहने के बाद फिर से युद्धस्तर स्तर पर शुरू हो गया है और ऊंचाइयों पर अभी भी फंसे 22 हजार तीर्थयात्रियों को निकालने के हरसंभव प्रयास किए जा रहे हैं।मौसम विभाग ने पूर्वानुमान व्यक्त किया है कि कल से क्षेत्र में हल्की बारिश शुरू हो सकती है। बारिश से सर्वाधिक प्रभावित रुद्रप्रयाग, चमोली और उत्तरकाशी जिलों से अब तक करीब 70 हजार तीर्थयात्रियों को निकाला जा चुका है जहां हिमालय क्षेत्र के पवित्र तीर्थस्थ्सल केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री स्थित हैं।
राहत कार्यों में 40 से ज्यादा हेलीकॉप्टर, सेना और अर्धसैनिक बलों के 10 हजार कर्मी जुटे हुए हैं। आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि देहरादून और जोशीमठ में हल्की बारिश की वजह से आज सुबह राहत कार्यों में विलम्ब हुआ, लेकिन करीब एक घंटे बाद जैसे ही मौसम खुला, राहत और बचावकर्मी फिर से अपने काम में जुट गए।
उन्होंने कहा कि हल्की से मध्यम बारिश होने के मौसम विभाग के पूर्वानुमान के मद्देनजर राहत प्रयास तेज कर दिए गए हैं। सूत्रों ने बताया कि कई टूटी सड़कों की मरम्मत कर दिए जाने से लोगों को निकालने की प्रक्रिया में तेजी आने की उम्मीद है। फंसे हुए बहुत से लोगों को अब सड़क मार्गों के जरिए भी सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया जा रहा है।
भारत तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी) के उप महानिरीक्षक अमित प्रसाद ने बताया कि फंसे तीर्थयात्रियों को निकालने के लिए बद्रीनाथ के नजदीक करीब 50 किलोमीटर के क्षेत्र में पगडंडी बनाई जा रही है।
प्रसाद ने कहा कि यह मौसम पर निर्भरता कम करने के लिए है, जो हवाई राहत अभियान को प्रभावित कर सकता है। ये सड़कें तीर्थस्थल के नजदीक माना क्षेत्र में बनाई जा रही हैं। आईटीबीपी के लगभग 200 जवान इस काम में लगे हैं। उन्होंने कहा कि रुद्रप्रयाग के जंगलचट्टी इलाके में करीब 500 तीर्थयात्री फंसे हो सकते हैं और उन्हें वहां से जल्द से जल्द निकालने के प्रयास किए जा रहे हैं।
केदारनाथ के नजदीक गौरी गांव और रामबड़ा में दो हेलीपैड बनाए गए हैं। आपदा प्रबंधन अधिकारियों ने यहां कहा कि केदारनाथ घाटी से सभी फंसे हुए तीर्थयात्रियों को निकाल दिया गया है, अब पूरा ध्यान बद्रीनाथ की तरफ केंद्रित हो गया है जहां करीब सात-आठ हजार तीर्थयात्री फंसे हैं। अधिकारियों ने कहा कि उन्हें पर्याप्त खाद्य सामग्री और दवाएं उपलब्ध कराई गई हैं।
इस अभूतपूर्व आपदा में मरने वालों की संख्या कल उस समय 673 हो गई, जब केदरानाथ क्षेत्र से 123 शव मिले। मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा का कहना है कि मरने वालों की संख्या एक हजार तक हो सकती है। बहुगुणा ने यह भी कहा कि केदारनाथ मंदिर को फिर से पहले जैसा स्वरूप देना सरकार की शीर्ष प्राथमिकता है और यह काम भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के परामर्श से किया जाएगा।
उन्होंने कहा कि विभिन्न स्थानों से मिले शवों का परंपरागत रीति रिवाज से अंतिम संस्कार किया जाएगा और मृतकों की आत्मा की शांति के लिए आपदा के 13वें दिन हरिद्वार में महायज्ञ किया जाएगा। यह सलाह संत समाज ने उस समय दी जब बहुगुणा और केंद्रीय गृहमंत्री सुशील कुमार शिन्दे कल हरिद्वार में उनसे मिले।
कल प्रभावित क्षेत्रों का हवाई सर्वेक्षण करने के बाद बहुगुणा से मिले गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने केदारनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण कर इसे देश के अत्याधुनिक मंदिरों में से एक बनाने में राज्य सरकार को हरसंभव मदद देने की पेशकश की।

डेरा सच्चा सौदा ने उतराखंड में भेजी राहत सामग्री

डेरा सच्चा सौदा ने उतराखंड में भेजी राहत सामग्री 

उतराखंड में राहत कार्यों के लिए पहुंचे डेरा अनुयायी

उतराखंड में राहत कार्यों के लिए पहुंचे डेरा अनुयायी 

250 रुपए में मिल रहा एक परांठा , चिप्स का पैकेट 100 रुपए का

फंसे पर्यटक अनुचित दामों पर भोजन खरीदने को विवश
250 रुपए में मिल रहा एक परांठा , चिप्स का पैकेट 100 रुपए का 
देहरादून, एजेंसी

उत्तराखंड में बाढ़ पीड़ितों की मदद के लिए जहां कुछ लोग पूरी कोशिश कर रहे हैं और उनकी रक्षा के लिए दुआएं की जा रही हैं, ऐसे में प्राकृतिक आपदा की मार झेल रहे लोगों के प्रति मानव उदासीनता की शर्मनाक खबरें भी सामने आ रही हैं।बाढ़ के कारण यहां फंसे लोगों को एक परांठे के लिए 250 रुपए और चिप्स के एक छोटे से पैकेट के लिए 100 रुपए देने पड़ रहे हैं। बाढ़ पीड़ित 56 वर्षीय देहरादून निवासी मनोहर लाल मौर्य ने कहा कि मुझे एक छोटी कटोरी चावल के लिए 40 रुपए देने पड़े। यहां कहीं भी भोजन उपलब्ध नहीं है।
उत्तर प्रदेश के अमित गुप्ता के संबंधी गौमुख में फंसे हुए हैं। अमित ने अपने संबंधियों से बात करने के बाद बताया कि उनके संबंधियों को चिप्स के दो छोटे पैकेट और पानी की दो बोतलों के लिए 400 रुपए देने पड़े।बाढ़ में फंसे अधिकतर लोगों के पास अधिक धन और सामान नहीं है और उनके लिए भोजन और पानी खरीदना बहुत मुश्किल हो गया है। बाढ़ में फंसे एक सिख पर्यटक ने कहा कि कुछ स्थानीय लोग उनकी बेबसी का फायदा उठा रहे हैं।
पर्यटक ने कहा कि टैक्सी चालक पहले जहां जाने के लिए 1000 रुपए लेते थे, अब वहां जाने के लिए 3000 से 4000 रुपए देने पड़ रहे हैं। हमारा पूरा धन खर्च हो गया है। हम असहाय हैं। रेलवे स्टेशन पर इंतजार कर रहे एक अन्य पर्यटक ने कहा कि दुकानदार 250 रुपए में एक परांठा और 200 रुपए में पानी की बोतल बेच रहे हैं। यह बहुत शर्मनाक बात है। सैकड़ों लोगों को कई दिनों से खाने के लिए कुछ नहीं मिल पाने की खबरों के बीच अधिकारी प्रभावित इलाकों में खाद्य सामग्री भेजने के प्रयास कर रहे हैं।

उत्तराखण्ड आपदा: सेना ने 18 हजार लोगों को बचाया

उत्तराखण्ड आपदा: सेना ने 18 हजार लोगों को बचाया
लखनऊ, एजेंसी

उत्तराखण्ड में कुदरत के कहर की विभीषिका झेल रहे जहां-तहां फंसे लोगों की जीने की आस पूरी रखने के लिये सेना जुटी है और अब तक दुर्गम तथा जंगलों से ढके—छुपे इलाकों में कई दिनों से भूख—प्यास से तड़प रहे करीब 18 हजार लोगों को बाहर निकाला गया है।उत्तराखण्ड में प्रलयंकारी आपदा के बाद राहत कार्य में जुटी सेना की मध्य कमान के प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल अनिल चैत ने शनिवार को यहां संवाददाताओं को बताया कि बेहद दुर्गम और खतरनाक इलाकों में सेना के जवान फंसे लोगों को ढूंढ रहे हैं और अब तक गंगोत्री, जोशीमठ, बद्रीनाथ, केदारनाथ, पिण्डारी ग्लेशियर समेत विभिन्न इलाकों से करीब 18 हजार लोगों को निकालकर सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया है।
उन्होंने बताया कि कई दिनों से भूख—प्यास से बेहाल लोगों को चिकित्सा सुविधा के लिये 19 मेडिकल केन्द्रों तथा आरामगृहों की व्यवस्था की गयी है।चैत ने बताया कि बादल फटने के कारण नदियों में उफान से मची तबाही से उत्तराखण्ड का करीब चालीस हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र प्रभावित है। चारों धामों को देखे तो करीब 400 किमी सड़क पर असर पड़ा है। इस चुनौतीपूर्ण आपदा से निपटने के लिये सेना के साढ़े आठ हजार जवान हर जगह मुस्तैदी से तैनात हैं।
उन्होंने बताया कि सेना के पास पर्याप्त संसाधन मौजूद हैं और वह तमाम भौगोलिक दिक्कतों के बीच कहीं पर छोटे—छोटे पुल बनाकर तो कहीं दूसरे जरियों से लोगों को बाहर निकाल रही है। गंगोत्री क्षेत्र में कल तक 500 लोगों को निकाला गया।
चैत ने बताया कि कल उन्होंने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा से आपदा राहत सम्बन्धी प्रयासों के सिलसिले में बात की थी।मध्य कमान के प्रमुख अनिल चैत ने बताया कि गंगोत्री में एक नया हेलीपैड स्थापित कर लिया है। गंगोत्री में कल तक करीब 500 लोग फंसे थे। उस जगह पर रास्ते बनाए जा रहे हैं और उम्मीद है कि गंगोत्री में फंसे लोगों को कल तक बाहर निकाल लिया जाएगा।चैत ने बताया कि सेना के जवानों ने कल से आज तक विभिन्न इलाकों में फंसे 728 लोगों की उनके परिजन से बात करायी है। जवानों ने मंगल चटटी के दुर्गम स्थानों पर पहुंचकर वहां फंसे करीब एक हजार लोगों को राहत मुहैया करायी गयी। वहां से लोगों को निकालकर गौरीकुंड लाना शुरू कर दिया गया है। इसी के साथ तलाश और पहुंच कार्य तेजी से किया जा रहा है।
उन्होंने कहा मैं भरोसा दिलाता हूं कि हम आपको निराश नहीं करेंगे। हम अपनी आंखों के सामने पड़ने वाले हर इंसान को बचाएंगे। चैत ने बताया कि बद्रीनाथ से होते हुए जोशीमठ और फिर एद्रप्रयाग की तरफ जाने वाले रास्ते पर अलकनंदा नदी पर बने पुल से कुछ लोग निकाले गये लेकिन वे पुल पानी के तेज बहाव में बह गये। आज फिर पुल बनाए गये है। आज रात तक गड़रिया और गोविंदधाम में फंसे लोगों को निकाल लिया जाएगा।
उन्होंने बताया कि पिण्डारी ग्लेशियर के पास 45 बच्चों का एक समूह फंसा था। सेना के जवानों ने उनसे सम्पर्क करके उन्हें सुरक्षित बचा लिया है। एक अन्य ग्रुप को तलाशा जा रहा है। चैत ने कहा कि उत्तराखण्ड में आये सैलाब का असर उत्तर प्रदेश के उत्तर पश्चिमी जिलों में बहने वाली नदियों पर पड़ रहा है सेना ने पीलीभीत जिले में बाढ़ से प्रभावित सबसे ज्यादा दो हजार 400 लोगों को निकालकर सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया है।

उत्तराखंडः बारिश बनी विलेन, अभी भी फंसे हैं 22,000 लोग

उत्तराखंडः बारिश बनी विलेन, अभी भी फंसे हैं 22,000 लोग
देहरादून, एजेंसी

उत्तराखंड में भारी बारिश, भूस्खलन और बाढ़ से मची तबाही में फंसे हुए लोगों को निकालने के लिए चल रहे राहत और बचाव कार्य में देहरादून में फिर से हो रही बारिश की वजह से दिक्कत आ रही है। बारिश के कारण यहां हेलीकॉप्टर भी उड़ान नहीं भर पा रहे हैं।उत्तराखंड में बाढ़ से सबसे अधिक प्रभावित केदारनाथ सहित तबाह हुए अन्य विभिन्न ऊपरी क्षेत्रों से 10 हजार से अधिक लोगों को निकाला गया है। केंद्र और राज्य सरकार की ओर से उपलब्ध कराई गई जानकारी के अनुसार वृहद पैमाने पर विभिन्न एजेंसियों द्वारा जारी राहत अभियान के तहत कुल मिलाकर 70 हजार लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया है। इसके अलावा अभी 22 हजार और लोगों को निकाला जाना बाकी है।
पहाड़ों से आयी पानी की तेज धार ने अपने पीछे मौत और तबाही का मंजर छोड़ा है। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने कहा कि मरने वालों संख्या एक हजार का आंकड़ा छू सकती है। उन्होंने कहा कि अंतिम मृतक संख्या तभी मिल सकेगी जब मलबा साफ होगा, जिसके नीचे कई शव दबे हो सकते हैं।
 केदारनाथ मंदिर परिसर से 123 शव मिले
अधिकारियों ने कहा कि केदारनाथ मंदिर परिसर से 123 शव मिले हैं जिससे आधिकारिक मृतक संख्या बढ़कर 680 हो गई है। सैन्य अधिकारियों ने कहा कि 83 शवों की पहचान कर ली गई है। आपदा क्षेत्र से लोगों को निकालने के लिए शांतिकाल में चलाये गए अब तक के सबसे बड़े अभियान को आगे बढ़ाते हुए कुल 61 हेलीकॉप्टर लगाए गए हैं जिसमें वायुसेना के 43 और सेना के 11 हेलीकॉप्टर शामिल हैं। विश्व के सबसे बड़े हेलीकॉप्टर रूस निर्मित एमआई-26 हेलीकाप्टरों को आज सेवा में लगाया गया। एमआई-26 हेलीकाप्टर में एक बार में डेढ़ सौ यात्री बैठ सकते हैं।

सूचना एवं प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी ने दिल्ली में संवाददाताओं को बताया कि सेना और आईटीबीपी ने चार-चार हजार लोगों को बचाया है जबकि फंसे अन्य लोगों को निकालने के लिए वायुसेना को लगाया गया है। उन्होंने कहा कि केंद्र और राज्य सरकार की एजेंसियां पूर्ण समन्वय के साथ कार्य कर रही हैं। उन्होंने यह बात गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे के उस बयान के कुछ घंटे बाद कही जिसमें उन्होंने कहा था कि ऐसा लगता है कि समन्वय में कुछ कमी है।
पूर्व गृह सचिव एवं राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के सदस्य वीके दुग्गल को राहत एवं बचाव अभियान में लगी विभिन्न एजेंसियों के कार्य का समन्वय करने के लिए नियुक्त किया गया है। राज्य सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि केदारनाथ मंदिर परिसर से 123 शव मिले हैं जहां बिखरे पड़े शवों की गिनती करने के लिए विशेषज्ञों का एक दल आज पहुंचा। अधिकारी ने अपना नाम गुप्त रखने की शर्त पर कहा कि अगले कुछ दिनों में और शव निकल सकते हैं क्योंकि क्षेत्र में पड़ा मलबा हटाया जा रहा है।

सुरक्षा बलों ने केदरानाथ धाम जाने के रास्ते में पड़ने वाले रामबाड़ा और जंगलीचट्टी में फंसे 1000 और तीर्थयात्रियों को देखा। तिवारी ने कहा कि चिंता का एक मुद्दा यह है कि जंगलचट्टी में 400 से 500 लोग फंसे हैं। केदारनाथ में 70 से 80 लोग अभी भी हैं। हेमकुंड साहिब में अभी भी 100 लोग जबकि बद्रीनाथ में 800 लोग फंसे हैं।


Saturday, June 22, 2013

उतराखंड में अपने परिजनों के बारे में जानने के लिए उत्तराखंड कंट्रोल रूम के नंबर (जिलावार):

उतराखंड में अपने परिजनों के बारे में जानने के लिए उत्तराखंड कंट्रोल रूम के नंबर (जिलावार):
पिथौड़ागढ़- 05964-228050, 226326, 09412079945
अलमोरा - 05962-237874, 09319979850
नैनीताल- 05942-231179, 09456714092
उधम सिंह नगर - 05944-250719, 250823, 09410376808
चमोली - 01372-251437, 251077, 09411352136
रुद्रप्रयाग - 01364-233727, 09412914875, 08859504022
उत्तरकाशी - 01374-226461, 09675082336, 09410350338
देहरादून- 0135-2726066, 09412964935
हरिद्वार - 01334-223999, 09837352202
टेहरी - 01376-233433, 09412076111
बागेश्वर - 05963-220197, 09411378137
चमपावत- 05965-230703, 09412347265
पोरी गढवाल - 01368- 221840, 08650922201
मध्य प्रदेश - 0755-2556422, 09926769808
आंध्र प्रदेश - 40234510

समन्वय की कमी से बचाव अभियान में बाधा: शिंदे

समन्वय की कमी से बचाव अभियान में बाधा: शिंदे
देहरादून, एजेंसी

उत्तराखंड में बचाव कार्य में लगी विभिन्न सरकारी एजेंसियों के बीच समन्वय की कमी की बात को स्वीकार करते हुए केंद्रीय गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने कहा कि राज्य में फंसे करीब 40,000 तीर्थयात्रियों को बाहर निकालने का काम युद्ध स्तर पर चल रहा है।भारी बारिश की वजह से आई इस त्रासदी के बाद जारी बचाव अभियानों की समीक्षा के लिए शनिवार को देहरादून पहुंचे शिंदे ने इसे राष्ट्रीय संकट करार दिया और फंसे हुए लोगों को बाहर निकालने के काम में लगी एजेंसियों के लिए तीन दिन की समयसीमा निर्धारित की है।उन्होंने कहा कि खराब मौसम की वजह से सुरक्षा बलों को बचाव अभियान में पेश आ रही दिक्कतों के बावजूद, फंसे हुए लोगों को निकालने का काम युद्धस्तर पर चलाया रहा है।
यहां सचिवालय में मुख्यमंत्री सहित दूसरे वरिष्ठ अधिकारियों के साथ हुई बैठक के बाद संवाददाताओं से बात करते हुए शिंदे ने कहा कि फंसे हुए लोगों को बचाने के लिए बद्रीनाथ से पंडुकेश्वर और केदारनाथ के बीच पैदल पुल बनाए जा रहे हैं।
जंगलछत्ती इलाके में फंसे लोगों को प्राथमिकता के आधार पर सुरक्षा बलों द्वारा  तत्काल राहत प्रदान की जा रही है। गृह मंत्री ने बचाव अभियान में लगी विभिन्न सरकारी एजेंसियों के बीच समन्वय की कमी की बात को स्वीकारते हुए कहा कि बचाव कार्यों के समन्वय और निगरानी के लिए आपदा प्रबंधन विशेषज्ञ वी के दुग्गल को यहां तैनात किया जाएगा।
उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार बचाव कार्यों पर निगाह बनाए हुए है, हालांकि उन्होंने साफ किया कि यह कोई मानव निर्मित त्रसदी नहीं, बल्कि एक प्राकृतिक आपदा है। शिंदे ने कहा कि कुछ जगहों से बरामद हुए शव इतने खराब हो चुके हैं कि उन्हें पहचान पाना तक मुश्किल है।
इसके साथ उन्होंने बताया कि मृतकों की पहचान के लिए उनका डीएनए संरक्षित किया जाएगा।

Friday, June 21, 2013

उतराखंड कंट्रोल रूम के कुछ नंबर

उतराखंड  कंट्रोल रूम के कुछ नंबर
हेमकुंड साहिब, बद्रीनाथ, चमोली: 01372251437, 01372253785, 9411352136; टिहरी गढ़वालः 01376233433, 9412076111; देहरादून, ऋषिकेशः 01352726066, 9760316350, 9412992363; पौड़ी गढ़वालः 01368221840; अल्मोड़ा: 05962237874, 9411378137; पिथौरागढ़ः 05964228050, 9412079945; हरिद्वार: 01334223999, 9837352202; बागेश्वर: 05963220197; नैनीताल: 05944250719, 9410376808

गंगा में तैरते मिले 40 शव, मृतक संख्या 207 हुई

गंगा में तैरते मिले 40 शव, मृतक संख्या 207 हुई
देहरादून, एजेंसी

बेपनाह खूबसूरती के लिए मशहूर उत्तराखंड प्रकृति की ऐसी विनाशलीला का दंश झेल रहा है, जिससे उबरने में महीनों लग जाएंगे। दुर्गम पहाड़ों के बीच चारों ओर मौत का सन्नाटा है और जिंदा बचे लोग मदद की गुहार लगा रहे हैं। सैंकड़ों लोग टनों मलबे के नीचे दबे हुए हैं।इस आपदा की भयावह तस्वीरें एक एक कर सामने आ रहीं हैं और आज हरिद्वार के पास गंगा में तैरते हुए 40 शवों को निकाला गया। राज्य में आई इस भयावह आपदा में अब तक मृतक संख्या 207 पहुंच गयी है। उधर बचावकर्मियों ने पर्वतीय राज्य के अनेक दुर्गम स्थानों में अब भी फंसे हुए 50,000 लोगों को निकालने के काम को और रफ्तार दे दी है।एक सप्ताह पहले राज्य में भारी मॉनसून के प्रकोप के बाद से सेना, वायु सेना और आईटीबीपी समेत अनेक एजेंसियों द्वारा युद्धस्तर पर शुरू किये गये अभियानों में करीब 34,000 लोगों को निकाला जा चुका है। वायु सेना ने राहत और बचाव के काम के लिए 13 और हेलीकॉप्टरों को लगाया है और इस तरह अभियान में कुल मिलाकर 43 हेलीकॉप्टर लगे हुए हैं।
वायु सेना ने एमआई—26 हेलीकॉप्टर को सीमा सड़क संगठन के लिए जरूरी ईंधन और भूस्खलन के बाद बंद हुए रास्तों को साफ करने के लिए जरूरी संसाधनों को पहुंचाने के लिए लगाया है। उत्तराखंड के प्रधान सचिव राकेश शर्मा ने कहा है कि मृतक संख्या काफी ज्यादा और स्तब्ध करने वाली हो सकती है। इससे साफ संकेत है कि हालात सामान्य होते होते यह आपदा बड़ी विनाशलीला कर चुकी होगी और भारी संख्या में लोगों को लील चुकी होगी।
फंसे हुए लोगों को पिछले कुछ दिन से कुछ भी खाने को नसीब नहीं होने की खबरों के बाद खाने के पैकेट पहुंचाने के प्रयास भी तेज कर दिये गये हैं।

उत्तराखंड में अभी भी फंसे हैं 50,000 तीर्थयात्री

उत्तराखंड में अभी भी फंसे हैं 50,000 तीर्थयात्री
नई दिल्ली, एजेंसी

बाढ़ प्रभावित उत्तराखंड के कई इलाकों में अभी भी लगभग 50,000 लोग फंसे हुए हैं। केंद्रीय गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने शुक्रवार को यह जानकारी दी।राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के सदस्यों के साथ बैठक के बाद शिंदे ने यहां संवाददाताओं से कहा, ‘‘हमने 34,000 से अधिक लोगों को निकाल लिया है, मगर तकरीबन 49,000से 50,000 तक लोग अभी भी वहां फंसे हुए हैं।’’शिंदे ने कहा, ‘‘मृतकों की संख्या अब तक 207 है, लेकिन मलबे में कुछ और लोग दबे हो सकते हैं।’’
उन्होंने कहा कि वह शनिवार को बाढ़ प्रभावित इलाकों का मुआयना करने जाएंगे।

Sunday, April 14, 2013

... रात भर जागती रही सड़कें



... रात भर जागती रही सड़कें
नोएडा। संदीप सिंहमार
डेरा सच्चा सौदा के 'हो पृथ्वी साफ, मिटे रोग अभिशाप के तहत नोएडा में चलाए गए सफाई महाअभियान में साध संगत देश के कौने-कौने से पहुंची। समय अवधि कम होने के कारण ऐसा लग रहा था कि साध संगत को परेशानियों से गुजरना पड़ेगा, लेकिन साध संगत पूरे उत्साह के साथ औद्योगिक क्षेत्र नोएडा को चमकाने के लिए पहुंच गई। राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, चंडीगढ़ व उतराखंड सहित देश के अन्य राज्यों से आने वाली साध संगत के कारण सड़कें रात भर जागती रही। सड़कों व राष्ट्रीय राजमार्गों से गुजरने वाले अन्य राहगीरों को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था  कि इस रात को सड़कों पर वाहनों की इतनी भीड़ क्यों है। पूछने से ही पता चला कि डेरा सच्चा सौदा की साध संगत अपने मुर्शिदे कामिल की पावन प्रेरणा से उतर प्रदेश की औद्योगिक नगरी नोएडा में सफाई महाअभियान चलाने के लिए जा रहे हैं। साध संगत को शुक्रवार देर सांय जैसे ही सफाई के इस महायज्ञ का पता चला तो उमंग भर कर नोएडा की तरफ चल दिए। सड़कों पर बारात जैसा दृश्य देखने को मिल रहा था। ऐलनावाद निवासी सेवादार रामभगत ने बताया कि वह अपने खेत में काम करने के बाद रात आठ बजे घर आया था, लेकिन सफाई महाअभियान की सूचना मिली तो उसकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा और वह कू्रजर गाड़ी में अपने परिवार को लेकर इस महायज्ञ में आहूति डालने के लिए रात को ही चल पड़ा। वहीं भठिण्डा पंजाब निवासी गुरजंट ने कहा कि सफाई अभियान का पता लगने पर उनका मन गदगद हो जाता है। ऐसे अभियानों में सफाई करने से पराए शहर भी अपने लगने लगे है। राजस्थान के ब्लॉक घेऊ से महाबीर इन्सां व हनुमानगढ़ से गगन इन्सां ने बताया कि जैसे किसी अपने की शादी का समाचार सुनकर मन चाव से भर जाता है उससे भी बढ़कर खुशी हमें सफाई महाअभियान की सूचना मिलने के बाद होती है।
 सभी रहे हैरान 
ढ़ाबे वाले, पैट्रोल पंप वाले व खेतों में काम करने वाले व गांव-शहर वाले
हैरान थे कि रात्री 12 बजे के बाद अकसर सुनसान दिखाई देने वाली सड़कों पर आज इतनी गहमा गहमी क्यों है? लोग उत्सुकतावश गाडिय़ों को रोक-रोककर पूछताछ करते नजर आए कि आज आखिर क्या होने वाला है। सच कहूं टीम के प्रतिनिधियों ने पाया कि चंडीगढ़ से दिल्ली, सरसा से दिल्ली, जयपुर से दिल्ली और लखनऊ से दिल्ली सभी राष्ट्रीय राजमार्ग सारी रात साध संगत के वाहन दौडऩे के कारण जागते दिखाई दिए। विशेष तौर पर पंजाब की साध संगत लग्जरी बसों में सवार होकर बस की छतों पर झाड़ू रखकर, राजस्थान की साध संगत छोटे वाहनों से तो हरियाणा की साध संगत कैन्टरों में सवार होकर नोएडा की ओर जाती नजर आई।

Monday, February 18, 2013

अतिथि हटाओ, पात्र लगाओ के नारों से गूंजा रोहतक


अतिथि हटाओ, पात्र लगाओ के नारों से गूंजा रोहतक  
न्याय महारैली में दहाड़े पात्र अध्यापक
5 मार्च तक अल्टीमेटम, 6 मार्च को होगा आमरण अनशन
प्रदेशाध्यक्ष सहित सैंकड़ो पात्र अध्यापक गिरफ्तार
रोहतक, 17 फरवरी।
रोहतक के राजीव गांधी खेल परिसर के सामने सेक्टर -6 में पात्र अध्यापक संघ हरियाणा द्वारा प्रदेश स्तरीय न्याय महारैली आयोजित की गई। रैली के मंच से पात्र अध्यापकों ने प्रदेश सरकार के खिलाफ जमकर दहाड़ लगाई। इसके बाद सभी पात्र अध्यापक रैली स्थल से उपायुक्त कार्यालय की तरफ  जुलूस की शक्ल में नारेबाजी करते हुए गोहाना बाईपास पर पहुंचे तो पुलिस ने बेरिकेटस लगाकर उन्हे रोक लिया। इसके बाद संघ के प्रदेशाध्यक्ष राजेन्द्र शर्मा ने पुलिस व प्रशासन से बेरिकेट्स खोलने की गुजारिश की। जब पुलिस ने बेरिकेट्स ने नहीं खोले तो पात्र अध्यापकों ने बेरिकेट्स हटाकर आगे बढऩे की कौशिश की। इस दौरान पात्र अध्यापकों की पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों के साथ झड़पें भी हुई। बाद में सैंकड़ो पात्र अध्यापकों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। इससे पहले  न्याय महारैली में  संघ के वक्ताओ ने अपनी जमकर भड़ास निकाली। रैली में उपस्थित पात्र अध्यापकों को संबोधित करते हुए राजेन्द्र शर्मा ने प्रदेश सरकार से मास्टर वर्ग के खाली पड़े 15 हजार पदों का विज्ञापन जल्द जारी करने, पीजीटी भर्ती में शार्ट लिस्टिंग से बाहर हुए हिन्दी, कॉमर्स इतिहास व राजनीतिक शास्त्र के उम्मीदवारों के साक्षात्कार लेने तथा सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार निर्धारित 322 दिनों में भर्ती प्रक्रिया पूरी कर अतिथियों अध्यापकों को तुरन्त प्रभाव से हटाने की मांग की।
 पात्र अध्यापकों के साथ हुआ अन्याय
संघ के महिला विंग की प्रदेशाध्यक्ष अर्चना सुहासिनी ने कहा कि हरियाणा सरकार एक तरफ तो राईट टू एजुकेशन एक्ट लागू होने का दम भर रही है वहीं दूसरी तरफ स्कूलों में 35 हजार अध्यापकों के पद खाली पड़े हैं। उन्होने बताया कि पीजीटी भर्ती में हिन्दी, कॉमर्स, राजनीति विज्ञाव व इतिहास विषयों के लिए शॉर्ट लिस्टिंग की प्रक्रिया अपनाकर पात्र अध्यापकों केसा थ अन्याय किया है। उन्होने कहा कि 4 वर्ष के अनुभव वाले शिक्षकों को शामिल करने से हजारों पात्र अध्यापक भर्ती प्रक्रिया से बाहर हो गए। इसे पात्र अध्यापक संघ किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं करेगा।
 5 मार्च 2013 तक का दिया  अल्टीमेटम
 इस मौके पर प्रदेश उपाध्यक्ष प्रेम अहलावत ने हरियाणा सरकार को 5 मार्च 2013 तक का अल्टीमेटम देते हुए कहा कि यदि सरकार ने इस समय तक पात्र अध्यापक संघ की मांगो को पूरा नहीं किया तो 6 मार्च से पंचकूला में शिक्षा सदन के सामने आमरण अनशन शुरू कर दिया जाएगा।  वहीं एक अप्रेल से पूरे प्रदेश में जन जागरण अभियान भी चलाया जाएगा। इस मौके पर संघ के महासचिव सुनील यादव, संगठन सचिव अनिल अहलावत, प्रदेश प्रवक्ता जसबीर गुज्जर ने भी रैली को संबोधित किया। 
ये रहे उपस्थित
  इस अवसर पर सहित नानक चंद, बीजेन्द्र गुज्जर, पवन रोड़, कृष्ण कश्यप, सरदार हरविन्द्र, संदीप चौधरी, मानसिंह, चरण सिंह, रविन्द्र शर्मा, यशपाल मलिक, नरेन्द्र दहिया, अनिल निमोठ, सुदीप राठी, नेरश शर्मा, पूनम हुड्डा, आशा दहिया, सुदेश, सुषमा शर्मा, तुलसी रानी के अलावा सभी जिलों के प्रधान के अलावा हजारों की संख्या में पात्र अध्यापक उपस्थित थे।

रैली स्थल पर पात्र अध्यापकों को गिरफ्तार करती पुलिस।

Sunday, February 10, 2013

अफजल गुरु को फांसी, तिहाड़ में दफनाया गया



अफजल गुरु को फांसी, तिहाड़ में दफनाया गया

नई दिल्ली।भारतीय संसद परहमले के  दोषी अफजल गुरु को फांसी पर लटका दिया गया है। उसे शनिवार 8 बजे फांसी पर लटकाया गया।  फांसी देने के बाद सुबह करीब 9 बजे उसे तिहाड़ जेल के अंदर ही इस्लामिक रीति-रिवाज के साथ दफना दिया गया है। अफजल को फांसी दिए जाने की सूचना शुक्रवार की शाम 5 बजे ही दे दी गई थी। अंतिम इच्छा के रूप में उसने कुरान की प्रति मांगी थी। अफजल को फांसी पर लटकाने के तुरंत बाद ही कश्मीर घाटी में कर्फ्यू लगा दिया गया। पूरे जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए हैं। दिल्ली और मुंबई में हाई अलर्ट घोषित कर दिया गया है।

केंद्रीय गृह सचिव आरके सिंह ने इस ख़बर की पुष्टि करते हुए कहा, "उसे फॉंसी दे दी गई है."

इसके बाद केंद्रीय गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने मीडिया को कहा, "तीन फरवरी को राष्ट्रपति महोदय की दया याचिका खारिज करने संबंधी फ़ाइल मिली. चार फरवरी को मैंने इस फ़ाइल पर हस्ताक्षर किए. इसके बाद की कार्यवाही के तहत नौ फरवरी को सुबह आठ बजे अफ़ज़ल गुरु को फॉंसी दिया जाना तय किया गया."
पहले से तय योजना के तहत सुबह आठ बजे अफ़ज़ल गुरू को दिल्ली की तिहाड़ जेल में फॉंसी पर लटकाया गया.आरके सिंह ने बताया कि ये कानूनी प्रक्रिया का अंतिम चरण था, जिसका पालन किया गया है.
जम्मू-कश्मीर के कई इलाकों में एहतिहात को तौर पर कर्फ्यू लगा दिया गया है. बताया जा रहा है कि इस मामले के बारे में जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुला को जानकारी पहले से थी.
पिछले साल 16 नवंबर 2012 को राष्ट्रपति ने अफ़ज़ल गुरु की दया याचिका को गृह मंत्रालय के वापस लौटा दिया था.
23 जनवरी को गृह मंत्रालय ने राष्ट्रपति को इस मामले में अपनी अनुशंसा भेजी.
आरके सिंह ने बताया कि तीन फरवरी को राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने उनकी दया याचिका को ख़ारिज़ कर दिया.
इसके बाद कैबिनेट समिति की बैठक में अफ़ज़ल गुरु को फॉंसी पर मुहर लगाई गई.
केंद्र सरकार के इस कदम को राजनीतिक तौर पर बेहद चतुराई भरा बताया जा रहा है. ससंद के बजट सत्र से ठीक पहले सरकार ने अफ़ज़ल गुरु को फॉंसी की सजा देकर विपक्ष के आरोपों की हवा निकाल दी है.

सरकार पर बढ रहा  दबाव
पिछले साल मुंबई में आतंकी हमले के दोषी अजमल कसाब को फॉंसी दिए जाने के बाद सरकार पर अफ़ज़ल को फॉंसी दिए जाने के लिए दबाव बढ़ रहा था.
भारत की संसद पर हुए आतंकी हमले में पांच चरमपंथी शामिल थे. इस हमले में नौ लोगों की मौत हुई थी, इनमें सात संसद की सुरक्षा में लगे पुलिसकर्मी शामिल थे जबकि पांचों चरमपंथी जवाबी कार्यवाही में मारे गए.;अफ़ज़ल गुरु पर इन चरमपंथियों को मदद मुहैया कराने का आरोप सही पाया गया थाअफ़ज़ल गुरु जैश-ए-मोहम्मद का चरमपंथी था. उसे भारत की सुप्रीम कोर्ट ने 2004 में फॉंसी की सजा सुनाई थी.
उसे 20 अक्टूबर 2006 में फॉंसी की सजा दी जानी थी लेकिन उसकी पत्नी ने राष्ट्रपति के सामने दया याचिका दायर की, जिसके चलते अफ़ज़ल गुरु की फॉंसी टलती रही.
 कब क्या हुआ जाने 
13 दिसंबर, 2001 - पांच चरमपंथियों ने संसद पर हमला किया. हमले में पांच चरमपंथियों के अलावा सात पुलिसकर्मी सहित नौ लोगों की मौत हुई.
15 दिसंबर, 2001 – दिल्ली पुलिस ने जैश-ए-मोहम्मद के चरमपंथी अफ़ज़ल गुरु को गिरफ़्तार किया. उनके साथ दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एसएआर गिलानी को भी गिरफ़्तार किया गया. इन दोनों के अलावा अफ़शान गुरु और शौकत हसन गुरु को गिरफ़्तार किया गया.
29 दिसंबर, 2001- अफ़ज़ल गुरु को दस दिनों के पुलिस रिमांड पर भेजा गया.
4 जून, 2002-अफ़ज़ल गुरु, एएसआर गिलानी, अफ़शान गुरु और शौकत हसन गुरु के ख़िलाफ़ मामले तय किए गए.
18 दिसंबर, 2002- अफ़ज़ल गुरु, एएसआर गिलानी औऱ शौकत हसन गुरु को फॉंसी की सजा दी गई. अफ़शान गुरु को रिहा किया गया.
30 अगस्त, 2003-जैश-ए- मोहम्मद के चरमपंथी गाजी बाबा, जो संसद पर हमले का मुख्य अभियुक्त को सीमा सुरक्षा बल के जवानों ने दस घंटे तक चले इनकाउंटर में श्रीनगर में मार गिराया.
29 अक्टूबर, 2003- मामले में एएसआर गिलानी बरी किए गए.
4 अगस्त, 2005- सुप्रीम कोर्ट ने अफ़ज़ल गुरु की फॉंसी की सजा बरकरार रखा. शौकत हसन गुरु की फॉंसी की सजा को 10 साल कड़ी कैद की सज़ा में तब्दील किया गया.
26 सितंबर, 2006- दिल्ली हाईकोर्ट ने अफ़ज़ल गुरु को फॉंसी देने का आदेश दिया.
3 अक्टूबर, 2006-अफ़ज़ल गुरु की पत्नी तबस्सुम गुरु ने राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के सामने दया याचिक दायर की.
12 जनवरी, 2007-सुप्रीम कोर्ट ने अफ़ज़ल गुरु की दया याचिका को खारिज़ किया.
16 नवंबर, 2012- राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अफ़ज़ल गुरु की दया याचिका गृह मंत्रालय को लौटाई.
30 दिसंबर, 2012-शौकत हसन गुरु को तिहाड़ जेल से रिहा किया गया.
10 दिसंबर, 2012- केंद्रीय गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने कहा कि अफ़ज़ल गुरु के मामले की पड़ताल करेंगे.
13 दिसंबर, 2012- भारतीय जनता पार्टी ने लोकसभा में प्रश्न काल के दौरान अफ़ज़ल गुरु को फॉंसी दिए जाने का मुद्दा उठाया.
23 जनवरी, 2013- राष्ट्रपति ने अफ़ज़ल गुरु की दया याचिका खारिज की गई.
03 फरवरी, 2013- गृह मंत्रालय को राष्ट्रपति द्वारा खारिज याचिका मिली.
09 फरवरी, 2013- अफ़ज़ल गुरु को नई दिल्ली को तिहाड़ जेल में सुबह 8 बजे फॉंसी पर लटकाया गया.
 इन्हे कब होगी फांसी


 अब इन्हे कब होगी फांसी ;ऐसे 15 अपराधी हैं जिन्हें फाँसी की सज़ा सुनाई जा चुकी है.परन्तु 
दया की उम्मीद है.लगी   हैं
सोनिया और संजीव
संपत्ति के लिए अपने ही परिवार के आठ लोगों को मौत के घाट उतारने के दोषी इन दोनों की फांसी पर साल 2007 में सुप्रीम कोर्ट ने मोहर लगाई थी. इसी साल उनकी दया याचिका को गृह मंत्रालय ने खारिज कर दिया था.
गुरमीत सिंह
अपने परिवार के 13 लोगों के कत्ल के दोषी गुरमीत सिंह को साल 2005 में सुप्रीम कोर्ट ने दोषी करार देते हुए फासी की सज़ा दी थी. साल 2009 में गृह मंत्रालय ने उनकी दया याचिका को खारिज किया था. अब उन्होंने राष्ट्रपति से दया की अपील की है.

धर्मपाल

राष्ट्रपति के पास इस समय जो दया याचिका के मामले हैं उनमें धर्मपाल का मामला सबसे पुराना है.
इन्होंने एक ही परिवार के पांच लोगों का उस समय कत्ल किया था जब वे बलात्कार के एक अन्य मामले में जमानत पर जेल से बाहर थे.

साइमन, गणप्रकाश, मदैया और बिलावांद्रा

इन चार लोगों को बारूदी सुरंग का विस्फोट करके कर्नाटक के 22 पुलिस कर्मियों को मारने का दोषी पाया गया था.
साल 2004 में सुप्रीम कोर्ट ने इन्हें फांसी की सज़ा सुनाई थी. लेकिन केद्रीय गृह मंत्रालय ने इनकी दया याचिका को पिछले ही साल मई के महीने में खारिज करने की सिफारिश के साथ राष्ट्रपति को भेजा था.

सुरेश और रामजी

संपत्ति के मामले में अपने पांच रिश्तेदारों को कत्ल करने के लिए यह दोनों साल 2001 में दोषी पाए गए थे. पिछले साल फरवरी में गृह मंत्रालय ने इनकी दया याचिका राष्ट्रपति को भेजी थी.

प्रवीण कुमार

एक परिवार के चार लोगों के कत्ल के दोषी प्रवीण को सुप्रीम कोर्ट ने साल 2003 में दोषी पाया था. पिछले साल गृह मंत्रालय ने इनकी दया याचिका खारिज कर राष्ट्रपति को भेजी थी.

सईबन्ना निंगप्पा नाटिकर

इन्होंने अपनी पत्नी और बेटी का कत्ल किया था और साल 2004 में सुप्रीम कोर्ट ने इन्हें दोषी पाया था. पिछले साल सितंबर से इनकी अर्ज़ी राष्टपति के पास है.

जफर अली

इन्होंने अपनी पत्नी के अलावा पांच बेटियों की हत्या की थी. साल 2004 में दोषी पाए गए अली की दया याचिका की फाइल राष्ट्रपति के पास नवंबर 2011 में पहुंची.

सुंदर सिंह

साल 2010 में अपने भाई के परिवार के पांच सदस्यों की हत्या के दोषी पाए जाने वाले सुंदर की दया याचिका इस साल फरवरी में गृह मंत्रालय ने खारिज कर के राष्ट्रपति के पास भेजी.

अतबीर

इन्होंने अपने सौतेले भाई, मां और बहन का कत्ल किया था और पिछले लगभग पांच महीने से ही इनकी दया याचिका राष्ट्रपति के पास पहुंची है.

ठुकराई गई याचिकाएँ

इसके अलावा पाँच लोगों की दया याचिका राष्ट्रपति ने खारिज कर दी है.इनमें दविंदर पाल सिंह भुल्लर सबसे प्रमुख हैं, जिन्हें 1993 में एक कार बम विस्फोट में नौ लोगों को मारने और कई लोगों को घायल करने का दोषी पाया गया था. भुल्लर खालिस्तानी चरमपंथी संगठन से जुड़े थे.सुप्रीम कोर्ट ने 2002 में भुल्लर को फाँसी की सजा पर मुहर लगाई थी और पिछले साल राष्ट्रपति ने इनकी क्षमा याचिका को ठुकरा दिया था.;टी. सुथेतिराजा उर्फ़ सांतन, श्रीहरण उर्फ़ मुरुगन और जी पेरारिवलन उर्फ अरिवू की क्षमा याचना भी राष्ट्रपति ने ठुकरा दी है. उन्हें राजीव गाँधी की हत्या के लिए दोषी पाया गया था.;महेंद्र नाथ दास उर्फ गोविंद दास की क्षमा याचना 2011 में खारिज कर दी गई थी. उन्होंने असम में गुहाटी के फैंसी बाज़ार में हरकांत दास का सिर काट डाला था और कटे सिर को लेकर ही पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था.

Monday, February 4, 2013

रानी लक्ष्मी बाई

रानी लक्ष्मी बाई
संत कबीर
चंद्रशेखर आजाद
शिवाजी
रविदास
महाराणा प्रताप
शेख फरीद
बुल्ले शाह
ईशा मसीह
खुदीराम बोस
करतार सिंह सराभा
धन्ना भगत
मीरा
भीलनी 

Wednesday, January 23, 2013

आओ नेता जी सुभाष चंद्र बोस को याद करें

सुभाषचन्द्र बोस  जो नेताजी नाम से भी जाने जाते हैं, भारत के स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी नेता थे। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान, अंग्रेज़ों के खिलाफ लड़ने के लिये, उन्होंने जापान के सहयोग से आज़ाद हिन्द फौज का गठन किया था। उनके द्वारा दिया गया जय हिन्द का नारा, भारत का राष्ट्रीय नारा बन गया हैं। 1944 में अमेरिकी पत्रकार लुई फिशर से बात करते हुए, महात्मा गाँधी ने नेताजी को देशभक्तों का देशभक्त कहा था। नेताजी का योगदान और प्रभाव इतना बडा था कि कहा जाता हैं कि अगर उस समय नेताजी भारत में उपस्थित रहते, तो शायद भारत एक संघ राष्ट्र बना रहता और भारत का विभाजन न होता। स्वयं गाँधीजी ने इस बात को स्वीकार किया था।
जन्म परिचय 

नेताजी सुभाषचन्द्र बोस का जन्म 23 जनवरी, 1897 को उड़ीसा के कटक शहर में हुआ था। उनके पिता का नाम जानकीनाथ बोस और माँ का नाम प्रभावती था। जानकीनाथ बोस कटक शहर के मशहूर वकील थे। पहले वे सरकारी वकील थे, मगर बाद में उन्होंने निजी प्रैक्टिस शुरू कर दी थी। उन्होंने कटक की महापालिका में लंबे समय तक काम किया था और वे बंगाल विधानसभा के सदस्य भी रहे थे। अंग्रेज़ सरकार ने उन्हें रायबहादुर का खिताब दिया था। प्रभावती देवी के पिता का नाम गंगानारायण दत्त था। दत्त परिवार को कोलकाता का एक कुलीन परिवार माना जाता था। प्रभावती और जानकीनाथ बोस की कुल मिलाकर 14 संतानें थी, जिसमें 6 बेटियाँ और 8 बेटे थे। सुभाषचंद्र उनकी नौवीं संतान और पाँचवें बेटे थे। अपने सभी भाइयों में से सुभाष को सबसे अधिक लगाव शरदचंद्र से था। शरदबाबू प्रभावती और जानकीनाथ के दूसरे बेटे थें। सुभाष उन्हें मेजदा कहते थें। शरदबाबू की पत्नी का नाम विभावती था।

स्वतंत्रता संग्राम में प्रवेश और कार्य

कोलकाता के स्वतंत्रता सेनानी, देशबंधु चित्तरंजन दास के कार्य से प्रेरित होकर, सुभाष दासबाबू के साथ काम करना चाहते थे। इंग्लैंड से उन्होंने दासबाबू को खत लिखकर, उनके साथ काम करने की इच्छा प्रकट की। रवींद्रनाथ ठाकुर की सलाह के अनुसार, भारत वापस आने पर वे सर्वप्रथम मुम्बई गये और महात्मा गाँधी से मिले। मुम्बई में गाँधीजी मणिभवन में निवास करते थे। वहाँ, 20 जुलाई, 1921 को महात्मा गाँधी और सुभाषचंद्र बोस के बीच पहली बार मुलाकात हुई। गाँधीजी ने भी उन्हें कोलकाता जाकर दासबाबू के साथ काम करने की सलाह दी। इसके बाद सुभाषबाबू कोलकाता आ गए और दासबाबू से मिले। दासबाबू उन्हें देखकर बहुत खुश हुए। उन दिनों गाँधीजी अंग्रेज़ सरकार के खिलाफ असहयोग आंदोलन चलाया था। दासबाबू इस आंदोलन का बंगाल में नेतृत्व कर रहे थे। उनके साथ सुभाषबाबू इस आंदोलन में सहभागी हो गए 1922 में दासबाबू ने कांग्रेस के अंतर्गत स्वराज पार्टी की स्थापना की। विधानसभा के अंदर से अंग्रेज़ सरकार का विरोध करने के लिए, कोलकाता महापालिका का चुनाव स्वराज पार्टी ने लड़कर जीता। स्वयं दासबाबू कोलकाता के महापौर बन गए। उन्होंने सुभाषबाबू को महापालिका का प्रमुख कार्यकारी अधिकारी बनाया। सुभाषबाबू ने अपने कार्यकाल में कोलकाता महापालिका का पूरा ढाँचा और काम करने का तरीका ही बदल डाला। कोलकाता के रास्तों के अंग्रेज़ी नाम बदलकर, उन्हें भारतीय नाम दिए गए। स्वतंत्रता संग्राम में प्राण न्यौछावर करनेवालों के परिवार के सदस्यों को महापालिका में नौकरी मिलने लगी।बहुत जल्द ही, सुभाषबाबू देश के एक महत्वपूर्ण युवा नेता बन गए। पंडित जवाहरलाल नेहरू के साथ सुभाषबाबू ने कांग्रेस के अंतर्गत युवकों की इंडिपेंडन्स लिग शुरू की। 1928 में जब साइमन कमीशन भारत आया, तब कांग्रेस ने उसे काले झंडे दिखाए। कोलकाता में सुभाषबाबू ने इस आंदोलन का नेतृत्व किया। साइमन कमीशन को जवाब देने के लिए, कांग्रेस ने भारत का भावी संविधान बनाने का काम आठ सदस्यीय आयोग को सौंपा। पंडित मोतीलाल नेहरू इस आयोग के अध्यक्ष और सुभाषबाबू उसके एक सदस्य थे। इस आयोग ने नेहरू रिपोर्ट पेश की। 1928 में कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन पंडित मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में कोलकाता में हुआ। इस अधिवेशन में सुभाषबाबू ने खाकी गणवेश धारण करके पंडित मोतीलाल नेहरू को सैन्य तरीके से सलामी दी। गाँधीजी उन दिनों पूर्ण स्वराज्य की मांग से सहमत नहीं थे। इस अधिवेशन में उन्होंने अंग्रेज़ सरकार से डोमिनियन स्टेटस माँगने की ठान ली थी। लेकिन सुभाषबाबू और पंडित जवाहरलाल नेहरू को पूर्ण स्वराज की मांग से पीछे हटना मंजूर नहीं था। अंत में यह तय किया गया कि अंग्रेज़ सरकार को डोमिनियन स्टेटस देने के लिए, एक साल का वक्त दिया जाए। अगर एक साल में अंग्रेज़ सरकार ने यह मॉंग पूरी नहीं की, तो कांग्रेस पूर्ण स्वराज की मांग करेगी। अंग्रेज़ सरकार ने यह मांग पूरी नहीं की। इसलिए 1930 में जब कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन पंडित जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में लाहौर में हुआ, तब ऐसा तय किया गया कि 26 जनवरी का दिन स्वतंत्रता दिन के रूप में मनाया जाएगा।26 जनवरी, 1931 के दिन कोलकाता में राष्ट्रध्वज फैलाकर सुभाषबाबू एक विशाल मोर्चा का नेतृत्व कर रहे थे। तब पुलिस ने उनपर लाठी चलायी और उन्हे घायल कर दिया। जब सुभाषबाबू जेल में थे, तब गाँधीजी ने अंग्रेज सरकार से समझोता किया और सब कैदीयों को रिहा किया गया। लेकिन अंग्रेज सरकार ने सरदार भगत सिंह जैसे क्रांतिकारकों को रिहा करने से इन्कार कर दिया। भगत सिंह की फॉंसी माफ कराने के लिए, गाँधीजी ने सरकार से बात की। सुभाषबाबू चाहते थे कि इस विषय पर गाँधीजी अंग्रेज सरकार के साथ किया गया समझोता तोड दे। लेकिन गाँधीजी अपनी ओर से दिया गया वचन तोडने को राजी नहीं थे। अंग्रेज सरकार अपने स्थान पर अडी रही और भगत सिंह और उनके साथियों को फॉंसी दी गयी। भगत सिंह को न बचा पाने पर, सुभाषबाबू गाँधीजी और कांग्रेस के तरिकों से बहुत नाराज हो गए।

कारावास


अपने सार्वजनिक जीवन में सुभाषबाबू को कुल ग्यारह बार कारावास हुआ। सबसे पहले उन्हें 16 जुलाई 1921 में छह महीने का कारावास हुआ।1925 में गोपिनाथ साहा नामक एक क्रांतिकारी कोलकाता के पुलिस अधिक्षक चार्लस टेगार्ट को मारना चाहता था। उसने गलती से अर्नेस्ट डे नामक एक व्यापारी को मार डाला। इसके लिए उसे फॉंसी की सजा दी गयी। गोपिनाथ को फॉंसी होने के बाद सुभाषबाबू जोर से रोये। उन्होने गोपिनाथ का शव मॉंगकर उसका अंत्यसंस्कार किया। इससे अंग्रेज़ सरकार ने यह निष्कर्ष किया कि सुभाषबाबू ज्वलंत क्रांतिकारकों से न ही संबंध रखते हैं, बल्कि वे ही उन क्रांतिकारकों का स्फूर्तीस्थान हैं। इसी बहाने अंग्रेज़ सरकार ने सुभाषबाबू को गिरफतार किया और बिना कोई मुकदमा चलाए, उन्हें अनिश्चित कालखंड के लिए म्यानमार के मंडाले कारागृह में बंदी बनाया।5 नवंबर, 1925 के दिन, देशबंधू चित्तरंजन दास कोलकाता में चल बसें। सुभाषबाबू ने उनकी मृत्यू की खबर मंडाले कारागृह में रेडियो पर सुनी।
मंडाले कारागृह में रहते समय सुभाषबाबू की तबियत बहुत खराब हो गयी। उन्हें तपेदिक हो गया। परंतू अंग्रेज़ सरकार ने फिर भी उन्हें रिहा करने से इन्कार कर दिया। सरकार ने उन्हें रिहा करने के लिए यह शर्त रखी की वे इलाज के लिए यूरोप चले जाए। लेकिन सरकार ने यह तो स्पष्ट नहीं किया था कि इलाज के बाद वे भारत कब लौट सकते हैं। इसलिए सुभाषबाबू ने यह शर्त स्वीकार नहीं की। आखिर में परिस्थिती इतनी कठिन हो गयी की शायद वे कारावास में ही मर जायेंगे। अंग्रेज़ सरकार यह खतरा भी नहीं उठाना चाहती थी, कि सुभाषबाबू की कारागृह में मृत्यू हो जाए। इसलिए सरकार ने उन्हे रिहा कर दिया। फिर सुभाषबाबू इलाज के लिए डलहौजी चले गए।1930 में सुभाषबाबू कारावास में थे। तब उन्हे कोलकाता के महापौर चुना गया। इसलिए सरकार उन्हे रिहा करने पर मजबूर हो गयी।1932 में सुभाषबाबू को फिर से कारावास हुआ। इस बार उन्हे अलमोडा जेल में रखा गया। अलमोडा जेल में उनकी तबियत फिर से नादुरूस्त हो गयी। वैद्यकीय सलाह पर सुभाषबाबू इस बार इलाज के लिए यूरोप जाने को राजी हो गए।

यूरोप प्रवास

1933 से 1936 तक सुभाषबाबू यूरोप में रहे।यूरोप में सुभाषबाबू ने अपनी सेहत का ख्याल रखते समय, अपना कार्य जारी रखा। वहाँ वे इटली के नेता मुसोलिनी से मिले, जिन्होंने उन्हें, भारत के स्वतंत्रता संग्राम में सहायता करने का वचन दिया। आयरलैंड के नेता डी वॅलेरा सुभाषबाबू के अच्छे दोस्त बन गए।
जब सुभाषबाबू यूरोप में थे, तब पंडित जवाहरलाल नेहरू की पत्नी कमला नेहरू का ऑस्ट्रिया में निधन हो गया। सुभाषबाबू ने वहाँ जाकर पंडित जवाहरलाल नेहरू को सांत्वना दिया।बाद में सुभाषबाबू यूरोप में विठ्ठल भाई पटेल से मिले। विठ्ठल भाई पटेल के साथ सुभाषबाबू ने पटेल-बोस विश्लेषण प्रसिद्ध किया, जिस में उन दोनों ने गाँधीजी के नेतृत्व की बहुत गहरी निंदा की। बाद में विठ्ठल भाई पटेल बीमार पड गए, तब सुभाषबाबू ने उनकी बहुत सेवा की। मगर विठ्ठल भाई पटेल का निधन हो गया।विठ्ठल भाई पटेल ने अपनी वसीयत में अपनी करोडों की संपत्ती सुभाषबाबू के नाम कर दी। मगर उनके निधन के पश्चात, उनके भाई सरदार वल्लभ भाई पटेल ने इस वसीयत को स्वीकार नहीं किया और उसपर अदालत में मुकदमा चलाया। यह मुकदमा जितकर, सरदार वल्लभ भाई पटेल ने वह संपत्ती, गाँधीजी के हरिजन सेवा कार्य को भेट दे दी।
1934 में सुभाषबाबू को उनके पिता मृत्त्यूशय्या पर होने की खबर मिली। इसलिए वे हवाई जहाज से कराची होकर कोलकाता लौटे। कराची में उन्हे पता चला की उनके पिता की मृत्त्यू हो चुकी थी। कोलकाता पहुँचतेही, अंग्रेज सरकार ने उन्हे गिरफ्तार कर दिया और कई दिन जेल में रखकर, वापस यूरोप भेज दिया।
1938 में कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन हरिपुरा में होने का तय हुआ था। इस अधिवेशन से पहले गाँधीजी ने कांग्रेस अध्यक्षपद के लिए सुभाषबाबू को चुना। यह कांग्रेस का ५१वा अधिवेशन था। इसलिए कांग्रेस अध्यक्ष सुभाषबाबू का स्वागत 51 बैलों ने खींचे हुए रथ में किया गया।इस अधिवेशन में सुभाषबाबू का अध्यक्षीय भाषण बहुत ही प्रभावी हुआ। किसी भी भारतीय राजकीय व्यक्ती ने शायद ही इतना प्रभावी भाषण कभी दिया हो।अपने अध्यक्षपद के कार्यकाल में सुभाषबाबू ने योजना आयोग की स्थापना की। पंडित जवाहरलाल नेहरू इस के अध्यक्ष थे। सुभाषबाबू ने बेंगलोर में मशहूर वैज्ञानिक सर विश्वेश्वरैय्या की अध्यक्षता में एक विज्ञान परिषद भी ली।1937 में जापान ने चीन पर आक्रमण किया। सुभाषबाबू की अध्यक्षता में कांग्रेस ने चिनी जनता की सहायता के लिए, डॉ द्वारकानाथ कोटणीस के नेतृत्व में वैद्यकीय पथक भेजने का निर्णय लिया। आगे चलकर जब सुभाषबाबू ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में जापान से सहयोग किया, तब कई लोग उन्हे जापान के हस्तक और फॅसिस्ट कहने लगे। मगर इस घटना से यह सिद्ध होता हैं कि सुभाषबाबू न तो जापान के हस्तक थे, न ही वे फॅसिस्ट विचारधारा से सहमत थे।

कांग्रेस के अध्यक्षपद से इस्तीफा

1938 में गाँधीजी ने कांग्रेस अध्यक्षपद के लिए सुभाषबाबू को चुना तो था, मगर गाँधीजी को सुभाषबाबू की कार्यपद्धती पसंद नहीं आयी। इसी दौरान युरोप में द्वितीय विश्वयुद्ध के बादल छा गए थे। सुभाषबाबू चाहते थे कि इंग्लैंड की इस कठिनाई का लाभ उठाकर, भारत का स्वतंत्रता संग्राम अधिक तीव्र किया जाए। उन्होने अपने अध्यक्षपद की कारकीर्द में इस तरफ कदम उठाना भी शुरू कर दिया था। गाँधीजी इस विचारधारा से सहमत नहीं थे।1939 में जब नया कांग्रेस अध्यक्ष चुनने का वक्त आया, तब सुभाषबाबू चाहते थे कि कोई ऐसी व्यक्ती अध्यक्ष बन जाए, जो इस मामले में किसी दबाव के सामने न झुके। ऐसी कोई दुसरी व्यक्ती सामने न आने पर, सुभाषबाबू ने खुद कांग्रेस अध्यक्ष बने रहना चाहा। लेकिन गाँधीजी अब उन्हे अध्यक्षपद से हटाना चाहते थे। गाँधीजी ने अध्यक्षपद के लिए पट्टाभी सितारमैय्या को चुना। कविवर्य रविंद्रनाथ ठाकूर ने गाँधीजी को खत लिखकर सुभाषबाबू को ही अध्यक्ष बनाने की विनंती की। प्रफुल्लचंद्र राय और मेघनाद सहा जैसे वैज्ञानिक भी सुभाषबाबू को फिर से अध्यक्ष के रूप में देखना चाहतें थे। लेकिन गाँधीजी ने इस मामले में किसी की बात नहीं मानी। कोई समझोता न हो पाने पर, बहुत सालो के बाद, कांग्रेस अध्यक्षपद के लिए चुनाव लडा गया।सब समझते थे कि जब महात्मा गाँधी ने पट्टाभी सितारमैय्या का साथ दिया हैं, तब वे चुनाव आसानी से जीत जाएंगे। लेकिन वास्तव में, सुभाषबाबू को चुनाव में 1580 मत मिल गए और पट्टाभी सितारमैय्या को 1377 मत मिलें। गाँधीजी के विरोध के बावजूद सुभाषबाबू 203 मतों से यह चुनाव जीत गए।मगर चुनाव के निकाल के साथ बात खत्म नहीं हुई। गाँधीजी ने पट्टाभी सितारमैय्या की हार को अपनी हार बताकर, अपने साथीयों से कह दिया कि अगर वें सुभाषबाबू के तरिकों से सहमत नहीं हैं, तो वें कांग्रेस से हट सकतें हैं। इसके बाद कांग्रेस कार्यकारिणी के 14 में से 12 सदस्यों ने इस्तीफा दे दिया। पंडित जवाहरलाल नेहरू तटस्थ रहें और अकेले शरदबाबू सुभाषबाबू के साथ बनें रहें।1939 का वार्षिक कांग्रेस अधिवेशन त्रिपुरी में हुआ। इस अधिवेशन के समय सुभाषबाबू तेज बुखार से इतने बीमार पड गए थे, कि उन्हे स्ट्रेचर पर लेटकर अधिवेशन में आना पडा। गाँधीजी इस अधिवेशन में उपस्थित नहीं रहे। गाँधीजी के साथीयों ने सुभाषबाबू से बिल्कुल सहकार्य नहीं दिया।अधिवेशन के बाद सुभाषबाबू ने समझोते के लिए बहुत कोशिश की। लेकिन गाँधीजी और उनके साथीयों ने उनकी एक न मानी। परिस्थिती ऐसी बन गयी कि सुभाषबाबू कुछ काम ही न कर पाए। आखिर में तंग आकर, 29 अप्रैल, 1939 को सुभाषबाबू ने कांग्रेस अध्यक्षपद से इस्तीफा दे दिया।

फॉरवर्ड ब्लॉक की स्थापना

3 मई, 1939 के दिन, सुभाषबाबू नें कांग्रेस के अंतर्गत फॉरवर्ड ब्लॉक के नाम से अपनी पार्टी की स्थापना की। कुछ दिन बाद, सुभाषबाबू को कांग्रेस से निकाला गया। बाद में फॉरवर्ड ब्लॉक अपने आप एक स्वतंत्र पार्टी बन गयी।द्वितीय विश्वयुद्ध शुरू होने से पहले से ही, फॉरवर्ड ब्लॉक ने स्वतंत्रता संग्राम अधिक तीव्र करने के लिए, जनजागृती शुरू की। इसलिए अंग्रेज सरकार ने सुभाषबाबू सहित फॉरवर्ड ब्लॉक के सभी मुख्य नेताओ को कैद कर दिया। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान सुभाषबाबू जेल में निष्क्रिय रहना नहीं चाहते थे। सरकार को उन्हे रिहा करने पर मजबूर करने के लिए सुभाषबाबू ने जेल में आमरण उपोषण शुरू कर दिया। तब सरकार ने उन्हे रिहा कर दिया। मगर अंग्रेज सरकार यह नहीं चाहती थी, कि सुभाषबाबू युद्ध के दौरान मुक्त रहें। इसलिए सरकार ने उन्हे उनके ही घर में नजरकैद कर के रखा।

नजरकैद से पलायन

नजरकैद से निकलने के लिए सुभाषबाबू ने एक योजना बनायी। 16 जनवरी, 1941 को वे पुलिस को चकमा देने के लिये एक पठान मोहम्मद जियाउद्दीन का भेष धरकर, अपने घर से भाग निकले। शरदबाबू के बडे बेटे शिशिर ने उन्हे अपनी गाडी से कोलकाता से दूर, गोमोह तक पहुँचाया। गोमोह रेल्वे स्टेशन से फ्रंटियर मेल पकडकर वे पेशावर पहुँचे। पेशावर में उन्हे फॉरवर्ड ब्लॉक के एक सहकारी, मियां अकबर शाह मिले। मियां अकबर शाह ने उनकी मुलाकात, कीर्ती किसान पार्टी के भगतराम तलवार से कर दी। भगतराम तलवार के साथ में, सुभाषबाबू पेशावर से अफ़्ग़ानिस्तान की राजधानी काबुल की ओर निकल पडे। इस सफर में भगतराम तलवार, रहमतखान नाम के पठान बने थे और सुभाषबाबू उनके गूंगे-बहरे चाचा बने थे। पहाडियों में पैदल चलते हुए उन्होने यह सफर पूरा किया।काबुल में सुभाषबाबू दो महिनों तक उत्तमचंद मल्होत्रा नामक एक भारतीय व्यापारी के घर में रहे। वहाँ उन्होने पहले रूसी दूतावास में प्रवेश पाना चाहा। इस में नाकामयाब रहने पर, उन्होने जर्मन और इटालियन दूतावासों में प्रवेश पाने की कोशिश की। इटालियन दूतावास में उनकी कोशिश सफल रही। जर्मन और इटालियन दूतावासों ने उनकी सहायता की। आखिर में ओर्लांदो मात्सुता नामक इटालियन व्यक्ति बनकर, सुभाषबाबू काबुल से रेल्वे से निकलकर रूस की राजधानी मॉस्को होकर जर्मनी की राजधानी बर्लिन पहुँचे।

नाजी जर्मनी में प्रवास एवं हिटलर से मुलाकात

बर्लिन में सुभाषबाबू सर्वप्रथम रिबेनट्रोप जैसे जर्मनी के अन्य नेताओ से मिले। उन्होने जर्मनी में भारतीय स्वतंत्रता संगठन और आजाद हिंद रेडिओ की स्थापना की। इसी दौरान सुभाषबाबू, नेताजी नाम से जाने जाने लगे। जर्मन सरकार के एक मंत्री एडॅम फॉन ट्रॉट सुभाषबाबू के अच्छे दोस्त बन गए।आखिर 29 मई, 1942 के दिन, सुभाषबाबू जर्मनी के सर्वोच्च नेता एडॉल्फ हिटलर से मिले। लेकिन हिटलर को भारत के विषय में विशेष रूची नहीं थी। उन्होने सुभाषबाबू को सहायता का कोई स्पष्ट वचन नहीं दिया।कई साल पहले हिटलर ने माईन काम्फ नामक अपना आत्मचरित्र लिखा था। इस किताब में उन्होने भारत और भारतीय लोगों की बुराई की थी। इस विषय पर सुभाषबाबू ने हिटलर से अपनी नाराजी व्यक्त की। हिटलर ने अपने किये पर माँफी माँगी और माईन काम्फ की अगली आवृत्ती से वह परिच्छेद निकालने का वचन दिया।अंत में, सुभाषबाबू को पता चला कि हिटलर और जर्मनी से उन्हे कुछ और नहीं मिलनेवाला हैं। इसलिए 8 मार्च, 1943 के दिन, जर्मनी के कील बंदर में, वे अपने साथी अबिद हसन सफरानी के साथ, एक जर्मन पनदुब्बी में बैठकर, पूर्व आशिया की तरफ निकल गए। यह जर्मन पनदुब्बी उन्हे हिंदी महासागर में मादागास्कर के किनारे तक लेकर आई। वहाँ वे दोनो खूँखार समुद्र में से तैरकर जापानी पनदुब्बी तक पहुँच गए। द्वितीय विश्वयुद्ध के काल में, किसी भी दो देशों की नौसेनाओ की पनदुब्बीयों के दौरान, नागरिको की यह एकमात्र बदली हुई थी। यह जापानी पनदुब्बी उन्हे इंडोनेशिया के पादांग बंदर तक लेकर आई।

पूर्व एशिया में अभियान

पूर्व एशिया पहुँचकर सुभाषबाबू ने सर्वप्रथम, वयोवृद्ध क्रांतिकारी रासबिहारी बोस से भारतीय स्वतंत्रता परिषद का नेतृत्व सँभाला। सिंगापुर के फरेर पार्क में रासबिहारी बोस ने भारतीय स्वतंत्रता परिषद का नेतृत्व सुभाषबाबू को सौंप दिया।जापान के प्रधानमंत्री जनरल हिदेकी तोजो ने, नेताजी के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर, उन्हे सहकार्य करने का आश्वासन दिया। कई दिन पश्चात, नेताजी ने जापान की संसद डायट के सामने भाषण किया।21 अक्तूबर, 1943 के दिन, नेताजी ने सिंगापुर में अर्जी-हुकुमत-ए-आजाद-हिंद (स्वाधीन भारत की अंतरिम सरकार) की स्थापना की। वे खुद इस सरकार के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और युद्धमंत्री बने। इस सरकार को कुल नौ देशों ने मान्यता दी। नेताजी आज़ाद हिन्द फौज के प्रधान सेनापति भी बन गए।
आज़ाद हिन्द फौज में जापानी सेना ने अंग्रेजों की फौज से पकडे हुए भारतीय युद्धबंदियोंको भर्ती किया गया। आज़ाद हिन्द फ़ौज में औरतो के लिए झाँसी की रानी रेजिमेंट भी बनायी गयी।पूर्व एशिया में नेताजी ने अनेक भाषण करके वहाँ स्थायिक भारतीय लोगों से आज़ाद हिन्द फौज में भरती होने का और उसे आर्थिक मदद करने का आवाहन किया। उन्होने अपने आवाहन में संदेश दिया तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हे आजादी दूँगा
द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान आज़ाद हिन्द फौज ने जापानी सेना के सहयोग से भारत पर आक्रमण किया। अपनी फौज को प्रेरित करने के लिए नेताजी ने चलो दिल्ली का नारा दिया। दोनो फौजो ने अंग्रेजों से अंदमान और निकोबार द्वीप जीत लिए। यह द्वीप अर्जी-हुकुमत-ए-आजाद-हिंद के अनुशासन में रहें। नेताजी ने इन द्वीपों का शहीद और स्वराज द्वीप ऐसा नामकरण किया। दोनो फौजो ने मिलकर इंफाल और कोहिमा पर आक्रमण किया। लेकिन बाद में अंग्रेजों का पगडा भारी पडा और दोनो फौजो को पिछे हटना पडा।
जब आज़ाद हिन्द फौज पिछे हट रही थी, तब जापानी सेना ने नेताजी के भाग जाने की व्यवस्था की। परंतु नेताजी ने झाँसी की रानी रेजिमेंट की लडकियों के साथ सैकडो मिल चलते जाना पसंद किया। इस प्रकार नेताजी ने सच्चे नेतृत्व का एक आदर्श ही बनाकर रखा।6 जुलाई, 1944 को आजाद हिंद रेडिओ पर अपने भाषण के माध्यम से गाँधीजी से बात करते हुए, नेताजी ने जापान से सहायता लेने का अपना कारण और अर्जी-हुकुमत-ए-आजाद-हिंद तथा आज़ाद हिन्द फौज की स्थापना के उद्येश्य के बारे में बताया। इस भाषण के दौरान, नेताजी ने गाँधीजी को राष्ट्रपिता बुलाकर अपनी जंग के लिए उनका आशिर्वाद माँगा । इस प्रकार, नेताजी ने गाँधीजी को सर्वप्रथम राष्ट्रपिता बुलाया।

लापता होना और मृत्यु की खबर;लकिन रहस्य बरकरार 

द्वितीय विश्वयुद्ध में जापान की हार के बाद, नेताजी को नया रास्ता ढूँढना जरूरी था। उन्होने रूस से सहायता माँगने का निश्चय किया था।18 अगस्त, 1945 को नेताजी हवाई जहाज से मांचुरिया की तरफ जा रहे थे। इस सफर के दौरान वे लापता हो गए। इस दिन के बाद वे कभी किसी को दिखाई नहीं दिये।23 अगस्त, 1945 को जापान की दोमेई खबर संस्था ने दुनिया को खबर दी, कि 18 अगस्त के दिन, नेताजी का हवाई जहाज ताइवान की भूमि पर दुर्घटनाग्रस्त हो गया था और उस दुर्घटना में बुरी तरह से घायल होकर नेताजी ने अस्पताल में अंतिम साँस ले ली थी।दुर्घटनाग्रस्त हवाई जहाज में नेताजी के साथ उनके सहकारी कर्नल हबिबूर रहमान थे। उन्होने नेताजी को बचाने का निश्च्हय किया, लेकिन वे कामयाब नहीं रहे। फिर नेताजी की अस्थियाँ जापान की राजधानी तोकियो में रेनकोजी नामक बौद्ध मंदिर में रखी गयी।स्वतंत्रता के पश्चात, भारत सरकार ने इस घटना की जाँच करने के लिए, 1956 और 1977 में दो बार एक आयोग को नियुक्त किया। दोनो बार यह नतिजा निकला की नेताजी उस विमान दुर्घटना में ही मारे गये थे। लेकिन जिस ताइवान की भूमि पर यह दुर्घटना होने की खबर थी, उस ताइवान देश की सरकार से तो, इन दोनो आयोगो ने बात ही नहीं की।1999 में मनोज कुमार मुखर्जी के नेतृत्व में तीसरा आयोग बनाया गया। 2005 में ताइवान सरकार ने मुखर्जी आयोग को बता दिया कि 1945 में ताइवान की भूमि पर कोई हवाई जहाज दुर्घटनाग्रस्त हुआ ही नहीं था। 2005 में मुखर्जी आयोग ने भारत सरकार को अपनी रिपोर्ट पेश की, जिस में उन्होने कहा, कि नेताजी की मृत्यु उस विमान दुर्घटना में होने का कोई सबूत नहीं हैं। लेकिन भारत सरकार ने मुखर्जी आयोग की रिपोर्ट को अस्वीकार कर दिया।
18 अगस्त, 1945 के दिन नेताजी कहाँ लापता हो गए और उनका आगे क्या हुआ, यह भारत के इतिहास का सबसे बडा अनुत्तरित रहस्य बन गया हैं।देश के अलग-अलग हिस्सों में आज भी नेताजी को देखने और मिलने का दावा करने वाले लोगों की कमी नहीं है। फैजाबाद के गुमनामी बाबा से लेकर छत्तीसगढ़ के रायगढ़ तक में नेताजी के होने को लेकर कई दावे हुये हैं लेकिन इनमें से सभी की प्रामाणिकता संदिग्ध है। छत्तीसगढ़ में तो सुभाष चंद्र बोस के होने को लेकर मामला राज्य सरकार तक गया। हालांकि राज्य सरकार ने इसे हस्तक्षेप योग्य नहीं मानते हुये मामले की फाइल बंद कर दी।
विकिपीडिया  से साभार 
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