Wednesday, July 25, 2012

The last date for confirmation of fee is 30-July-2012.

The last date for confirmation of fee is 30-July-2012.

HARYANA SCHOOL TEACHERS SELECTION BOARD
Note: Those candidates whose fees has not been confirmed as per list given on website http://recruitment.cdacmohali.in should contact their respective bank branch where they have deposited their fee for verification and confirmation. The last date for confirmation of fee is 30-July-2012.
After this date the unconfirmed fee application will be rejected.


NOTE:- All the candidate whose interview are scheduled to be held w.e.f 24/07/2012 for some categories of PGT can download their Admit card / call letters(Subject to confirmation of fee). The candidates are required to bring their original fee Challan slip at venue. 

http://www.recruitment.cdacmohali.in/

प्रणब ने ली राष्ट्रपति पद की शपथ

 

आतंकवाद से लड़ाई चौथा विश्व युद्ध है: प्रणब

 बुधवार, 25 जुलाई, 2012 
 
प्रणब मुखर्जी (फाइल फोटो)मुख्य न्यायाधीश एसएच कपाडिया प्रणब मुखस्जी को शपथ दिलाते हुए.भारत के नए राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा है कि ग़रीबी को दूर करना देश की सबसे बड़ी ज़रूरत है.राष्ट्रपति पद के शपथ ग्रहण के बाद अपने पहले भाषण में उन्होंने कहा कि आधुनिक भारत के शब्दकोश में ग़रीबी जैसे शब्द की कोई जगह नहीं होनी चाहिए.उन्होंने कहा कि ग़रीबी के अभिशाप को ख़त्म करना भारत का राष्ट्रीय मिशन होना चाहिए क्योंकि भूख से बड़ा कोई अपमान नहीं है.भारत के विकास में ग़रीबों की हिस्सेदारी की वकालत करते हुए प्रणब मुखर्जी ने कहा, ''हमें उनका उत्थान करना होगा जो सबसे ग़रीब हैं जिससे आधुनिक भारत के शब्दकोश से ग़रीबी शब्द मिट जाए.''
"तीसरा विश्व युद्ध शीत युद्ध था. आतंकवाद के ख़िलाफ़ लड़ाई चौथा विश्व युद्ध है. और यह विश्व युद्ध इसलिए है क्योंकि यह अपना शैतानी सिर दुनिया में कहीं भी उठा सकता है."
प्रणब मुखर्जी
उन्होंने कहा कि भारत का विकास वास्तविक लगे इसके लिए ज़रूरी है कि ग़रीब से ग़रीब व्यक्ति को यह महसूस हो कि वो उभरते भारत की कहानी का एक हिस्सा है.दुनिया भर में चरमपंथ के बढ़ते प्रभाव का ज़िक्र करते हुए प्रणब ने कहा कि अभी युद्ध का युग समाप्त नहीं हुआ है और चौथा युद्ध जारी है.उनका कहना था, ''तीसरा विश्व युद्ध शीत युद्ध था. आतंकवाद के ख़िलाफ़ लड़ाई चौथा विश्व युद्ध है. और यह विश्व युद्ध इसलिए है क्योंकि यह अपना शैतानी सिर दुनिया में कहीं भी उठा सकता है.''उन्होंने कहा कि हमें इतिहास से सीखना चाहिए लेकिन हमारा ध्यान भविष्य पर केंद्रित होना चाहिए.सर्व शिक्षा पर ज़ोर देते हुए प्रणब मुखर्जी ने कहा कि शिक्षा ही वो मंत्र है जिसके ज़रिए भारत में अगला स्वर्ण युग लाया जा सकता है.
प्रणब मुखर्जी
राजघाट पर महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि देते हुए प्रणब मुखर्जी

राष्ट्रपति चुने जाने पर लोगों का शुक्रिया अदा करते हुए उन्होंने कहा कि किसी भी जनसेवक के लिए गणतंत्र का प्रथम नागरिक चुने जाने से बड़ा कोई पुरस्कार नहीं हो सकता.

शपथ ग्रहण

इससे पहले बुधवार की सुबह लगभग 11:30 बजे भारत के मुख्य न्यायाधीश एसएच कपाडिया ने संसद के सेंट्रल हॉल में प्रणब मुखर्जी को 13वें राष्ट्रपति के रूप में शपथ दिलाई. शपथ ग्रहण के बाद उन्हें 21 तोपों की सलामी दी गई.उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार और संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की प्रमुख सोनिया गाँधी के अलावा तृणमूल कांग्रेस प्रमुख और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी शपथ ग्रहण समारोह में शामिल थीं.प्रणब मुखर्जी सुबह लगभग 10:45 बजे काली शेरवानी और उजला चुड़ीदार पजामा पहने हुए राष्ट्रपति भवन पहुंचे जहां मिलिट्री सचिव जनरल बख़्शी ने उनका स्वागत किया. वहां उन्होंने मौजूदा राष्ट्रपति प्रतिभा देवीसिंह पाटिल से मुलाक़ात की.
"किसी भी जनसेवक के लिए गणतंत्र का प्रथम नागरिक चुने जाने से बड़ा कोई पुरस्कार नहीं हो सकता."
प्रणब मुखर्जी, नए राष्ट्रपति
उसके बाद प्रणब मुखर्जी और प्रतिभा देवीसिंह पाटिल एक ही गाड़ी में संसद भवन गए. उनके साथ राष्ट्रपति के अंगरक्षकों का क़ाफ़िला भी था. संसद भवन पहुंचने पर मुख्य न्यायाधीश एसएच कपाडिया और उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी और लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार ने उनका स्वागत किया.इससे पहले बुधवार की सुबह शपथ ग्रहण से पहले प्रणब मुखर्जी राजघाट पहुंचे और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि दी.राष्ट्रपति चुनाव में प्रणब मुखर्जी यूपीए के उम्मीदवार थे और उन्होंने विपक्षी भारतीय जनता पार्टी समर्थित उम्मीदवार पीए संगमा को बड़े अंतर से हराया था. मगर अब उम्मीद की जाएगी कि राष्ट्रपति भवन पहुँचने के बाद मुखर्जी निष्पक्ष होकर काम करेंगे.वैसे उनकी लंबी राजनीतिक पृष्ठभूमि के चलते राजनीतिक प्रेक्षकों की उनके कार्यकाल में काफ़ी दिलचस्पी है. माना जा रहा है कि प्रणब मुखर्जी के पास जितना राजनीतिक और वैधानिक अनुभवहै उसके बाद वह केवल रबर स्टैंप राष्ट्रपति नहीं बन रहेंगे.
साभार बी बी सी हिन्दी 

Friday, July 20, 2012

बटुकेश्वर दत्त की पुण्य तिथि पर विशेष


बटुकेश्वर दत्त का जन्म 18 नवम्बर, 1910 को बंगाली कायस्थ परिवार में ग्राम-औरी, जिला-नानी बेदवान (बंगाल) में हुआ था। इनका बचपन अपने जन्म स्थान के अतिरिक्त बंगाल प्रांत के वर्धमान जिला अंतर्गत खण्डा और मौसु में बीता। इनकी स्नातक स्तरीय शिक्षा पी.पी.एन. कॉलेज कानपुर में सम्पन्न हुई। 1924 में कानपुर में इनकी भगत सिंह से भेंट हुई। इसके बाद इन्होंने हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के लिए कानपुर में कार्य करना प्रारंभ किया। इसी क्रम में बम बनाना भी सीखा।

8 अप्रैल, 1929 को दिल्ली स्थित केंद्रीय विधानसभा (वर्तमान का संसद भवन) में भगत सिंह के साथ बम विस्फोट कर ब्रिटिश राज्य की तानाशाही का विरोध किया। बम विस्फोट बिना किसी को नुकसान पहुंचाए सिर्फ पचांर्े के माध्यम से अपनी बात को प्रचारित करने के लिए किया गया था। उस दिन भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों को दबाने के लिए ब्रिटिश सरकार की ओर से पब्लिक सेफ्टी बिल और ट्रेड डिस्प्यूट बिल लाया गया था, जो इन लोगों के विरोध के कारण एक वोट से पारित नहीं हो पाया।

इस घटना के बाद बटुकेश्वर दत्त और भगत सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया। 12 जून, 1929 को इन दोनों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। सजा सुनाने के बाद इन लोगों को लाहौर फोर्ट जेल में डाल दिया गया। यहां पर भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त पर लाहौर षड़यंत्र केस चलाया गया। उल्लेखनीय है कि साइमन कमीशन के विरोध-प्रदर्शन करते हुए लाहौर में लाला लाजपत राय को अंग्रेजों के इशारे पर अंग्रेजी राज के सिपाहियों द्वारा इतना पीटा गया कि उनकी मृत्यु हो गई। इस मृत्यु का बदला अंग्रेजी राज के जिम्मेदार पुलिस अधिकारी को मारकर चुकाने का निर्णय क्रांतिकारियों द्वारा लिया गया था। इस कार्रवाई के परिणामस्वरूप लाहौर षड़यंत्र केस चला, जिसमें भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी की सजा दी गई थी। बटुकेश्वर दत्त को आजीवन कारावास काटने के लिए काला पानी जेल भेज दिया गया। जेल में ही उन्होंने 1933 और 1937 में ऐतिहासिक भूख हड़ताल की। सेल्यूलर जेल से 1937 में बांकीपुर केन्द्रीय कारागार, पटना में लाए गए और 1938 में रिहा कर दिए गए। काला पानी से गंभीर बीमारी लेकर लौटे दत्त फिर गिरफ्तार कर लिए गए और चार वर्षों के बाद 1945 में रिहा किए गए।

आजादी के बाद नवम्बर, 1947 में अंजली दत्त से शादी करने के बाद वे पटना में रहने लगे। बटुकेश्वर दत्त को अपना सदस्य बनाने का गौरव बिहार विधान परिषद ने 1963 में प्राप्त किया। श्री दत्त की मृत्यु 20 जुलाई, 1965 को नई दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में हुई। मृत्यु के बाद इनका दाह संस्कार इनके अन्य क्रांतिकारी साथियों-भगत सिंह, राजगुरु एवं सुखदेव की समाधि स्थल पंजाब के हुसैनी वाला में किया गया। इनकी एक पुत्री भारती बागची पटना में रहती हैं। बटुकेश्वर दत्त के विधान परिषद में सहयोगी रहे इन्द्र कुमार कहते हैं कि 'स्व. दत्त राजनैतिक महत्वाकांक्षा से दूर शांतचित एवं देश की खुशहाली के लिए हमेशा चिन्तित रहने वाले क्रांतिकारी थे।' मातृभूमि के लिए इस तरह का जज्बा रखने वाले नौजवानों का इतिहास भारतवर्ष के अलावा किसी अन्य देश के इतिहास में उपलब्ध नहीं है।
 
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