Friday, September 28, 2012

गिरह कुश का मकबरा


खण्डहर हो चुका है गिरह कुश का मकबरा
भाईचारे के प्रतीक के रूप में जाना जाता था

हिसार, संदीप सिंहमार
ऐतिहासिक नगर हांसी की प्राचीनकाल से ही अपनी एक अलग पहचान है। इस नगर ने अपने अस्तित्व में आने के बाद से ही अनेक उतार-चढ़ाव देखें हैं। इसको जहां संतों की धरती के नाम से जाना जाता है, वहीं इतिहास की दृष्टि से भी विशेष महत्व है। हांसी में दुर्ग, बड़सी गेट, नगर की चारदीवारी, लक्खी बंजारे का मकबरा, चारकुतुब जैसी अनेक ऐतिहासिक धरोहरें बनी हैं। इन धरोहरों के कारण हांसी आज भी ऐतिहासिक नगर के रूप में जाना जाता है। इस धरती पर कुछ इमारतें धरोहरों को तो इतिहास में भी स्थान मिला, लेकिन कुछ ऐसी भी है जिनको न तो इतिहास में स्थान मिला और न ही देश के पुरातात्विक विभाग ने इन्हें अपनाया। ऐसा ही एक मकबरा गृहकशां (गिरह कुश) मकबरा भी है। इस मकबरे के बारे में हांसी नगर में बसने वाले लोग भी कम ही जानते हैं। ऐतिहासिक चारकुतुब से सिसाय पुल की तरफ स्थित कयामसर झील के दक्षिण में एक गुम्बद देखी जा सकती है। इसी गुबंद को गिरह कुश के मकबरे के रूप में जाना जाता है। इतिहास की धरोहर हांसी के अनुसार यह गुम्बद गिरह कुश नाम के एक मुस्लिम फकीर की मजार पर बनी हुई हैं। गिरह कुश के जीवन के बारे में इतिहास में जानकारी का अभाव मिलता है। केवल स्थानीय लोगों ने जो पीढ़ी दर पीढ़ी सुना उसके अनुसार गिरह कुश मध्यकाल में हुए। ये आंखों से अंधे थे व आपसी भाईचारे के प्रतीक थे। इनके पास आने वालों से बिना किसी भेदभाव के व्यवहार किया जाता था। इनके बारे में यह भी कहा जाता है कि रस्सी में कैसी भी कठिन गांठ लगी हो इनके पास लाइ जाए तो ये उसे आसानी से खोल देते थे। किन्तु इसका अर्थ यह भी लगाया जाता है कि इनके सामने समाज घर-परिवार, लौकिक-अलौकिक से संबंधित कैसा भी प्रश्न या समस्या रखी जाती तो ये अपने विवेक व ज्ञान से उसका समाधान निकाल देते थे। इसलिए इनका नाम गिरह (गांठ) कुश (खोलना) गांठ खोलने वाला रखा गया। इनके देहान्त के बाद इनका मजार यहां बनवाया गया।
हांसी पर टिकी थी सबकी नजरें 
तजकरा-ए-हांसी के अनुसार महाराजा पृथ्वीराज चौहान के समय में हांसी के दुर्ग व शहर को नए सिरे से रंगत प्रदान की। हांसी के दुर्ग से इसके अधीन अन्य अस्सी किलो (दुर्गों) का नियंत्रण होता था। इस दुर्ग में उस समय के श्रेष्ठ शस्त्रों से लैस सुसंगठित राजपूत सैना तैयार रहती थी। महाराज पृथ्वीराज चौहान को हांसी दुर्ग पर नाज था। दुश्मन सदा इससे भय खाते थे। इस सब के बाद भी कुछ तुर्कों की जनर हांसी व दुर्ग को पाने के लिए टिकी रहती थी। ख्वाजा हसीम उलद्दीन अपने चौबीस हजार लड़ाकू सैनिकों को साथ लेकर हांसी दुर्ग पर आ धमका किंतु बहादुर राजपूत सेना से मुंह की खाकर अपने सैनिकों सहित मारा गया। इनकी कब्रें बड़सी दरवाजे के बाहर 1947 ई. से पहले जहां ताजिये दफन होते थे वहां बनी थी। यह स्थान अब आवासीय, व्यापारिक प्रतिष्ठान व कुछ भाग विद्यालय के खेल के मैदान के रूप में प्रयोग हो रहा है। ताजिये दफन का एक अन्य स्थान तोशाम पुल है, इसे करबला पुल भी कहा जाता है। इसके स्थान पर आजकल ट्रक यूनियन है। इसके बाद ख्वाजा आसमान गिरा, गृहकशां, शामा काजी जैसे करामाती औलिये (धर्म के पथ प्रदर्शक) अपने लश्कर को साथ लेकर हांसी की ओर बढ़े, किन्तु ये भी अपने अरमान पूरे न कर सके और राजपूत सेना के हाथों मारे गए। इनकी कब्रें क्यामसर तालाब के पश्चिम में थी। इन कब्रों को 1983 ई. तक देखा जा सकता था किंतु इसके बाद इन्हें तोड़कर खेत का रूप दे दिया गया।
नष्ट हो चुकी है मजार
गिरहकुश की मजार पर एक विशाल गुम्बद बनाया गया। यह स्थान क्यामसर झील के दक्षिण में स्थित हैं। किंतु ये गुम्बद अब खंडहर अवस्था में तबदील हो गए हैं वहीं मजार तो नष्ट हो चुकी हैं। सन् 1905 में हाजी अजीम उल्ला ने इस गुम्बद की मुरम्मत करवाई थी। 1913 में पीर फजल करीम साहिब माफीदार ने भी इसकी काया पलट की थी। गिरहकुश का मकबरा मुगल काल से पहले का बना हुआ प्रतीत होता है क्योंकि यह छोटी ईंटों से बना हुआ हैं। इसकी दीवारों पर चूना मिश्रित मिश्रण का लेप है। हांसी में अपने काल का यह एकमात्र मकबरा है। अब इस मकबरे की छत व दीवारों के नीचे का भाग खंडहर हो चुका है। 90 के दशक तक यह मकबरा सुनसान स्थान पर था और इसके चारों तरफ घने जंगल थे। अब इस स्थान के तीन तरफ आवास बन गए हैं। मकबरे के अंदर की मजार गायब है। इसके आसपास कुछ खानाबदोश जाति (ढंईया) के लोगों ने अपना आवास बना लिया है। मकबरे की छत में बड़े-बड़े छेद हो चुके हैं, दीवारों के नीचे का भाग भी जर्जर हो चुका है। मकबरे की खंडहर अवस्था की तरफ किसी का ध्यान भी नहीं हैं।
मकबरे के पास होती थी पंचायत 
बताया जाता है कि जहां गिरहकुश का मकबरा बना हुआ है उसी के पास ढंईया जाति के लोग किसी भी झगड़े के निपटारे के लिए पंचायत किया करते थे। यहां आयोजित की जाने वाली पंचायत में आपसी भाईचारे से बड़े से बड़े मामलों का निपटारा कर लिया जाता था। मकबरे के पास पंचायत के बारे में बताया जाता है कि मुस्लिम फकीर गिरहकुश स्वयं भाईचारे के प्रतीक के रूप में जाने जाते थे। इसी कारण सौहार्दपूर्ण तरीके से झगड़ों के निपटारे के लिए ही इसके समीप पंचायत की जाती थी। लेकिन समय बदलने के साथ-साथ लोगों के वे विचार भी बदल गए। अब यहां किसी भी प्रकार की पंचायत आयोजित नहीं की जाती है।
 

पात्र अध्यापकों का सपना टूट गया ,पात्रता परीक्षा पास करने के बाद भी रहेंगे साक्षात्कार से वंचित


शॉर्ट लिस्टिंग से खफा हुए पात्र अध्यापक
30 को रोहतक में बुलाई मीटिंग

हिसार। संदीप सिंहमार 
हरियाणा स्कूल शिक्षक भर्ती बोर्ड द्वारा पीजीटी भर्ती प्रक्रिया में हिन्दी, राजनीतिक विज्ञान, इतिहास व कॉमर्स विषयों के पदों के लिए की गई शॉर्ट लिस्टिंग से खफा पात्र अध्यापक संघ ने रविवार 30 सितंबर को रोहतक की छोटूराम धर्मशाला में मीटिंग बुलाई है। इस मीटिंग में आगामी रणनीति तैयार की जाएगी। शॉर्ट लिस्टिंग किए जाने से पात्र अध्यापकों में भारी रोष है। संघ के प्रदेशाध्यक्ष राजेन्द्र शर्मा ने कहा कि भर्ती प्रक्रिया में बोर्ड ने शॉर्ट लिस्टिंग का जो पैमाना अपनाया है, वह ठीक नहीं है। इससे हजारों की संख्या में बेरोजगारों का सपना लटक गया है। उन्होने कहा कि यदि बोर्ड द्वारा सक्रीनिंग या टैस्ट लेकर छंटनी की जाती तो यह बेहतर तरीका हो सकता था। इससे सभी अभ्यर्थियों को बराबर का मौका मिल सकता था। शर्मा ने कहा कि शीघ्र ही शार्ट लिस्टिंग के मामले में मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा व भर्ती बोर्ड के चेयरमैन से मिलकर समस्या के समाधान की अपील की जाएगी। फिर भी यदि समस्या का समाधान ना हुआ तो प्रदेश स्तरीय आंदोलन भी किया जा सकता है। पात्र अध्यापक संघ की महिला विंग की अध्यक्षा अर्चना सुहासिनी ने कहा कि शॉर्ट लिस्टिंग करके पात्रता परीक्षा पास करने वाले बेरोजगार अध्यापकों के साथ धोखा किया गया है। उन्होने कहा कि भर्ती बोर्ड द्वारा पीजीटी भर्ती प्रक्रिया में तरह-तरह की नीतियां बनाई जा रही है। सुहासिनी ने कहा कि अंगे्रजी विषय की तरह हिन्दी, राजनीति विज्ञान, इतिहास व कॉमर्स के सभी अभ्यार्थियों को साक्षात्कार के लिए बुलाया जाना चाहिए। सुहासिनी ने कहा कि पीजीटी भर्ती प्रक्रिया में सभी पात्र अध्यापकों को मौका मिलना चाहिए। उन्होने कहा कि बोर्ड के इस निर्णय से गलत तरीके से बाहर के विश्वविद्यालयों से डिग्री हासिल करने वाले उम्मीदवारों को मौका मिलेगा जोकि पात्र अध्यापकों के साथ सरासर अन्याय है।

शॉर्ट लिस्टिंग से खफा हुए पात्र अध्यापक 30 को रोहतक में बुलाई मीटिंग




 हिसार/चंडीगढ़
हरियाणा स्कूल शिक्षक भर्ती बोर्ड द्वारा पीजीटी भर्ती प्रक्रिया में हिन्दी, राजनीतिक विज्ञान, इतिहास व कॉमर्स विषयों के पदों के लिए की गई शॉर्ट लिस्टिंग से खफा पात्र अध्यापक संघ ने रविवार 30 सितंबर को रोहतक की छोटूराम धर्मशाला में मीटिंग बुलाई है। इस मीटिंग में आगामी रणनीति तैयार की जाएगी। शॉर्ट लिस्टिंग किए जाने से पात्र अध्यापकों में भारी रोष है। संघ के प्रदेशाध्यक्ष राजेन्द्र शर्मा ने कहा कि भर्ती प्रक्रिया में बोर्ड ने शॉर्ट लिस्टिंग का जो पैमाना अपनाया है, वह ठीक नहीं है। इससे हजारों की संख्या में बेरोजगारों का सपना लटक गया है। उन्होने कहा कि यदि बोर्ड द्वारा सक्रीनिंग या टैस्ट लेकर छंटनी की जाती तो यह बेहतर तरीका हो सकता था। इससे सभी अभ्यर्थियों को बराबर का मौका मिल सकता था। शर्मा ने कहा कि शीघ्र ही शार्ट लिस्टिंग के मामले में मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा व भर्ती बोर्ड के चेयरमैन से मिलकर समस्या के समाधान की अपील की जाएगी। फिर भी यदि समस्या का समाधान ना हुआ तो प्रदेश स्तरीय आंदोलन भी किया जा सकता है। पात्र अध्यापक संघ की महिला विंग की अध्यक्षा अर्चना सुहासिनी ने कहा कि शॉर्ट लिस्टिंग करके पात्रता परीक्षा पास करने वाले बेरोजगार अध्यापकों के साथ धोखा किया गया है। उन्होने कहा कि भर्ती बोर्ड द्वारा पीजीटी भर्ती प्रक्रिया में तरह-तरह की नीतियां बनाई जा रही है। सुहासिनी ने कहा कि अंगे्रजी विषय की तरह हिन्दी, राजनीति विज्ञान, इतिहास व कॉमर्स के सभी अभ्यार्थियों को साक्षात्कार के लिए बुलाया जाना चाहिए। सुहासिनी ने कहा कि पीजीटी भर्ती प्रक्रिया में सभी पात्र अध्यापकों को मौका मिलना चाहिए। उन्होने कहा कि बोर्ड के इस निर्णय से गलत तरीके से बाहर के विश्वविद्यालयों से डिग्री हासिल करने वाले उम्मीदवारों को मौका मिलेगा जोकि पात्र अध्यापकों के साथ सरासर अन्याय है।

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