Sunday, October 28, 2012

जो माँ अपंनी कोख में बेटी को मरवाती है ,वह माँ नहीं डायन होती है


र्स्वग  से लडकी ने अपनी माँ को लिखा पत्र...!!
आप मेरे जैसे हो?ग्रुप से


मेरी प्यारी मम्मी...

तु अब दवाखाने से घर आ गई होगी..?

तेरी तबियत की मुझे चिँता होती है..

अब आपकी तबियत अच्छी होगी ..?

प्यारी मम्मी तेरी कोख से मेरा अंश रहा

तब से मुझे वात्सल्य से उभरता माँका चेहरा देखना है...

मम्मी मेरे गाल तेरे एक प्यार भरी चुम्मी के लिए तरसते हैं

मुझे मेरी जननी के हाथ मेँ फूल होकर खिलना था...

मुझे मेरी मम्मी के हाथ से मार खाकर रोना था.....

मम्मी, मुझे तेरे आगंन मेँ पाँव रखना था

और अपना घर खिल खिलाहट से भरना था....

और मम्मी,
मुझे तेरी लोरी सुनते-सुनते सोने कि तरस थी.....

कुदरत ने मुझे तेरा लडका बनाया होता तो कोई प्रोब्लम नही होती..

मम्मी,
लेकिन तुझे कुदरत का न्याय मंजुर नही था.

तुझे तो लडके कि भुख थी.

तुझे तो केवल मात्र संतान से गोद नही भरनी थी..

तेरे तो भविष्य मेँ कमाऊ लड़के कि सपंति से घर भर देना था..

मम्मी, तुझे तो मिलकत का वारिस उगाना था..

और बुढापे मेँ माँ बेटा-बहु का प्रेम,

सेवा और दु:ख मेँ आँसु पोंछने वाले का सहारा चाहिए था.

तुझे मेरी काली भाषा सुनना पसंद नही थी..

तेरे दिल मेँ कोई प्रेम नही आया?

इसिलिए मम्मी
तूने मुझ से
छुटकारा पा लिया...

मम्मी, जब डाँक्टर कैँची से
फूल जैसी बेटी को कुचल रहा था..

मेरे शरीर के एक के बाद एक अगं काटकर अलग रख रहा था..

मुझे लग रहा था कि अब माँ को दया आयेगी लेकिन
तुझे दया नही आयी...

तुझे तो दया नही आयी मम्मी!
लेकिन
भगवान को तो दया आयी.

डाक्टर के तेज धार कि कैँची से मेरा कलेजा फट गया
और
भगवान ने मुझे अपने पास बुला लिया.....

मम्मी, तु खुद लडकी है,

तो यह बात कैसे भुल गई ?
चलो वो तो सब ठीक है,
लेकिन
तेरे पेट मे ही मेरी कब्र बना दी
तुझे जरा भी दया नहि आयी ?

चिँता मत कर मम्मी,
अब जब मेरा भाई जन्म ले तब

इस लड़की की याद दिलाना...
अरे हाँ ! रक्षाबंधन के दिन मुझे याद कर के भाई को मेरा आशिर्वाद देना...!!

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