लुप्त होने की कगार पर है पशु पक्षियों की दुलर्भ प्रजातियां
हिसार। संदीप सिंहमार
आज के इस वैज्ञानिक युग में एक तरफ जहां चिकित्सकीय प्रणाली सुदृढ़ होने के कारण मानव जीवन खुशहाल हुआ है, वहीं दूसरी तरफ पशु पक्षियों पर इसके दुस्प्रभाव भी पड़े हैं। पशु पक्षियों को बीमारियों से बचाने के लिए दवाओं का बेरोक टोक प्रयोग होने से पूरे विश्व भर में पशु पक्षियों की संख्या लगातार घटती जा रही है। हर वर्ष 4 अक्तूबर को पूरी दुनिया में 'वल्र्ड एनिमल डेÓ भी मना लिया जाता है, लेकिन दुधारू पशुओं को छोड़कर अन्य पशु पक्षियों की घटती संख्या की ओर किसी का भी ध्यान नहीं है। पक्षियों की कई प्रजातियां तो लुप्त होने के कगार पर पहुंच चुकी है। प्रात: काल जहां चिडिय़ा की चहचाहट सुनाई देती थी, वो आज गायब है। मरे हुए पशुओं का मांस खाने वाले गिद्ध भी कहीं दिखाई नहीं दे रहे हैं। पशु विज्ञानी पक्षियों की प्रजाति लुप्त होने या कम होने का कारण स्वयं मानव को ही मार रहे हैं। खेतों में अधिक उत्पादन के लिए किसान कीटनाशकों का उपयोग करते हैं। दूसरी तरफ पशुओं को बीमारियों से बचाने के लिए दवाओं का प्रयोग किया जाता है। कीटनाशक युक्त फसलों से पैदा हुआ अनाज खाने व पशुओं का मांस खाने से पक्षियों की संख्या कम हो गई है।
क्या कहते हैं वैज्ञानिक-
विश्व में पशु पक्षियों की कम होती संख्या के संबंध में लाला लाजपतराय पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान विश्वविद्यालय के वरिष्ठ पशु शल्य चिकित्सा वैज्ञानिक डॉ. सुखबीर ने बताया कि फसलों में कीटनाशकों के प्रयोग के कारण पक्षियों की संख्या कम होती जा रही है। इसके अलावा पशुओं के इलाज के लिए अकसर चिकित्सक डाईक्लोफेनिक सॉल्ट का प्रयोग करते हैं ऐसे पशुओं के मरने के बाद इनका मांस खाने वाले पक्षी मर जाते हैं। उन्होने बताया कि गिद्ध इसका जीता जागता उदाहरण है।
यहां दिखाई देता है पक्षियों के प्रति प्रेम
इतना व्यस्तम जीवन होने के बाद भी जिले के गांव किरतान के आजाद हिन्द युवा क्लब के सदस्यों ने प्रधान कपूर सिंह के नेतृत्व में पशु पक्षियों को बचाए रखने की मुहिम चलाई है। क्लब के सदस्यों ने गांव के पेड़ों पर सैंकड़ो की संख्या में लकड़ी व मिट्टी के घोंसले लगाकर इस अभियान को आगे बढ़ाया है। वीरवार को क्लब के सदस्यों ने गांव के प्राथमिक स्कूल के प्रांगण में वल्र्ड एनिमल डे मनाकर पशु-पक्षियों के प्रति छात्रों को जागरूक किया। प्रधान कपूर सिंह ने बताया कि वर्ष 2007 में गांव किरतान के पास कबीर सिंह नहर के पुल पर उन्हे एक मोर दिखाई दिया। उन्होने उस मोर को दाने डाले। यहीं से उनके मन में पक्षियों के प्रति प्रेम जागृत हो गया। कपूर सिंह ने बताया कि कुछ दिनों बाद एक मोरनी भी वहां आ गई उनको लगातार दाना डालने से मोर मोरनी यहीं पर रहने लगे। प्रजनन बढ़ता गया और अथक प्रयासों से अब यहां इसी पुल के आसपास करीब 30 मोर मोरनी रहते हैं।
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