Monday, November 13, 2023

अगरबत्ती बैन तो बीड़ी-सिगरेट पर छूट क्यों?

 
अगरबत्ती बैन तो बीड़ी-सिगरेट पर छूट क्यों?

डॉ संदीप सिंहमार।
व्यंग्य लेखक एवं स्वतंत्र टिप्पणीकार।
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दुनिया के एक बड़े क्षेत्र में हमने फिर से बाजी मार ली है। इसके लिए हम किसी को बधाई तो नहीं दे सकते, लेकिन सोचने के लिए मजबूर जरूर हो सकते हैं। अब जिस क्षेत्र में हम पूरे विश्व भर में अव्वल रहे हैं, वह क्षेत्र है वायुमंडलीय प्रदूषण। बदलते मौसम के कारण बनी परिस्थितियों हो या फिर खुद मानव द्वारा ऐसी स्थिति बना दी गई हो। पर आज हम प्रदूषण के मामले में नंबर वन बन गए हैं। दिवाली के एक दिन बाद दिल्ली में एयर क्वालिटी इंडेक्स 999 तक पहुंचना किसी विश्व रिकॉर्ड से कम नहीं है! ऐसा भी तब हुआ जब पूरे देश भर में ग्रीन पटाखों को छोड़कर सभी प्रकार के पटाखे बनाने, बेचने व फोड़ने पर पाबंदी लगी थी। लेकिन जरा सोचिए क्या ऐसा किया गया? जवाब मिलेगा नहीं। पटाखे फोड़ने वालों पर कितनी कार्रवाई हुई? इस पर भी अभी चुप्पी है। हाँ इस दौरान पराली जलाने वाले किसानों पर जरूर कार्रवाई हुई है। यहां एक बात समझ में नहीं आ रही की पराली सिरसा में जलाई जा रही थी और वायु का गुणवत्ता स्तर दिल्ली का खराब हुआ। वह भी गंभीर स्थिति से कहीं ऊपर उठकर@999। पर्यावरण विज्ञान व मेडिकल साइंस भी यह कह रही है कि यदि वायु गुणवत्ता सूचकांक 450 से ऊपर है तो वह गंभीर श्रेणी में आता है तो जिस क्षेत्र में वायु गुणवत्ता सूचकांक 999 रहा, वहाँ के लोग कैसे जी पाए? कैसे उन्होंने सांस लिया होगा? सोचने की बात है। पर यहाँ यह बात भी ध्यान रहे मीडिया में जो दिखाया जाता है या छपता है, वह जिस वक्त वायु गुणवत्ता सूचकांक अधिकतम होता है। उस वक्त के आंकड़े बताए हुए छापे जाते हैं। 

बदलता रहता है वायु गुणवत्ता सूचकांक

भौगोलिक प्रक्रिया के अनुसार वायु गुणवत्ता सूचकांक कभी भी स्थिर नहीं रहता। वह एक-एक मिनट के अंतराल में बदलता रहता है। यदि इतनी गंभीर स्थिति जहरीली हवा की स्थाई रूप से 24 घंटे भी बन जाए तो मानव जीवन खतरे में पड़ जाएगा। लेकिन मंथन इस विषय पर करने की जरूरत है कि आखिर प्रदूषण बढ़ क्यों रहा है? सरकारों से लेकर देश के सुप्रीम कोर्ट तक इस विषय पर चिंता जाहिर कर चुके हैं, लेकिन उसके बावजूद भी वायुमंडलीय प्रदूषण कम होने का नाम नहीं ले रहा। इसकी वास्तविक स्थिति पर शोध करने की जरूरत है। 

वायुमंडलीय प्रदूषण पर हो चुके शोध

भारत का आईआईटी कानपुर व यूएसए के विश्वविद्यालय इस दिशा में शोध भी कर चुके हैं, लेकिन उस शोध में जो सामने आया उस पर काम करने के लिए कोई सामने नहीं आ रहा। भारत में सरकारी विभागों के साथ-साथ विभिन्न प्रकार की नॉन गवर्नमेंट ऑर्गेनाइजेशन प्रदूषण रोकने की दिशा में काम कर रही है। पर उनका यह काम कागजों से बाहर निकले तब जाकर बात बने। नहीं तो यह वायु प्रदूषण इसी प्रकार से बढ़ता रहेगा और मानव जीवन इसी प्रकार खतरे में पड़ता रहेगा। यदि ऐसा ही रहा तो भविष्य में भारत में अस्थमा व श्वांस के रोगियों की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती जाएगी। इसके अलावा क्षय रोग और भी भयानक रूप ले लेगा,दिल के मरीजों की संख्या बढ़ती जाएगी। इतना ही नहीं गर्भवती महिलाओं के गर्भ में पल रहे भ्रूण पर भी इस वायु प्रदूषण का सीधा असर पड़ेगा। यही कारण है कि दिल्ली सरकार ने एक एडवाइजरी जारी कर मॉर्निंग व इवनिंग वॉक सहित फिजिकल एक्सरसाइज भी न करने की सलाह दी है। विशेष कर गर्भवती महिलाओं को अपने घरों में ही रहने के लिए कहा गया है। लेकिन ऐसा कब तक होगा? 

आमजन को समझना होगा

जब तक आमजन नहीं समझेगा, तब तक भारत में प्रदूषण इसी प्रकार फैलता रहेगा। इस दिशा में जहाँ भारत सरकार के प्रदूषण नियंत्रण विभाग व राज्य सरकारों के प्रदूषण नियंत्रण विभाग को काम करने की जरूरत है। सिर्फ नियम बनाने से काम नहीं चलने वाला, बल्कि इसे मूर्त रूप से कड़ाई से लागू करना होगा। ऐसा कब तक होता रहेगा कि देश का सुप्रीम कोर्ट आदेश देता रहेगा और तब जाकर सरकारें जागती रहेंगी। दिल्ली की केजरीवाल सरकार का सबसे बड़ा उदाहरण सामने है। सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद प्रदूषण पर नियंत्रण पाने के लिए जब केजरीवाल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को कहा कि हमें सिर्फ आपके आदेशों का इंतजार है। तब सुप्रीम कोर्ट ने फिर से टिप्पणी करनी पड़ी कि हमारे आदेशों का ही इंतजार क्यों? सरकार अपने स्तर पर खुद भी प्रदूषण नियंत्रण के लिए आगे बढ़ सकती है। इस बात में कोई दो राय नहीं देश की राजधानी दिल्ली में जिस क्षेत्र में केंद्रीय मंत्रालय, संसद भवन, राष्ट्रपति भवन तथा मंत्रियों व सांसदों के निवास स्थान है, वहाँ इतनी स्वच्छता रहती है कि कहने सुनने से पर की बात है। यदि इतनी ही व्यवस्था सभी स्थानों पर की जाए तो प्रदूषण का नामों-निशान तक मिट सकता है। पर इसके लिए राजनीतिक इच्छा शक्ति का होना व ब्यूरोक्रेसी में उस कानून को लागू करने की चाहत होनी जरूरी है। 

तम्बाकू का कहीं जिक्र नहीं!

सबसे खास व चिंता की बात है कि सरकार ने अगरबत्ती व मच्छर भगाने वाली क्वायल जलाने पर तो रोक लगा दी। लेकिन जिस धूम्रपान से (बीड़ी, सिगरेट व तंबाकू से खतरनाक प्रदूषण फैल रहा है, उसका कहीं जिक्र नहीं है। क्या बीड़ी सिगरेट में विभिन्न प्रकार का तंबाकू ऑक्सीजन देता है? ऐसा नहीं है। पर यह सब सरकार को रेवेन्यू प्रदान करते हैं। आखिर इन पर रोक लगे भी कैसे? बीड़ी-सिगरेट का स्वास्थ्य विभाग से लेकर सरकारों को भी पता है कि यह स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होने के साथ-साथ प्रदूषण फैलाने में अहम भूमिका निभा रहे हैं। 

तम्बाकू कैंसर को बढ़ावा देता है

सिगरेट के पैकेट पर सिर्फ यह लिख देने से कि तंबाकू के सेवन से कैंसर होता है, क्या प्रदूषण रुक जाता है? क्या इसे गंभीर बीमारियां रुक जाती हैं? ऐसा भी नहीं है। महज चेतावनी लिखने से नहीं इन नशीले पदार्थो पर रोक लगानी चाहिए। रोक क्यों नहीं लग पा रही? आखिर इसके पीछे वजह क्या है? इस पर गंभीर मंथन करने की जरूरत है। जब अगरबत्ती पर रोक लगा सकती है तो बीड़ी सिगरेट व तंबाकू पर क्यों नहीं? यह सबसे बड़ा सोचने का सवाल है?
धूम्रपान स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है इस आर्टिकल में दिए गए चित्र प्रतीकात्मक है 

Saturday, August 5, 2023

हरियाणा में अब 6 व 7 अगस्त को होगा CET एग्ज़ाम, रोक हटी


हाई कोर्ट की अनुमति के बिना जारी नहीं होगा परिणाम
हिसार।

हरियाणा में ग्रुप सी की भर्तियों के लिए हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग द्वारा आयोजित होने वाला कॉमन एलिजिबिलिटी टेस्ट अब 6 अगस्त को होगा। 6 अगस्त को हरियाणा के 5 जिलों में कैटेगरी नंबर 57 के उम्मीदवारों का होना है। जो कॉमन एलिजिबिलिटी टेस्ट कैटेगरी नंबर 56 का 5 अगस्त को आयोजित होना था, अब यह एग्जाम 7 अगस्त यानी सोमवार को पहले के ही परीक्षा केंद्रों में आयोजित किया जाएगा। उससे पहले देर रात तक पंजाब एंड हरियाणा हाई कोर्ट चंडीगढ़ की सिंगल बेंच में हुई सुनवाई की वजह से कैंडीडेट्स को किसी भी प्रकार की सूचना न मिलने के कारण उम्मीदवारों के बीच टेस्ट होगा या नहीं यह संशय बरकरार रहा। अधिकतर कैंडिडेट अपने निर्धारित परीक्षा केंद्रों पर एक दिन पहले ही पहुंच गए थे। लेकिन मामला हाईकोर्ट की सिंगल बेंच में पेंडिंग होने के कारण हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग रात्रि 10:00 बजे तक भी यह निर्णय नहीं ये स्का था कि 5 अगस्त को एग्जाम होगा या नहीं। बाद में परीक्षा स्थगित का नोटिस डाला गया। तब तक काफी देर हो चुकी थी। हाईकोर्ट की सिंगल बेंच के एग्जाम पर रोक लगाने के बाद हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग हाई कोर्ट की डबल बेंच में अपील के लिए पहुंच गया। लेकिन समय कम था। इस मामले की सुनवाई शनिवार सुबह करीब 12:00 बजे हुई। अब हाईकोर्ट की डबल बेंच ने कॉमन एलिजिबिलिटी टेस्ट से सिंगल बेंच द्वारा लगाई गई रोक तो हटा दी है लेकिन साथ ही यह भी कहा कि हाईकोर्ट की अनुमति के लिए ना इस टेस्ट का परिणाम घोषित नहीं किया जाएगा। दूसरी ओर पहले की योग्यता लिस्ट की जगह नई योग्यता लिस्ट के आधार पर यह टेस्ट आयोजित होगा। ज्ञात रहे कि सबसे हरियाणा सरकार ने कॉमन एलिजिबिलिटी टेस्ट के आधार पर हरियाणा में ग्रुप दी व सी की भर्तियां करने का ऐलान किया है। तब से लेकर अब तक यह भर्ती प्रक्रिया विवादों के घेरे में ही सही है। कभी सरकार द्वारा अपनाई जाने वाले योग्यता के क्राइटेरिया पर सवाल उठाए जा रहे हैं तो कभी सरकार द्वारा लिए जाने वाले मेंस टेस्ट पर। यह बात तो हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग के चेयरमैन पहले ही स्पष्ट कर चुके थे की स्थिति कुछ भी रहे कॉमन एलिजिबिलिटी टेस्ट स्थगित नहीं किया जाएगा। पर मामला पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट की सिंगल बेंच में अंतिम दिन तक पेंडिंग होने के कारण स्थिति स्पष्ट नहीं हो सकी। इस मामले में सरकार व हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग भी अपने किसी भी प्रकार के अंतिम निर्णय पर नहीं पहुंच सके। यही एक सबसे बड़ी वजह रही कि इस चूक के कारण प्रदेश भर के आवेदकों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ा। अब रविवार को सिर्फ कैटेगरी नंबर 57 के आवेदकों का ही एग्जाम होगा व सोमवार को कैटेगरी 56 के लिए एग्जाम आयोजित होगा। इसके लिए अलग से किसी भी प्रकार का रोल नंबर जारी नहीं किया जाएगा।

उपद्रव : देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरनाक

उपद्रव : देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरनाक

डॉ संदीप सिंहमार।
वरिष्ठ लेखक एवं स्वतंत्र टिप्पणीकार।

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    • भारत देश के संविधान के अनुसार देश के हर किसी व्यक्ति को अपनी बात कहने का हक है। इसे संविधान में अभिव्यक्ति की आजादी नाम के मौलिक अधिकार में शामिल भी किया गया है। पर इसका मतलब कहीं भी उपद्रव या आंदोलन के माध्यम से देश का माहौल बिगाड़ना नहीं है। कोई भी व्यक्ति अपनी बात शांतिपूर्ण तरीके से दो कह सकता है, लेकिन जब वही उपद्रव पर उतारू हो जाए तो उसके खिलाफ देश का कानून भी अपना काम करता है। इसी प्रकार संविधान में अपने अपने ड्यूटी एवं कर्तव्य भी निर्धारित किए गए हैं। देश की विधानपालिका जहां उच्च सदन राज्यसभा व निम्न सदन लोकसभा के माध्यम से कोई भी नया बिल्ल लाने या कानून बनाने का काम करती है तो कार्यपालिका का काम उसे लागू करना होता है। इसी के साथ साथ तीसरा स्थान न्यायपालिका को माना गया है। यदि देश में कहीं भी विधानपालिका व कार्यपालिका किसी भी प्रकार की गड़बड़ करती है तो ऐसी स्थिति में न्याय करने का काम देश की न्यायपालिका करती है। इसके अलावा मीडिया को चौथा स्तंभ माना गया है। चौथे स्तंभ का कर्तव्य सबके काम पर निगरानी रखते हुए लोगों के सामने सच्चाई पेश कर रहा होता है या जब ही कहीं भटकाव नजर आए तो ऐसी स्थिति में राह दिखाने का काम भी साहित्य या पत्रकारिता करती है। परंतु वास्तव में देश का चौथा स्तंभ कैसा कार्य कर रहा है। यह सबको पता है। देश की सर्वोच्च अदालत ने भी इलेक्ट्रॉनिक मीडिया द्वारा परोसी जाने वाली खबरों को लेकर टिप्पणी कर चुकी है। प्रिंट मीडिया हो या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया हमें ऐसी कोई भी सामग्री पेश नहीं करनी चाहिए, जिससे देश में कहीं भी भड़काऊ स्थिति पैदा हो। अब बात करते हैं देश के वर्तमान हालात विशेषकर मणिपुर व हरियाणा राज्य के हालातो पर। मणिपुर में जहां हाईकोर्ट के एक आदेश के बाद वहां के दो जातियों के बीच खूनी संघर्ष पिछले 3 महीनों से जारी है तो हरियाणा के मेवात जिले में भी पिछले 5 दिनों से एक धार्मिक यात्रा को लेकर दो धर्मों के लोगों के बीच तनाव बना हुआ है। यहां तक की हरियाणा का पूरा प्रशासनिक अमला पुलिस व पैरामिलिट्री फोर्स तैनात होने के बावजूद भी मेवात में स्थिति तनावपूर्ण चल रही है। तुरंत अन्य जिलों मे भी स्थिति काबू में होने का नाम नहीं ले रही है। मौका पाते ही उपद्रवी कहीं ना कहीं आगजनी की घटना को अंजाम दे देते हैं। हरियाणा की इस हिंसा में अब तक 2 होमगार्डों सहित सात लोगों की मौत भी हो चुकी है। उसके बावजूद भी शांति बहाली के लिए सरकार को पूरा जोर लगाना पड़ रहा है। ऐसी स्थिति में अकेली सरकार ही नहीं उनकी समाज के प्रबुद्ध नागरिकों को भी सामने आकर सरकार के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करना चाहिए। ताकि हिंसा की आग में जल रहे मेवात सहित विभिन्न जिलों में एक बार फिर से शांति बहाली हो सके। हिन्दू व मुस्लिम संप्रदाय के लोगों को भी स्वयं आगे आकर हिंसा की आग को बुझाने का कार्य करना चाहिए। यदि ऐसा नहीं होता है तो उपद्रव देश के लिए अच्छा संकेत नहीं है। देश में दो तरह की सुरक्षा व्यवस्था काम करती हैं। एक बाह्य सुरक्षा तो दूसरी आंतरिक सुरक्षा। यदि देश के अंदर रहने वाले दो संप्रदायों के लोग ही आपस में झगड़ते रहेंगे तो इससे भी देश की आंतरिक सुरक्षा को नुकसान पहुंचता है। जब-जब देश की आंतरिक सुरक्षा को नुकसान पहुंचता है तो इसका फायदा हमेशा पड़ोसी राज्य उठाते हैं। पड़ोसी मुल्क जो हमेशा इस तरह की घटनाओं के इंतजार में रहते हैं। उनको घुसपैठ करने या फिर लोगों को भड़काने का मौका मिल जाता है। भारत के मणिपुर में चल रहे जातीय संघर्ष व हरियाणा के मेवात में दो धर्मों के बीच चल रहे संघर्ष का मामला देश की सर्वोच्च अदालत में भी पहुंच चुका है। मणिपुर मामले में तो सुप्रीम कोर्ट को ने जहां खुद संज्ञान लेना पड़ा था। वही मेवात मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है। हालांकि इन दोनों मामलों में ही देश की सर्वोच्च अदालत सरकारों को शांति बहाली के ही आदेश दे रही है। पर ऐसी दिक्कत आनी ही नहीं चाहिए कि कानून व्यवस्था को कंट्रोल में लेने के लिए देश की सर्वोच्च अदालत को भी हस्तक्षेप करना पड़े। किसी भी प्रकार के आंदोलन, उपद्रव, जातीय संघर्ष, धर्मों के नाम पर झगड़े व बेरोजगारी का असर वास्तव में देश की आंतरिक सुरक्षा पर होता है। इन सभी मामलों पर राज्य व केंद्र सरकार को ध्यान देने की जरूरत है, ताकि देश की आंतरिक सुरक्षा को देश के शक्ति सौंदर्य  को विश्व स्तर पर कहीं भी नुकसान न पहुंचे। इस मामले में समय रहते गौर करने की जरूरत है। सरकार के साथ-साथ समाज के लोगों को भी विभिन्न प्रकार के गैर राजनीतिक संगठनों को भी बीच में आकर इस मामले का हल निकालना चाहिए। क्योंकि जब जब-इस तरह के संघर्ष उपद्रव होते हैं तो सत्तासीन सरकार का साथ विपक्ष कभी भी साथ नहीं देता। विपक्ष से ऐसी उम्मीद की भी नहीं जा सकती। हाँ सरकार से कोई गलती हो जाती है तो उस मुद्दे को उछालने का काम विपक्ष तुरंत करता है, लेकिन एक इंसानियत के नाते विपक्ष सहित सर्वदलीय नेताओं को सरकार का साथ देना चाहिए। ताकि भारत देश की आंतरिक सुरक्षा व गरिमा को कहीं भी ठेस ना पहुंचे।
    • ये लेखक के निजी विचार हैं।

    Thursday, August 3, 2023

    राजनीति का दंगल नहीं, समाधान ढूंढिए

     ...ये वक्त सियासत का नहीं 

    डॉ संदीप सिंहमार।
    वरिष्ठ लेखक एवं स्वतंत्र टिप्पणीकार।
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    हरियाणा प्रदेश के मेवात जिले सहित विभिन्न जिलों में विश्व हिंदू परिषद की ब्रज मंडल यात्रा के दौरान हुई हिंसा के मामले में पक्ष और विपक्ष को सियासत छोड़कर समाधान की ओर मिलजुल कर आगे बढ़ना चाहिए। ऐसे हालात देश प्रदेश में जब भी बनते हैं, उस वक्त तो कम से कम राजनीति नहीं होनी चाहिए। राजनीति करने के वह बयान बाजी करने के मौके और बहुत होते हैं। इस मामले में ना तो सत्तासीन सरकार को और ना ही विपक्ष को कोई ऐसी बयानबाजी नहीं करनी चाहिए जो प्रदेश वासियों को चुभे। प्रदेश की सत्तासीन सरकार को जहां अपनी जिम्मेदारियों से नहीं भागना चाहिए, वहीं विपक्ष को भी शांति बहाली के लिए सरकार का साथ देना चाहिए। हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल का प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान यह कहना कि प्रदेश के हर नागरिक की सुरक्षा पुलिस व सेना नहीं कर सकती। वास्तव में चिंतनीय है। क्योंकि मुख्यमंत्री जैसे गरिमामय पद पर बैठकर ऐसी बातें कहने से प्रदेश की आम जनता का मनोबल गिरता है। उनका सिर्फ यही फ़र्ज़ बनता है कि हर हाल में प्रदेश के हर नागरिक की सुरक्षा करने का कर्तव्य उनकी ही सरकार का है। इस बयान के बाद विपक्ष को भी बोलने का मौका मिल गया। विपक्ष ने अपने तीखे व्यंग्य बाण छोड़ते हुए यहां तक कह डाला कि जब सरकार प्रदेश की नागरिकों की सुरक्षा करने में असमर्थ है तो उन्हें तुरंत प्रभाव से कुर्सी छोड़ देनी चाहिए। हरियाणा के विपक्ष के नेता व पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रणदीप सुरजेवाला, राज्यसभा सांसद दीपेंद्र हुड्डा व इनेलो के नेता अभय सिंह चौटाला एवं कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष कुमारी सैलजा ने हरियाणा की भाजपा सरकार के खिलाफ कुछ ऐसे ही बयान दिए हैं। एक ऐसे दौर में जब प्रदेश संकट की घड़ी से गुजर रहा हो तो सत्तासीन सरकार व विपक्ष में बैठे नेताओं से ऐसी बयानबाजी की उम्मीद नहीं की जा सकती। सरकार को भी जहां नागरिकों की सुरक्षा के लिए जिम्मेदारी लेनी चाहिए तो विपक्ष के नेताओं अन्य राजनीतिक पार्टी के नेताओं को भी यह कर्तव्य बनता है कि ऐसे समय में सरकार का दें। ब्रज मंडल यात्रा के दौरान इसे धार्मिक मुद्दा बनाकर उपद्रवियों ने जो हिंसात्मक गतिविधियों को अंजाम दिया, उनकी जितनी निंदा की जाए उतनी ही कम है। उपद्रवियों की कोई जाति धर्म नहीं होता। इसी नियम को अपनाते हुए सरकार को इन असामाजिक तत्वों के खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई को अंजाम देना चाहिए, ताकि भविष्य में प्रदेश का कोई भी व्यक्ति ऐसी घटना को अंजाम देने से पहले एक बार नहीं बल्कि सौ बार सोचे। मेवात ऐसा जिला है, जहां मुस्लिम संप्रदाय की अधिकता है। लेकिन इन लोगों को यह नहीं भूलना चाहिए इस जिले में भी हिंदू सहित अन्य धर्म के लोगों को भी अपने धार्मिक कार्यक्रम, रैली या किसी भी प्रकार का समागम करने का अधिकार है। बस सिर्फ इस तरह के कार्यक्रम से पहले जिला प्रशासन से अनुमति जरूर लेनी चाहिए, ताकि किसी भी अप्रिय घटना को रोकने के लिए पहले से ही कदम उठाए जा सके। ब्रज मंडल यात्रा के दौरान आयोजकों से यही एक गलती हुई है। इस बात को खुद सरकार भी स्वीकार कर चुकी है। हरियाणा के डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला ने कहा है कि जिला प्रशासन के संज्ञान में लाने के मामले में आयोजकों से चूक हुई है। दूसरी तरफ सुरक्षा के मामले में हरियाणा प्रदेश के प्रत्येक जिले में तैनात खुफिया एजेंसियों को लेकर भी सवाल उठ रहा है। क्योंकि खुफिया एजेंसी इस यात्रा को लेकर होने वाले हमले या घटना की बात का इनपुट हरियाणा के गृह मंत्रालय को नहीं दे सकी। इस बात को भी हरियाणा के गृह मंत्री अनिल विज स्वीकार चुके हैं। खुफिया एजेंसियों के जिम्मेदार कर्मचारियों व अधिकारियों के खिलाफ भी इस मामले में लापरवाही बरतने की जिम्मेदारी तय करते हुए बड़ी कार्रवाई करनी चाहिए,ताकि भविष्य में खुफिया एजेंसियां भी सतर्क रह सके। कुछ भी हो इस मामले में हरियाणा सरकार को गहराई तक जांच करते हुए इस घटना के सूत्रधार की पहचान कर सलाखों के पीछे भेजना चाहिए। यहां यह बात भी याद रखनी होगी कि जब भी कभी हरियाणा प्रदेश में किसी भी प्रकार के आंदोलन को लेकर बड़ा विवाद हुआ है तो उसके बाद आंदोलनकारियों के दबाव में आकर सरकार पकड़े गए आरोपियों को बिना किसी शर्त के रिहा करवा देती है। ऐसा करने से पहले भी सरकार को गहन मंथन करना चाहिए, क्योंकि ऐसा करने से उपद्रवियों के हौसले बुलंद होते हैं और इस तरह के उपद्रवी दोबारा दुगनी ताकत के साथ समाज के सामने आकर एक बड़े नुकसान की ओर बढ़ते हैं। जनसंचार के विभिन्न साधनों इलेक्ट्रॉनिक व प्रिंट मीडिया को भी ऐसे वक्त में किसी भी प्रकार का भड़काऊ समाचार न देकर शांति बहाली का संदेश देना चाहिए, ताकि प्रदेश में एक बार फिर सभी धर्मों के लोगों के बीच अमन-चैन स्थापित हो सके। कोई भी किसी की जान का दुश्मन नहीं बने।

    Wednesday, August 2, 2023

    मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना...

    सियासत नहीं, समाधान चाहिए


    डॉ. संदीप सिंहमार

    वरिष्ठ लेखक एवं स्वतंत्र टिप्पणीकार 

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    मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना...अल्लामा इकबाल के मशहूर शेर की ये पंक्ति देश के वर्तमान हालातों पर बिल्कुल सटीक रही हैं । यह बात सौ फीसदी सही है कि दुनिया का कोई भी धर्म या मजहब आपस में लड़ाई-झगड़ा करना नहीं सिखाता। फिर भी यदि हम धर्म के नाम पर लड़ते झगड़ते हैं तो इसके जिम्मेदार हम खुद हैं। हमारे देश की राजनीति है व काफी हद तक आम जनता के आंख में कानों तक समाचार पहुंचाने वाले खबरची भी इसके जिम्मेदार हो सकते हैं। खास बात यह है कि जब भारत देश स्वतंत्र हुआ तो संविधान निर्मात्री सभा ने देश के पहले विधि मंत्री डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के नेतृत्व में एक संविधान तैयार किया। इस संविधान में भी भारत देश को धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र माना गया। इसका मतलब साफ तौर पर यह है कि भारत देश में एक नहीं बल्कि सभी धर्मों के लोगों का आदर सत्कार किया जाएगा। संत महापुरुषों ने भी ऐसा कहा है कि ना हिंदू बुरा है, ना मुसलमान बुरा है, बुराई पर जो उतर आए,वह इंसान बुरा है। इसलिए हम किसी भी एक धर्म को बुराई का प्रतीक नहीं मान सकते। पर यहां सबसे बड़ी सोचने और समझने की बात यह है कि जब जब देश में चुनाव होते हैं, तब सभी धर्मों को साथ लेकर चलने की बात होती है। लेकिन जब चुनाव समाप्त हो जाते हैं तो एक धर्म विशेष को उठाकर चलने की बात की जाती है। यही एक सबसे बड़ी वजह है कि धर्म के नाम पर लोगों के बीच में एक बड़ी खाई पैदा हो गई है। जिसे अब भर पाना सत्तासीन लोगों के लिए व आम लोगों के लिए भी आसान नहीं है। भारत ऋषि मुनियों की धरा रही है। किसी भी संत-महापुरुष, ऋषि-मुनि ने एक धर्म विशेष का समर्थन नहीं किया। सभी ने हमेशा सर्वधर्म संगम की बात कही। विश्व प्रसिद्ध महाकाव्य रामायण और महाभारत में भी किसी भी धर्म का विरोध नहीं किया गया बल्कि राक्षसी प्रवृत्ति के लोगों का विरोध दिखाया गया है। जब हमारे देश में सभी धर्मों का संगम देखने को मिलता हो तो ऐसी स्थिति में धर्म के नाम पर या जाति विशेष के नाम पर आखिर झगड़े होते क्यों? यह सबसे बड़ा सुलगता सवाल है? इसी सवाल के बीच आज हरियाणा का नुहं व देश का मणिपुर राज्य जल रहा है। सबसे बड़ी बात इस पूरे धार्मिक उन्माद को हमारे देश के राजनीतिक अपने-अपने परिदृश्य से देख रहे हैं। मामला चाहे मणिपुर का हो या हरियाणा का धर्म या जाति के नाम पर कहीं भी झगड़ा नहीं होना चाहिए। क्योंकि जब भी कभी ऐसा होता है तो नुकसान आखिर इंसानियत का व देश की अर्थव्यवस्था का होता है। मणिपुर की ही बात लेते हैं।  मणिपुर के मामले में जब 2 महीने बाद भी 2 जाति विशेष के लोगों के बीच दंगे थमते नजर नहीं आए तो देश की सर्वोच्च अदालत ने इस मामले में हस्तक्षेप करना पड़ा। यदि राजनीतिक इच्छाशक्ति हो तो चाहे मणिपुर हो या हरियाणा का मेवात इन त्वरित मुद्दों को शांत किया जा सकता है। देश में धर्म तो अनेक हैं, लेकिन जब भी कभी झगड़े होते हैं तो विशेषकर हिंदू और मुस्लिम संप्रदाय के बीच होते हैं। सिर्फ एक किसान आंदोलन के दौरान सिख समुदाय के लोग 13 महीने तक दिल्ली की सरहदों पर किसानों की मांगों को लेकर डटे रहे। तब भी देशवासियों को याद होगा देश के राजनेताओं ने इन लोगों को भी खालिस्तानी तक करार दे दिया था। लेकिन जैसे ही पंजाब के चुनाव नजदीक आए तो जो पंजाब व हरियाणा के किसान जो मांग कर रहे थे, उन मांगों को मान लिया गया। उस वक्त सैकड़ों किसानों की मौत हुई थी। देखी और समझी जाए तो इन मौतों का आखिर जिम्मेदार कौन है? जवाब एक ही होगा देश के राजनीतिक। चाहे वह कुर्सी पर आसीन हो या फिर विपक्ष में अपनी रोटियां सेक रहे हो। चाहे पक्ष हो या विपक्ष जब देश पर कोई ऐसी विपत्ति आती है तो उस वक्त दोनों पक्षों को ऐसे अहम मुद्दों पर एक साथ आकर समस्या का समाधान निकालने की और आगे बढ़ना चाहिए। लेकिन हमारे देश की राजनीति कुछ और कहती है। हमारे देश की राजनीति ऐसे वक्त में भी सियासत करती है। जन संचार के विभिन्न साधनों समाचार पत्रों व टीवी चैनलों पर आकर आम जनता को गुमराह करने का काम करते हैं। यदि सच्चाई आम जनता के सामने आ जाए और देश की आम जनता जिस दिन राजनीति के मायने को समझ समझ जाए तो उस दिन अपने आप परिवर्तन दिखने शुरू हो जाएंगे। पर जिस दिन ऐसा होगा उस दिन राजनीति को पूछेगा कौन? हरियाणा के नूंह में सोमवार से उपद्रवियों का जो नंगा नाच चल रहा है, इसके लिए सीधे तौर पर प्रदेश की खुफिया एजेंसियों को जिम्मेदार माना जाना चाहिए। क्योंकि जब भी कभी कोई इस प्रकार का कार्यक्रम, यात्रा या समागम होता है तो सबसे पहले प्रदेश की खुफिया एजेंसियां अपनी रिपोर्ट प्रदेश सरकार के गृह मंत्रालय को देती हैं। उसी आधार पर इस तरह की यात्राएं निकालने की इजाजत मिलती है। यह छोटी सी सरकारी चूक एक बड़े हादसे का कारण बन गई। आज मेवात जिला जल रहा है। जिधर देखो उधर आग ही आग दिखाई दे रही है। लोगों की आंखें क्रोध से लाल हैं। हालांकि मामले को बढ़ता देख हरियाणा के मुख्यमंत्री, हरियाणा के डीजीपी,हरियाणा के गृह मंत्री के साथ-साथ केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने भी इस मामले की रिपोर्ट तलब की है। इतना ही नहीं 20 पैरामिलिट्री कंपनियों को इन इलाकों में तैनात किया गया है। फिर भी गुस्से की आग थमने का नाम नहीं ले रही है। जब यह मामला शांत होता दिखाई नहीं दिया तो आखिर मेवात में कर्फ्यू तक लगाना पड़ा। इंटरनेट सेवाएं बंद करनी पड़ी। इससे पहले धारा 144 लगाई गई। मेवात के साथ-साथ गुरुग्राम, रेवाड़ी, सोनीपत फरीदाबाद व पलवल सहित छह जिलों में धारा 144 लगानी पड़ी। लेकिन इससे पहले भी स्थिति को संभाला जा सकता था और अब भी इस हालात को काबू किया जा सकता है। लेकिन हर बार बात को हल्के में लिया जाता है। पिछले दिनों की याद होगी जब माइनिंग के एक मामले में हरियाणा पुलिस विभाग के एक डीएसपी को एक डम्फर के नीचे कुचलकर मौत की नींद सुला दिया गया था। उस वक्त भी जिला यही था। तब हरियाणा सरकार ने साफ तौर पर कहा था कि इस इलाके में अब सुरक्षा व्यवस्था बढ़ाई जाएगी। पर उसके बाद इस जिले को अपने हाल पर छोड़ दिया गया। अब सोमवार से धर्म के नाम पर इस कदर आग भड़क रही है कि उसकी आग पड़ोसी राज्यों तक भी पहुंच गई है। राजस्थान के भरतपुर जिले की तहसीलों में भी इंटरनेट व्यवस्था बंद की गई है। गुरुग्राम की एक मस्जिद पर हमला बोला गया। यहां भी एक व्यक्ति की मौत हो चुकी है। इसके अलावा अब तक हरियाणा सरकार के 2 होमगार्डों सहित कुल 5 लोगों की जहां मौत हो चुकी है। वहीं सरकारी संपत्तियों सहित निजी संपत्तियों का भी जमकर नुकसान पहुंचा है। लोगों को अपनी जान बचाने के लिए सरकार से जिंदगी की भीख मांगनी पड़ रही है। ऐसी स्थिति देश में नहीं होनी चाहिए, क्योंकि हमारा देश एक धर्मनिरपेक्ष देश है। जिस देश में सर्वधर्म संगम की बात की जाती हो, ऐसे देश में इस तरह के उपद्रव का कोई स्थान नहीं है। उपद्रवियों की कोई जाति या धर्म भी नहीं होता। ऐसे लोगों को किसी धर्म विशेष का न कहकर उन्हें सिर्फ उपद्रवी की संज्ञा देकर कड़ी से कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए, ताकि भविष्य में कभी भी इस प्रकार के आगजनी की घटनाएं देखने को ना मिले। दोनों धर्मों के जिम्मेदारों को भी अब सामने आकर इस क्रोध की अग्नि को बुझाने का काम करना चाहिए।

    समाज के लिए सबसे ज्यादा खतरनाक धार्मिक उन्माद

     

    धार्मिक उन्माद नहीं, भाईचारा कायम हो

    डॉ संदीप सिंहमार
    वरिष्ठ लेखक एवं स्वतंत्र टिप्पणीकार
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    भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है। ऐसा भारत के संविधान में माना गया है। इतना ही नहीं ऐसा सभी धर्मों में भी माना गया है कि हमें सभी धर्मों का सम्मान करना चाहिए यानी सर्व धर्मसंगम होना चाहिए। पर सदियों से ही भारत देश में धार्मिक उन्माद फैलते रहे हैं। पर सिवाए नुकसान के फायदा कभी भी नहीं हुआ। मुगल काल से लेकर अब तक के इतिहास के पन्नों को उकेरा जाए तो साफ तौर पर पता चलता है कि हमेशा धर्म के नाम पर राजनीति होती रही है। भारत देश में हमेशा से ही दुनिया के सभी धर्मों के लोग रहते आए हैं। सभी ने अपना अपना वर्चस्व कायम कर रखने के लिए अपने तीर चलाएं हैं। खैर उस वक्त देश के हालात कुछ अलग थे और अब देश के हालात बिल्कुल अलग है। अब हमारा देश एक स्वतंत्र राष्ट्र है, लेकिन धर्म के नाम पर धार्मिक उन्माद का बीज भारत की स्वतंत्रता के साथ ही बोया गया था, जो अब एक वट वृक्ष बन चुका है। गौर से सोचने की बात है अपने-अपने धर्म को लेकर सभी कट्टरवादी होते हैं। लेकिन इस कट्टरवादीता के बीच जान-माल की हानि नहीं होनी चाहिए। भारत देश में अकेले हिंदू और मुस्लिम ही नहीं बल्कि विभिन्न धर्मों के लोग आपस में मिल जुल कर रहते आए हैं। पर कुछ समय बीतने के बाद फिर एक धार्मिक उन्माद का ऐसा तूफान खड़ा होता है कि इसे रोकना मुश्किल हो जाता है। मौसमी तूफान तो आता है और अपनी तबाही मचाने के बाद चला भी जाता है। लेकिन जब-जब धार्मिक उन्माद रूपी तूफान समाज में फैलता है तो पूरे समाज में चिंता की लकीरें की जाती हैं। खासकर हिंदू-मुस्लिम इन दो धर्मों के बीच इतनी गहरी खाई बन चुकी है कि इसे पाट पाना अब सरकारों के भी बस की बात नहीं रही है। हरियाणा के नूंह में विश्व हिंदू परिषद की ब्रजमंडल यात्रा कोई नई नहीं है। हर वर्ष हिंदू धर्म के लोगों के द्वारा यह ब्रजमंडल यात्रा मेवात जिले में निकाली जाती है। एहतियात के तौर पर हर बार सुरक्षा व्यवस्था भी तैनात रहती है। लेकिन इस बार ब्रजमंडल यात्रा के दौरान जो धार्मिक उन्माद हुआ। वह एक तरफ जहां बहुत ही शर्मनाक है वहीं दूसरी ओर विकास के पथ पर पहले ही पीछे चल रहा मेवात के लिए भी शुभ संकेत नहीं है। यह माना इस जिले में मुस्लिम समाज के लोगों की बहुतायत है, लेकिन किसी भी धर्म के लोगों को कमजोर नहीं माना जाना चाहिए। यह सोच कर कि यह कार्यक्रम किसी एक धर्म या समाज का है, पथराव नहीं करना चाहिए। यहां तो पता ही नहीं बल्कि दर्जनों वाहनों में आगजनी यहां तक की पुलिस थानों को भी अपने चपेट में ले लिया गया। इतना ही नहीं देखते ही देखते धार्मिक उन्माद की इन लपटों ने मेवात के साथ लगते जिले फरीदाबाद, पलवल व गुरुग्राम को भी अपनी चपेट में ले लिया। गुरुग्राम के सेक्टर 57 में स्थित एक धार्मिक स्थल पर देर रात आगजनी की घटना हुई इस घटना में भी एक व्यक्ति की मौत हुई।  घटना को अंजाम देने वाले असामाजिक तत्वों को आखिर मिला क्या यह सोचने की बात है? सिर्फ लोगों का ध्यान जरूर भटका है। हरियाणा सरकार की मांग पर इस उपद्रव को काबू में करने के लिए केंद्र को पैरामिलिट्री फोर्स की 20 कंपनियों को तैनात करना पड़ा है, जो कि एक छोटे से जिले के लिए बहुत बड़ी संख्या मानी जाती है। इसके अलावा मेवात सहित आसपास के जिलों की पुलिस को भी तैनात किया गया है। धर्म के नाम पर हुए इस उपद्रव को बेकाबू होते देख मेवात के जिलाधीश को 2 दिनों के लिए कर्फ्यू तक लगाना पड़ा उसके बावजूद भी यहां स्थिति तनावपूर्ण बनी हुई है। इसे पहले की साजिश कहें तो भी कोई बड़ी बात नहीं है। क्योंकि जो लोग पथराव करते नजर आ रहे हैं उनकी छतों पर भी पत्थरों का स्टॉक है। इस बड़ी घटना के पीछे प्रदेश की खुफिया एजेंसियों की भी लापरवाही नजर आ रही है। क्योंकि जब भी किसी संवेदनशील स्थान पर इस तरह का कोई कार्यक्रम आयोजित किया जाता है तो सबसे पहले प्रदेश सरकार का गृह मंत्रालय खुफिया एजेंसियों से फीडबैक लेती हैं। इसी फीडबैक के आधार पर कार्यक्रम करने की इजाजत दी जाती है। अपनी रोजी रोटी के लिए चौक/चौराहों पर खड़े रहने वाले होमगार्ड जवानों को भी नहीं बख्शा गया। इस घटना में दो होमगार्ड जवानों सहित अब तक 4 लोगों की मौत हो चुकी है। अब जान गंवाने वालों का कभी भी धर्म नहीं देखा जाता, क्योंकि वह अपना कर्तव्य निर्वाहन कर रहे थे। लेकिन इस पूरे मामले में कट्टरवादीता भारी दिखाई दी। इस कट्टरवादीता का ही यह परिणाम रहा कि मेवात आज जल रहा है। पूरे देश की दो धर्मों के लोग दो धड़ो में बैठकर इस पूरी घटना को अपने-अपने नजरिए से देख रहे हैं। ब्रज मंडल यात्रा के दौरान घटना को अंजाम देने वाले लोगों को हिंदू या मुसलमान के नजरिए से नहीं देखा जाना चाहिए। क्योंकि जिन्होंने भी ये कुकृत्य किया है, उनको सिर्फ उपद्रवी मानकर सलाखों के पीछे भेजा जाना चाहिए,ताकि कभी भी किसी भी धर्म की जब कोई यात्रा हो या किसी भी प्रकार का समागम हो तब इस तरह का उपद्रव ना फैले। यह घटना मात्र असामाजिक तत्व उपद्रवियों की है। जबकि अब यह दो धर्मा हिंदू और मुस्लिम के बीच बट कर रह गई है। घटना हरियाणा के मेवात जिले में हुई जबकि इसकी आंच बाकी जिलों में भी पहुंचने शुरू हो गई है। सरकारी तौर पर तुरंत कार्रवाई करते हुए यहां धर्म से ऊपर उठकर देखने वाले अधिकारियों की तैनाती करनी चाहिए, ताकि तुरंत प्रभाव से इस मामले को निपटाया जा सके। ब्रजमंडल यात्रा के दौरान जो भी घटना घटी वह निंदनीय है। ऐसा एक सभ्य समाज के लिए बिल्कुल भी अच्छा नहीं माना जाता। सोचने की बात है कि यात्रा निकालने वाले उपद्रव करने वाले आपस में झगड़ रहे हैं। लेकिन उनके बीच करीब 200 लोग बिना किसी कसूर के चक्की के दो पाटों की तरह बीच में पीस रहे हैं। किसी हिंदू मंदिर में महिलाएं फंसी हुई है तो कहीं मुस्लिम समुदाय भी। शुरुआत में जहां यह एक मामूली झगड़ा लग रहा था लेकिन देखते ही देखते इस घटना ने एक उपद्रव का रूप धारण कर लिया। देर रात होते होते तो यह धार्मिक उन्माद ऐसा फैला कि हरियाणा सरकार के साथ-साथ केंद्र सरकार को भी इस मामले में हस्तक्षेप कर पैरामिलिट्री फोरसिज़ को एयरड्राप पर करना पड़ा। ऐसा हमारा हरियाणा नहीं है। कभी नहीं सोचा था हरियाणा प्रदेश में हिंदू मुस्लिम के बीच ऐसा दंगा भी होगा। हमारा यही कहना है कि धर्म के नाम पर कभी भी राजनीति नहीं होनी चाहिए, बल्कि राजनीति में धर्म का होना बहुत जरूरी है। यानी राजनीति में आने वाले लोगों को अपने धर्म व कर्तव्यों के बारे में साफ तौर पर पता होना चाहिए। तभी हमारा देश सभी धर्मों को एक साथ लेकर आगे बढ़ सकता है।

    Friday, November 2, 2018

    पढ़ाई को मज़ेदार बनाने के तरीके

    पढ़ाई को मज़ेदार बनाने के तरीके

    हम सब के जीवन में बहुत बार ऐसा समय भी आता है जब चाहे हमारे एग्जाम्स कितने ही पास क्यों न हों, लेकिन हम पढ़ना नहीं चाहते हैं. चाहे इसका रीज़न कोई ऐसा विषय हो जिसे पढ़ते ही हमें नींद आती हो, या फिर किसी ऐसे टॉपिक के कारण हो जो काफी मुश्किल हो और हम उसे बिलकुल पढ़ना न चाहें. हम अक्सर ऐसे टॉपिक्स में इंटरेस्ट लेने की कोशिश करते हैं जो टॉपिक्स हमें भविष्य के लिए महत्वहीन लगते हैं. हमें तब और भी ख़राब लगता है जब हम अपनी मोटी-मोटी किताबों और काफी सारे नोट्स को देखते हैं.
    स्कूल और कॉलेज के दौरान, आप अधिकांश समय पढ़ने में बिताते हैं. इसलिए यह बहुत जरुरी हो जाता है कि आप अपने बचपन का ज्यादा समय बोर और परेशान होकर न बिताएं. यहां आपकी सहायता के लिए 7 ऐसे तरीके पेश हैं जो आपको पढ़ाई की बोरियत से बचाकर, आपकी पढ़ाई को फन में बदल देंगे. आइये आगे पढ़ें:
    क्रिएटिव नोट्स और फ़्लैशकार्ड्स बनाएं 
    काले और सफेद रंगों की वही किताबें और नोट्स पढ़ते रहने से आप डल और नीरस हो सकते हैं. यही कारण है कि आप अपनी किताबों में खास कॉन्सेप्ट्स को मार्क करने के लिए रंगीन हाईलाइटर्स का इस्तेमाल कर सकते हैं. आप रंगीन पेन्स, ग्राफ्स और डायग्राम्स का इस्तेमाल करके भी अपने नोट्स को इंटरेस्टिंग बना सकते हैं.
    उदाहरण के लिए, चार्ट पेपर की एक बड़ी शीट पर सभी स्मृति सहायकों/ निमॉनिक्स के साथ एक रंगीन पीरियोडिक चार्ट बनाने से आपकी पढ़ाई एक फन एक्सरसाइज बनने के साथ ही आपकी रिवीजन्स भी ज्यादा इंटरेस्टिंग बन जायेंगी.
    अपने दोस्तों के साथ करें कॉम्पीटीशन 
    कोई कॉम्पीटीशन हमेशा कटथ्रोट कॉम्पीटीशन नहीं होता है. आप अपने दोस्तों के साथ “स्टडी ग्रुप्स” आयोजित कर/ बना सकते हैं. शुरू में, आप एक-दूसरे को मुश्किल कॉन्सेप्ट्स समझा सकते हैं. इससे आपके स्टडी ग्रुप में, सभी को न केवल मुश्किल कॉन्सेप्ट्स अच्छी तरह समझने में मदद मिलेगी बल्कि इससे आपकी दोस्ती ज्यादा घनिष्ठ होने के साथ ही टीम-वर्क में भी ज्यादा सुधार होगा.
    जब आप अपने स्टडी ग्रुप में ज्यादा कम्फ़र्टेबल हो जायेंगे, आप सब एक-साथ टेस्ट दे सकते हैं और जहां आप गलत हों, उसकी चर्चा ग्रुप में कर सकते हैं. इस तरीके से आपके स्टडी ग्रुप में प्रत्येक स्टूडेंट को टेस्ट-टेकिंग टेक्निक्स और टाइम मैनेजमेंट के बारे में ज्यादा जानकारी होने के साथ-साथ सभी कॉन्सेप्ट्स ज्यादा बेहतर तरीके से समझ आ जायेंगे.
    कुछ एजुटेक एप्स आपको अपने दोस्तों को विभिन्न चैप्टर्स में चुनौती देने में मदद करेंगे. अगर आपके पास विशाल क्वेश्चन बैंक्स की एक्सेस नहीं है, तो इन एप्स का इस्तेमाल करें क्योंकि ये एप्स प्रमुख प्रोफेसर्स के क्वेश्चन्स एक-साथ पेश करते हैं.
    खुद को दें ईनामरिवॉर्ड 
    उस टाइम को याद करें, जब आपके डॉक्टर ने एक इंजेक्शन लगाने के बाद, आपको एक कैंडी दी थी या अगर आपने अपना होमवर्क कर लिया तो आपकी मॉम ने आपको आइसक्रीम की ट्रीट देने का वादा किया था. आप एक चॉकलेट, कैंडी या एक नए खिलौने को लेकर कितने खुश होते थे? इससे आपको अच्छा व्यवहार करने या अपना हेल्दी खाना पूरा खाने या अपना होमवर्क पूरा करने की प्रेरणा मिलती थी.  
    आप अपनी स्टडीज को लेकर भी यही तरीका अपना सकते हैं. जब आप कोई मुश्किल चैप्टर पूरा कर लें तो खुद को किसी छोटे स्नैक का रिवॉर्ड या पार्टी दे सकते हैं या फिर किसी टेस्ट में अच्छे मार्क्स लेने के बाद एक लंबा ब्रेक ले सकते हैं. अपनी पढ़ाई में अच्छे प्रदर्शन के लिए एक रिवॉर्ड के तौर पर उन चीज़ों का इस्तेमाल कर सकते हैं जो आपको पसंद हों. इससे आपको मुश्किल पढ़ाई के दौरान ज्यादा मेहनत करने की प्रेरणा अपने-आप ही मिलेगी. इससे आपकी परफॉरमेंस और रिवार्ड्स भी ज्यादा अच्छे हो जायेंगे.
    रोल प्ले की ताकत का करें इस्तेमाल 
    भारत के आजादी के संघर्ष के दौरान हुई विभिन्न घटनाओं को आप कैसे याद करेंगे? शेक्सपियर के किसी नाटक के विभिन्न एक्ट्स को आप ठीक तरह से कैसे याद कर सकते हैं? आप इन टॉपिक्स के केवल रट्टे नहीं मार सकते हैं. आप लंबे समय तक बहुत ज्यादा जानकारी और सूचना याद नहीं रख सकेंगे. यद्यपि हमारी विजुअल मेमोरीज काफी अच्छी और लंबे समय के लिए होती हैं. इसलिए, आप पहली बार देखने के बाद भी कई वर्षों तक फिल्मों की स्टोरीज नहीं भूलते हैं.
    जब किसी कहानी या स्टोरी को याद करने की बात आये तो आप एक नाटक के तौर पर विभिन्न घटनाओं का मंचन कर सकते हैं. अगर संभव हो तो अपनी पूरी क्लास को इसमें शामिल कर लें. इससे आप विभिन्न पात्रों को गहराई से समझ जाने के साथ-साथ आने वाले वर्षों में भी इन नाटकों के बारे में अच्छी तरह से बातचीत कर सकेंगे.
    अपने माहौल को बदलें 
    एक ही कमरे में और एक ही डेस्क पर पढ़ने से आप थके हुए और निराश हो सकते हैं. कुछ स्टडीज बताती हैं कि हर रोज़ एक ही समय पर पढ़ना काफी अच्छा होता है लेकिन आपको समय-समय पर अपनी पढ़ाई करने की जगह जरुर बदल लेनी चाहिए. आप अपना पढ़ाई करने का कमरा बदल सकते हैं या फिर, किसी लाइब्रेरी या किसी कैफ़े में जाकर अपनी पढ़ाई कर सकते हैं.
    अगर आप बाहर जैसेकि, किसी बाग़, पार्क, टेरेस आदि में बैठकर पढ़ सकते हैं तो आपको जरुर बाहर जाकर पढ़ना चाहिए. बाहर खुली हवा में बैठकर पढ़ना एक बढ़िया प्रेरक फैक्ट है. अगर आप एक मोर्निंग पर्सन हैं तो आप अपने हाथ में किताब लेकर सुबह के उगते हुए सूरज को देखते हुए पढ़ने की कोशिश  सकते हैं.
    जो आपने सीखा है उसे अपने रोज़मर्रा के जीवन से जोड़ें 
    जब आप प्रोजेक्टाइल मोशन की पढ़ाई कर रहे हों तो आप कोई बॉल या पेपर रॉकेट उड़ाने के बारे में सोच सकते हैं. जब आप किसी स्क्वायर या किसी सर्कल के एरियाज के बारे में पढ़ें तो आप लॉन्स या स्टेडियम्स के बारे में सोच सकते हैं. जंग को हटाने के लिए सिरका या नींबू के रस का उपयोग क्यों किया जाता है?..... यह समझकर आप एसिड और बेसेज के विभिन्न संबंधों के बारे में स्टडी कर सकते हैं.
    जब आप विभिन्न कॉन्सेप्ट्स को अपनी रोज़मर्रा की गतिविधियों के साथ जोड़ते हैं तो उन्हें याद रखना बहुत आसान और काफी रोचक हो जाता है.
    हेल्दी ब्रेक्स लें 
    पढ़ने के साथ ही, आप जिन कामों को करना पसंद करते हैं, उन्हें करते रहना काफी महत्वपूर्ण होता है. आपनी हॉबी के लिए कुछ समय जरुर निकालें फिर चाहे वह हॉबी कोई गेम खेलना, म्यूजिक सुनना, पेंटिंग बनाना, डांस या फिर कोई नॉवेल पढ़ना ही क्यों न हो. जिस काम को करने में आपको ख़ुशी मिलती हो, वह काम अवश्य करें और अपने “ब्रेक टाइम” तक लगन और अनुशासन से पढ़ते रहें. अपने टेस्ट्स में अच्छा प्रदर्शन करने पर आप लंबे ब्रेक्स भी ले सकते हैं. 
    अगर आप इन टिप्स को फॉलो करेंगे तो आपको न केवल काफी ख़ुशी मिलेगी बल्कि आप कॉन्सेप्ट्स को ज्यादा अच्छे तरीके से याद कर सकेंगे. इसलिए, पढ़ो और पढ़ते हुए लो मज़े.
    साभार (जोश)
    लेखक -मनीष कुमार
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