Saturday, August 5, 2023

उपद्रव : देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरनाक

उपद्रव : देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरनाक

डॉ संदीप सिंहमार।
वरिष्ठ लेखक एवं स्वतंत्र टिप्पणीकार।

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    • भारत देश के संविधान के अनुसार देश के हर किसी व्यक्ति को अपनी बात कहने का हक है। इसे संविधान में अभिव्यक्ति की आजादी नाम के मौलिक अधिकार में शामिल भी किया गया है। पर इसका मतलब कहीं भी उपद्रव या आंदोलन के माध्यम से देश का माहौल बिगाड़ना नहीं है। कोई भी व्यक्ति अपनी बात शांतिपूर्ण तरीके से दो कह सकता है, लेकिन जब वही उपद्रव पर उतारू हो जाए तो उसके खिलाफ देश का कानून भी अपना काम करता है। इसी प्रकार संविधान में अपने अपने ड्यूटी एवं कर्तव्य भी निर्धारित किए गए हैं। देश की विधानपालिका जहां उच्च सदन राज्यसभा व निम्न सदन लोकसभा के माध्यम से कोई भी नया बिल्ल लाने या कानून बनाने का काम करती है तो कार्यपालिका का काम उसे लागू करना होता है। इसी के साथ साथ तीसरा स्थान न्यायपालिका को माना गया है। यदि देश में कहीं भी विधानपालिका व कार्यपालिका किसी भी प्रकार की गड़बड़ करती है तो ऐसी स्थिति में न्याय करने का काम देश की न्यायपालिका करती है। इसके अलावा मीडिया को चौथा स्तंभ माना गया है। चौथे स्तंभ का कर्तव्य सबके काम पर निगरानी रखते हुए लोगों के सामने सच्चाई पेश कर रहा होता है या जब ही कहीं भटकाव नजर आए तो ऐसी स्थिति में राह दिखाने का काम भी साहित्य या पत्रकारिता करती है। परंतु वास्तव में देश का चौथा स्तंभ कैसा कार्य कर रहा है। यह सबको पता है। देश की सर्वोच्च अदालत ने भी इलेक्ट्रॉनिक मीडिया द्वारा परोसी जाने वाली खबरों को लेकर टिप्पणी कर चुकी है। प्रिंट मीडिया हो या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया हमें ऐसी कोई भी सामग्री पेश नहीं करनी चाहिए, जिससे देश में कहीं भी भड़काऊ स्थिति पैदा हो। अब बात करते हैं देश के वर्तमान हालात विशेषकर मणिपुर व हरियाणा राज्य के हालातो पर। मणिपुर में जहां हाईकोर्ट के एक आदेश के बाद वहां के दो जातियों के बीच खूनी संघर्ष पिछले 3 महीनों से जारी है तो हरियाणा के मेवात जिले में भी पिछले 5 दिनों से एक धार्मिक यात्रा को लेकर दो धर्मों के लोगों के बीच तनाव बना हुआ है। यहां तक की हरियाणा का पूरा प्रशासनिक अमला पुलिस व पैरामिलिट्री फोर्स तैनात होने के बावजूद भी मेवात में स्थिति तनावपूर्ण चल रही है। तुरंत अन्य जिलों मे भी स्थिति काबू में होने का नाम नहीं ले रही है। मौका पाते ही उपद्रवी कहीं ना कहीं आगजनी की घटना को अंजाम दे देते हैं। हरियाणा की इस हिंसा में अब तक 2 होमगार्डों सहित सात लोगों की मौत भी हो चुकी है। उसके बावजूद भी शांति बहाली के लिए सरकार को पूरा जोर लगाना पड़ रहा है। ऐसी स्थिति में अकेली सरकार ही नहीं उनकी समाज के प्रबुद्ध नागरिकों को भी सामने आकर सरकार के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करना चाहिए। ताकि हिंसा की आग में जल रहे मेवात सहित विभिन्न जिलों में एक बार फिर से शांति बहाली हो सके। हिन्दू व मुस्लिम संप्रदाय के लोगों को भी स्वयं आगे आकर हिंसा की आग को बुझाने का कार्य करना चाहिए। यदि ऐसा नहीं होता है तो उपद्रव देश के लिए अच्छा संकेत नहीं है। देश में दो तरह की सुरक्षा व्यवस्था काम करती हैं। एक बाह्य सुरक्षा तो दूसरी आंतरिक सुरक्षा। यदि देश के अंदर रहने वाले दो संप्रदायों के लोग ही आपस में झगड़ते रहेंगे तो इससे भी देश की आंतरिक सुरक्षा को नुकसान पहुंचता है। जब-जब देश की आंतरिक सुरक्षा को नुकसान पहुंचता है तो इसका फायदा हमेशा पड़ोसी राज्य उठाते हैं। पड़ोसी मुल्क जो हमेशा इस तरह की घटनाओं के इंतजार में रहते हैं। उनको घुसपैठ करने या फिर लोगों को भड़काने का मौका मिल जाता है। भारत के मणिपुर में चल रहे जातीय संघर्ष व हरियाणा के मेवात में दो धर्मों के बीच चल रहे संघर्ष का मामला देश की सर्वोच्च अदालत में भी पहुंच चुका है। मणिपुर मामले में तो सुप्रीम कोर्ट को ने जहां खुद संज्ञान लेना पड़ा था। वही मेवात मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है। हालांकि इन दोनों मामलों में ही देश की सर्वोच्च अदालत सरकारों को शांति बहाली के ही आदेश दे रही है। पर ऐसी दिक्कत आनी ही नहीं चाहिए कि कानून व्यवस्था को कंट्रोल में लेने के लिए देश की सर्वोच्च अदालत को भी हस्तक्षेप करना पड़े। किसी भी प्रकार के आंदोलन, उपद्रव, जातीय संघर्ष, धर्मों के नाम पर झगड़े व बेरोजगारी का असर वास्तव में देश की आंतरिक सुरक्षा पर होता है। इन सभी मामलों पर राज्य व केंद्र सरकार को ध्यान देने की जरूरत है, ताकि देश की आंतरिक सुरक्षा को देश के शक्ति सौंदर्य  को विश्व स्तर पर कहीं भी नुकसान न पहुंचे। इस मामले में समय रहते गौर करने की जरूरत है। सरकार के साथ-साथ समाज के लोगों को भी विभिन्न प्रकार के गैर राजनीतिक संगठनों को भी बीच में आकर इस मामले का हल निकालना चाहिए। क्योंकि जब जब-इस तरह के संघर्ष उपद्रव होते हैं तो सत्तासीन सरकार का साथ विपक्ष कभी भी साथ नहीं देता। विपक्ष से ऐसी उम्मीद की भी नहीं जा सकती। हाँ सरकार से कोई गलती हो जाती है तो उस मुद्दे को उछालने का काम विपक्ष तुरंत करता है, लेकिन एक इंसानियत के नाते विपक्ष सहित सर्वदलीय नेताओं को सरकार का साथ देना चाहिए। ताकि भारत देश की आंतरिक सुरक्षा व गरिमा को कहीं भी ठेस ना पहुंचे।
    • ये लेखक के निजी विचार हैं।

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