हरियाणा में ग्रुप सी की भर्तियों के लिए हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग द्वारा आयोजित होने वाला कॉमन एलिजिबिलिटी टेस्ट अब 6 अगस्त को होगा। 6 अगस्त को हरियाणा के 5 जिलों में कैटेगरी नंबर 57 के उम्मीदवारों का होना है। जो कॉमन एलिजिबिलिटी टेस्ट कैटेगरी नंबर 56 का 5 अगस्त को आयोजित होना था, अब यह एग्जाम 7 अगस्त यानी सोमवार को पहले के ही परीक्षा केंद्रों में आयोजित किया जाएगा। उससे पहले देर रात तक पंजाब एंड हरियाणा हाई कोर्ट चंडीगढ़ की सिंगल बेंच में हुई सुनवाई की वजह से कैंडीडेट्स को किसी भी प्रकार की सूचना न मिलने के कारण उम्मीदवारों के बीच टेस्ट होगा या नहीं यह संशय बरकरार रहा। अधिकतर कैंडिडेट अपने निर्धारित परीक्षा केंद्रों पर एक दिन पहले ही पहुंच गए थे। लेकिन मामला हाईकोर्ट की सिंगल बेंच में पेंडिंग होने के कारण हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग रात्रि 10:00 बजे तक भी यह निर्णय नहीं ये स्का था कि 5 अगस्त को एग्जाम होगा या नहीं। बाद में परीक्षा स्थगित का नोटिस डाला गया। तब तक काफी देर हो चुकी थी। हाईकोर्ट की सिंगल बेंच के एग्जाम पर रोक लगाने के बाद हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग हाई कोर्ट की डबल बेंच में अपील के लिए पहुंच गया। लेकिन समय कम था। इस मामले की सुनवाई शनिवार सुबह करीब 12:00 बजे हुई। अब हाईकोर्ट की डबल बेंच ने कॉमन एलिजिबिलिटी टेस्ट से सिंगल बेंच द्वारा लगाई गई रोक तो हटा दी है लेकिन साथ ही यह भी कहा कि हाईकोर्ट की अनुमति के लिए ना इस टेस्ट का परिणाम घोषित नहीं किया जाएगा। दूसरी ओर पहले की योग्यता लिस्ट की जगह नई योग्यता लिस्ट के आधार पर यह टेस्ट आयोजित होगा। ज्ञात रहे कि सबसे हरियाणा सरकार ने कॉमन एलिजिबिलिटी टेस्ट के आधार पर हरियाणा में ग्रुप दी व सी की भर्तियां करने का ऐलान किया है। तब से लेकर अब तक यह भर्ती प्रक्रिया विवादों के घेरे में ही सही है। कभी सरकार द्वारा अपनाई जाने वाले योग्यता के क्राइटेरिया पर सवाल उठाए जा रहे हैं तो कभी सरकार द्वारा लिए जाने वाले मेंस टेस्ट पर। यह बात तो हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग के चेयरमैन पहले ही स्पष्ट कर चुके थे की स्थिति कुछ भी रहे कॉमन एलिजिबिलिटी टेस्ट स्थगित नहीं किया जाएगा। पर मामला पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट की सिंगल बेंच में अंतिम दिन तक पेंडिंग होने के कारण स्थिति स्पष्ट नहीं हो सकी। इस मामले में सरकार व हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग भी अपने किसी भी प्रकार के अंतिम निर्णय पर नहीं पहुंच सके। यही एक सबसे बड़ी वजह रही कि इस चूक के कारण प्रदेश भर के आवेदकों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ा। अब रविवार को सिर्फ कैटेगरी नंबर 57 के आवेदकों का ही एग्जाम होगा व सोमवार को कैटेगरी 56 के लिए एग्जाम आयोजित होगा। इसके लिए अलग से किसी भी प्रकार का रोल नंबर जारी नहीं किया जाएगा।
Saturday, August 5, 2023
हरियाणा में अब 6 व 7 अगस्त को होगा CET एग्ज़ाम, रोक हटी
हरियाणा में ग्रुप सी की भर्तियों के लिए हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग द्वारा आयोजित होने वाला कॉमन एलिजिबिलिटी टेस्ट अब 6 अगस्त को होगा। 6 अगस्त को हरियाणा के 5 जिलों में कैटेगरी नंबर 57 के उम्मीदवारों का होना है। जो कॉमन एलिजिबिलिटी टेस्ट कैटेगरी नंबर 56 का 5 अगस्त को आयोजित होना था, अब यह एग्जाम 7 अगस्त यानी सोमवार को पहले के ही परीक्षा केंद्रों में आयोजित किया जाएगा। उससे पहले देर रात तक पंजाब एंड हरियाणा हाई कोर्ट चंडीगढ़ की सिंगल बेंच में हुई सुनवाई की वजह से कैंडीडेट्स को किसी भी प्रकार की सूचना न मिलने के कारण उम्मीदवारों के बीच टेस्ट होगा या नहीं यह संशय बरकरार रहा। अधिकतर कैंडिडेट अपने निर्धारित परीक्षा केंद्रों पर एक दिन पहले ही पहुंच गए थे। लेकिन मामला हाईकोर्ट की सिंगल बेंच में पेंडिंग होने के कारण हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग रात्रि 10:00 बजे तक भी यह निर्णय नहीं ये स्का था कि 5 अगस्त को एग्जाम होगा या नहीं। बाद में परीक्षा स्थगित का नोटिस डाला गया। तब तक काफी देर हो चुकी थी। हाईकोर्ट की सिंगल बेंच के एग्जाम पर रोक लगाने के बाद हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग हाई कोर्ट की डबल बेंच में अपील के लिए पहुंच गया। लेकिन समय कम था। इस मामले की सुनवाई शनिवार सुबह करीब 12:00 बजे हुई। अब हाईकोर्ट की डबल बेंच ने कॉमन एलिजिबिलिटी टेस्ट से सिंगल बेंच द्वारा लगाई गई रोक तो हटा दी है लेकिन साथ ही यह भी कहा कि हाईकोर्ट की अनुमति के लिए ना इस टेस्ट का परिणाम घोषित नहीं किया जाएगा। दूसरी ओर पहले की योग्यता लिस्ट की जगह नई योग्यता लिस्ट के आधार पर यह टेस्ट आयोजित होगा। ज्ञात रहे कि सबसे हरियाणा सरकार ने कॉमन एलिजिबिलिटी टेस्ट के आधार पर हरियाणा में ग्रुप दी व सी की भर्तियां करने का ऐलान किया है। तब से लेकर अब तक यह भर्ती प्रक्रिया विवादों के घेरे में ही सही है। कभी सरकार द्वारा अपनाई जाने वाले योग्यता के क्राइटेरिया पर सवाल उठाए जा रहे हैं तो कभी सरकार द्वारा लिए जाने वाले मेंस टेस्ट पर। यह बात तो हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग के चेयरमैन पहले ही स्पष्ट कर चुके थे की स्थिति कुछ भी रहे कॉमन एलिजिबिलिटी टेस्ट स्थगित नहीं किया जाएगा। पर मामला पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट की सिंगल बेंच में अंतिम दिन तक पेंडिंग होने के कारण स्थिति स्पष्ट नहीं हो सकी। इस मामले में सरकार व हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग भी अपने किसी भी प्रकार के अंतिम निर्णय पर नहीं पहुंच सके। यही एक सबसे बड़ी वजह रही कि इस चूक के कारण प्रदेश भर के आवेदकों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ा। अब रविवार को सिर्फ कैटेगरी नंबर 57 के आवेदकों का ही एग्जाम होगा व सोमवार को कैटेगरी 56 के लिए एग्जाम आयोजित होगा। इसके लिए अलग से किसी भी प्रकार का रोल नंबर जारी नहीं किया जाएगा।
उपद्रव : देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरनाक
उपद्रव : देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरनाक
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- भारत देश के संविधान के अनुसार देश के हर किसी व्यक्ति को अपनी बात कहने का हक है। इसे संविधान में अभिव्यक्ति की आजादी नाम के मौलिक अधिकार में शामिल भी किया गया है। पर इसका मतलब कहीं भी उपद्रव या आंदोलन के माध्यम से देश का माहौल बिगाड़ना नहीं है। कोई भी व्यक्ति अपनी बात शांतिपूर्ण तरीके से दो कह सकता है, लेकिन जब वही उपद्रव पर उतारू हो जाए तो उसके खिलाफ देश का कानून भी अपना काम करता है। इसी प्रकार संविधान में अपने अपने ड्यूटी एवं कर्तव्य भी निर्धारित किए गए हैं। देश की विधानपालिका जहां उच्च सदन राज्यसभा व निम्न सदन लोकसभा के माध्यम से कोई भी नया बिल्ल लाने या कानून बनाने का काम करती है तो कार्यपालिका का काम उसे लागू करना होता है। इसी के साथ साथ तीसरा स्थान न्यायपालिका को माना गया है। यदि देश में कहीं भी विधानपालिका व कार्यपालिका किसी भी प्रकार की गड़बड़ करती है तो ऐसी स्थिति में न्याय करने का काम देश की न्यायपालिका करती है। इसके अलावा मीडिया को चौथा स्तंभ माना गया है। चौथे स्तंभ का कर्तव्य सबके काम पर निगरानी रखते हुए लोगों के सामने सच्चाई पेश कर रहा होता है या जब ही कहीं भटकाव नजर आए तो ऐसी स्थिति में राह दिखाने का काम भी साहित्य या पत्रकारिता करती है। परंतु वास्तव में देश का चौथा स्तंभ कैसा कार्य कर रहा है। यह सबको पता है। देश की सर्वोच्च अदालत ने भी इलेक्ट्रॉनिक मीडिया द्वारा परोसी जाने वाली खबरों को लेकर टिप्पणी कर चुकी है। प्रिंट मीडिया हो या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया हमें ऐसी कोई भी सामग्री पेश नहीं करनी चाहिए, जिससे देश में कहीं भी भड़काऊ स्थिति पैदा हो। अब बात करते हैं देश के वर्तमान हालात विशेषकर मणिपुर व हरियाणा राज्य के हालातो पर। मणिपुर में जहां हाईकोर्ट के एक आदेश के बाद वहां के दो जातियों के बीच खूनी संघर्ष पिछले 3 महीनों से जारी है तो हरियाणा के मेवात जिले में भी पिछले 5 दिनों से एक धार्मिक यात्रा को लेकर दो धर्मों के लोगों के बीच तनाव बना हुआ है। यहां तक की हरियाणा का पूरा प्रशासनिक अमला पुलिस व पैरामिलिट्री फोर्स तैनात होने के बावजूद भी मेवात में स्थिति तनावपूर्ण चल रही है। तुरंत अन्य जिलों मे भी स्थिति काबू में होने का नाम नहीं ले रही है। मौका पाते ही उपद्रवी कहीं ना कहीं आगजनी की घटना को अंजाम दे देते हैं। हरियाणा की इस हिंसा में अब तक 2 होमगार्डों सहित सात लोगों की मौत भी हो चुकी है। उसके बावजूद भी शांति बहाली के लिए सरकार को पूरा जोर लगाना पड़ रहा है। ऐसी स्थिति में अकेली सरकार ही नहीं उनकी समाज के प्रबुद्ध नागरिकों को भी सामने आकर सरकार के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करना चाहिए। ताकि हिंसा की आग में जल रहे मेवात सहित विभिन्न जिलों में एक बार फिर से शांति बहाली हो सके। हिन्दू व मुस्लिम संप्रदाय के लोगों को भी स्वयं आगे आकर हिंसा की आग को बुझाने का कार्य करना चाहिए। यदि ऐसा नहीं होता है तो उपद्रव देश के लिए अच्छा संकेत नहीं है। देश में दो तरह की सुरक्षा व्यवस्था काम करती हैं। एक बाह्य सुरक्षा तो दूसरी आंतरिक सुरक्षा। यदि देश के अंदर रहने वाले दो संप्रदायों के लोग ही आपस में झगड़ते रहेंगे तो इससे भी देश की आंतरिक सुरक्षा को नुकसान पहुंचता है। जब-जब देश की आंतरिक सुरक्षा को नुकसान पहुंचता है तो इसका फायदा हमेशा पड़ोसी राज्य उठाते हैं। पड़ोसी मुल्क जो हमेशा इस तरह की घटनाओं के इंतजार में रहते हैं। उनको घुसपैठ करने या फिर लोगों को भड़काने का मौका मिल जाता है। भारत के मणिपुर में चल रहे जातीय संघर्ष व हरियाणा के मेवात में दो धर्मों के बीच चल रहे संघर्ष का मामला देश की सर्वोच्च अदालत में भी पहुंच चुका है। मणिपुर मामले में तो सुप्रीम कोर्ट को ने जहां खुद संज्ञान लेना पड़ा था। वही मेवात मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है। हालांकि इन दोनों मामलों में ही देश की सर्वोच्च अदालत सरकारों को शांति बहाली के ही आदेश दे रही है। पर ऐसी दिक्कत आनी ही नहीं चाहिए कि कानून व्यवस्था को कंट्रोल में लेने के लिए देश की सर्वोच्च अदालत को भी हस्तक्षेप करना पड़े। किसी भी प्रकार के आंदोलन, उपद्रव, जातीय संघर्ष, धर्मों के नाम पर झगड़े व बेरोजगारी का असर वास्तव में देश की आंतरिक सुरक्षा पर होता है। इन सभी मामलों पर राज्य व केंद्र सरकार को ध्यान देने की जरूरत है, ताकि देश की आंतरिक सुरक्षा को देश के शक्ति सौंदर्य को विश्व स्तर पर कहीं भी नुकसान न पहुंचे। इस मामले में समय रहते गौर करने की जरूरत है। सरकार के साथ-साथ समाज के लोगों को भी विभिन्न प्रकार के गैर राजनीतिक संगठनों को भी बीच में आकर इस मामले का हल निकालना चाहिए। क्योंकि जब जब-इस तरह के संघर्ष उपद्रव होते हैं तो सत्तासीन सरकार का साथ विपक्ष कभी भी साथ नहीं देता। विपक्ष से ऐसी उम्मीद की भी नहीं जा सकती। हाँ सरकार से कोई गलती हो जाती है तो उस मुद्दे को उछालने का काम विपक्ष तुरंत करता है, लेकिन एक इंसानियत के नाते विपक्ष सहित सर्वदलीय नेताओं को सरकार का साथ देना चाहिए। ताकि भारत देश की आंतरिक सुरक्षा व गरिमा को कहीं भी ठेस ना पहुंचे।
- ये लेखक के निजी विचार हैं।
Thursday, August 3, 2023
राजनीति का दंगल नहीं, समाधान ढूंढिए
...ये वक्त सियासत का नहीं
Wednesday, August 2, 2023
मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना...
सियासत नहीं, समाधान चाहिए
डॉ. संदीप सिंहमार
वरिष्ठ लेखक एवं स्वतंत्र टिप्पणीकार
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मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना...अल्लामा इकबाल के मशहूर शेर की ये पंक्ति देश के वर्तमान हालातों पर बिल्कुल सटीक रही हैं । यह बात सौ फीसदी सही है कि दुनिया का कोई भी धर्म या मजहब आपस में लड़ाई-झगड़ा करना नहीं सिखाता। फिर भी यदि हम धर्म के नाम पर लड़ते झगड़ते हैं तो इसके जिम्मेदार हम खुद हैं। हमारे देश की राजनीति है व काफी हद तक आम जनता के आंख में कानों तक समाचार पहुंचाने वाले खबरची भी इसके जिम्मेदार हो सकते हैं। खास बात यह है कि जब भारत देश स्वतंत्र हुआ तो संविधान निर्मात्री सभा ने देश के पहले विधि मंत्री डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के नेतृत्व में एक संविधान तैयार किया। इस संविधान में भी भारत देश को धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र माना गया। इसका मतलब साफ तौर पर यह है कि भारत देश में एक नहीं बल्कि सभी धर्मों के लोगों का आदर सत्कार किया जाएगा। संत महापुरुषों ने भी ऐसा कहा है कि ना हिंदू बुरा है, ना मुसलमान बुरा है, बुराई पर जो उतर आए,वह इंसान बुरा है। इसलिए हम किसी भी एक धर्म को बुराई का प्रतीक नहीं मान सकते। पर यहां सबसे बड़ी सोचने और समझने की बात यह है कि जब जब देश में चुनाव होते हैं, तब सभी धर्मों को साथ लेकर चलने की बात होती है। लेकिन जब चुनाव समाप्त हो जाते हैं तो एक धर्म विशेष को उठाकर चलने की बात की जाती है। यही एक सबसे बड़ी वजह है कि धर्म के नाम पर लोगों के बीच में एक बड़ी खाई पैदा हो गई है। जिसे अब भर पाना सत्तासीन लोगों के लिए व आम लोगों के लिए भी आसान नहीं है। भारत ऋषि मुनियों की धरा रही है। किसी भी संत-महापुरुष, ऋषि-मुनि ने एक धर्म विशेष का समर्थन नहीं किया। सभी ने हमेशा सर्वधर्म संगम की बात कही। विश्व प्रसिद्ध महाकाव्य रामायण और महाभारत में भी किसी भी धर्म का विरोध नहीं किया गया बल्कि राक्षसी प्रवृत्ति के लोगों का विरोध दिखाया गया है। जब हमारे देश में सभी धर्मों का संगम देखने को मिलता हो तो ऐसी स्थिति में धर्म के नाम पर या जाति विशेष के नाम पर आखिर झगड़े होते क्यों? यह सबसे बड़ा सुलगता सवाल है? इसी सवाल के बीच आज हरियाणा का नुहं व देश का मणिपुर राज्य जल रहा है। सबसे बड़ी बात इस पूरे धार्मिक उन्माद को हमारे देश के राजनीतिक अपने-अपने परिदृश्य से देख रहे हैं। मामला चाहे मणिपुर का हो या हरियाणा का धर्म या जाति के नाम पर कहीं भी झगड़ा नहीं होना चाहिए। क्योंकि जब भी कभी ऐसा होता है तो नुकसान आखिर इंसानियत का व देश की अर्थव्यवस्था का होता है। मणिपुर की ही बात लेते हैं। मणिपुर के मामले में जब 2 महीने बाद भी 2 जाति विशेष के लोगों के बीच दंगे थमते नजर नहीं आए तो देश की सर्वोच्च अदालत ने इस मामले में हस्तक्षेप करना पड़ा। यदि राजनीतिक इच्छाशक्ति हो तो चाहे मणिपुर हो या हरियाणा का मेवात इन त्वरित मुद्दों को शांत किया जा सकता है। देश में धर्म तो अनेक हैं, लेकिन जब भी कभी झगड़े होते हैं तो विशेषकर हिंदू और मुस्लिम संप्रदाय के बीच होते हैं। सिर्फ एक किसान आंदोलन के दौरान सिख समुदाय के लोग 13 महीने तक दिल्ली की सरहदों पर किसानों की मांगों को लेकर डटे रहे। तब भी देशवासियों को याद होगा देश के राजनेताओं ने इन लोगों को भी खालिस्तानी तक करार दे दिया था। लेकिन जैसे ही पंजाब के चुनाव नजदीक आए तो जो पंजाब व हरियाणा के किसान जो मांग कर रहे थे, उन मांगों को मान लिया गया। उस वक्त सैकड़ों किसानों की मौत हुई थी। देखी और समझी जाए तो इन मौतों का आखिर जिम्मेदार कौन है? जवाब एक ही होगा देश के राजनीतिक। चाहे वह कुर्सी पर आसीन हो या फिर विपक्ष में अपनी रोटियां सेक रहे हो। चाहे पक्ष हो या विपक्ष जब देश पर कोई ऐसी विपत्ति आती है तो उस वक्त दोनों पक्षों को ऐसे अहम मुद्दों पर एक साथ आकर समस्या का समाधान निकालने की और आगे बढ़ना चाहिए। लेकिन हमारे देश की राजनीति कुछ और कहती है। हमारे देश की राजनीति ऐसे वक्त में भी सियासत करती है। जन संचार के विभिन्न साधनों समाचार पत्रों व टीवी चैनलों पर आकर आम जनता को गुमराह करने का काम करते हैं। यदि सच्चाई आम जनता के सामने आ जाए और देश की आम जनता जिस दिन राजनीति के मायने को समझ समझ जाए तो उस दिन अपने आप परिवर्तन दिखने शुरू हो जाएंगे। पर जिस दिन ऐसा होगा उस दिन राजनीति को पूछेगा कौन? हरियाणा के नूंह में सोमवार से उपद्रवियों का जो नंगा नाच चल रहा है, इसके लिए सीधे तौर पर प्रदेश की खुफिया एजेंसियों को जिम्मेदार माना जाना चाहिए। क्योंकि जब भी कभी कोई इस प्रकार का कार्यक्रम, यात्रा या समागम होता है तो सबसे पहले प्रदेश की खुफिया एजेंसियां अपनी रिपोर्ट प्रदेश सरकार के गृह मंत्रालय को देती हैं। उसी आधार पर इस तरह की यात्राएं निकालने की इजाजत मिलती है। यह छोटी सी सरकारी चूक एक बड़े हादसे का कारण बन गई। आज मेवात जिला जल रहा है। जिधर देखो उधर आग ही आग दिखाई दे रही है। लोगों की आंखें क्रोध से लाल हैं। हालांकि मामले को बढ़ता देख हरियाणा के मुख्यमंत्री, हरियाणा के डीजीपी,हरियाणा के गृह मंत्री के साथ-साथ केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने भी इस मामले की रिपोर्ट तलब की है। इतना ही नहीं 20 पैरामिलिट्री कंपनियों को इन इलाकों में तैनात किया गया है। फिर भी गुस्से की आग थमने का नाम नहीं ले रही है। जब यह मामला शांत होता दिखाई नहीं दिया तो आखिर मेवात में कर्फ्यू तक लगाना पड़ा। इंटरनेट सेवाएं बंद करनी पड़ी। इससे पहले धारा 144 लगाई गई। मेवात के साथ-साथ गुरुग्राम, रेवाड़ी, सोनीपत फरीदाबाद व पलवल सहित छह जिलों में धारा 144 लगानी पड़ी। लेकिन इससे पहले भी स्थिति को संभाला जा सकता था और अब भी इस हालात को काबू किया जा सकता है। लेकिन हर बार बात को हल्के में लिया जाता है। पिछले दिनों की याद होगी जब माइनिंग के एक मामले में हरियाणा पुलिस विभाग के एक डीएसपी को एक डम्फर के नीचे कुचलकर मौत की नींद सुला दिया गया था। उस वक्त भी जिला यही था। तब हरियाणा सरकार ने साफ तौर पर कहा था कि इस इलाके में अब सुरक्षा व्यवस्था बढ़ाई जाएगी। पर उसके बाद इस जिले को अपने हाल पर छोड़ दिया गया। अब सोमवार से धर्म के नाम पर इस कदर आग भड़क रही है कि उसकी आग पड़ोसी राज्यों तक भी पहुंच गई है। राजस्थान के भरतपुर जिले की तहसीलों में भी इंटरनेट व्यवस्था बंद की गई है। गुरुग्राम की एक मस्जिद पर हमला बोला गया। यहां भी एक व्यक्ति की मौत हो चुकी है। इसके अलावा अब तक हरियाणा सरकार के 2 होमगार्डों सहित कुल 5 लोगों की जहां मौत हो चुकी है। वहीं सरकारी संपत्तियों सहित निजी संपत्तियों का भी जमकर नुकसान पहुंचा है। लोगों को अपनी जान बचाने के लिए सरकार से जिंदगी की भीख मांगनी पड़ रही है। ऐसी स्थिति देश में नहीं होनी चाहिए, क्योंकि हमारा देश एक धर्मनिरपेक्ष देश है। जिस देश में सर्वधर्म संगम की बात की जाती हो, ऐसे देश में इस तरह के उपद्रव का कोई स्थान नहीं है। उपद्रवियों की कोई जाति या धर्म भी नहीं होता। ऐसे लोगों को किसी धर्म विशेष का न कहकर उन्हें सिर्फ उपद्रवी की संज्ञा देकर कड़ी से कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए, ताकि भविष्य में कभी भी इस प्रकार के आगजनी की घटनाएं देखने को ना मिले। दोनों धर्मों के जिम्मेदारों को भी अब सामने आकर इस क्रोध की अग्नि को बुझाने का काम करना चाहिए।
समाज के लिए सबसे ज्यादा खतरनाक धार्मिक उन्माद
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