कम उम्र वालों को भी होने लगा हाई ब्लड प्रेशर
रक्तचाप
आज बड़ी त्रासदी बन गया है। विशेषकर शहरों तथा महानगरों में इससे पीड़ित
लोगों की संख्या में वृद्धि होती जा रही है। इसके रोगियों की संख्या में
निरन्तर होती तीव्र वृद्धि से भी ज्यादा चिन्ताजनक बात यह है कि अब किशोर
और बच्चे भी इसकी चपेट में आने लगे हैं। आजकल रक्तचाप बढ़ने की शिकायत
15−16 वर्ष के किशोरों से लेकर 18−20 वर्ष के युवाओं में भी दिखाई देने लगी
है। विशेषज्ञों के अनुसार अब 18 वर्ष की आयु से ही हृदय रोग के लक्षण
दिखाई देने लगे हैं इसलिए जरूरी है कि विद्यार्थियों को परीक्षा के दिनों
में समुचित आराम मिले और साथ ही उन्हें चित्त के संतुलन के लाभ भी बताए
जाएं।
उच्च रक्तचाप, मधुमेह और दिल की बीमारी, हमारे
देश में तेजी से फैल रही है। यदि बढ़ती उम्र में ही बच्चे तनाव के शिकार
हो जाएं तो युवावस्था में उन्हें रक्तचाप घेर लेगा और अंततः वे हृदय रोग की
चपेट में आ जाएंगे। विशेषज्ञों का मानना है कि वर्ष 2020 तक भारत में हृदय
रोगियों की संख्या विश्व में सबसे ज्यादा हो जाएगी। डॉ. सुलेख गोयल के
अनुसार खान−पान में अनियमितता और तनाव के कारण ही मधुमेह के रोगियों की
संख्या विश्व में सबसे ज्यादा है। उनके अनुसार भारत के लगभग 20 प्रतिशत
कामकाजी लोग उच्च रक्तचाप के शिकार हैं। रक्तचाप के इन रोगियों में आधी
संख्या महिलाओं की है।
विशेषज्ञों के अनुसार उच्च
रक्तचाप एक धीमा जहर है जिसके लक्षण आसानी से पकड़े नहीं जाते इसलिए 18
वर्ष की आयु से ही रक्तचाप नपवाना शुरू कर देना चाहिए। यदि रक्तचाप ज्यादा
निकलता है तो तुरंत दवा शुरू करके हर दूसरे महीने रक्तचाप नपवाते रहना
चाहिए।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार भारत में
उच्च रक्तचाप पीड़ित सभी लोगों में से केवल 10 प्रतिशत लोगों का रक्तचाप ही
पूरी तरह नियंत्रित पाया जाता है। बढ़ती उम्र के बच्चों के लिए यह स्थिति
और भी खतरनाक है। विशेषज्ञों के अनुसार परीक्षाओं के दिनों में पढ़ाई का
दबाव और बेहतरीन परिणाम लाने की होड़ विद्यार्थियों में तनाव बढ़ाती है।
दूसरी ओर फास्टफूड, टीवी तथा कम्प्यूटर के इस दौर में बच्चों का आहार
प्रायः गरिष्ठ खाद्य पदार्थों का मेल होता है परन्तु उनकी शारीरिक
गतिविधियां बहुत ही कम होती हैं, जोकि लगातार घटती भी जा रही हैं। परीक्षा
के दिनों में दिन−रात एक ही स्थान पर बैठकर पढ़ने के कारण बच्चों की
शारीरिक गतिविधियां लगभग समाप्त हो जाती हैं। ऐसी स्थिति में परीक्षा का
तनाव बच्चों का रक्तचाप बढ़ा सकता है।
स्थिति तब और
भी बिगड़ सकती है जबकि बच्चे पूरी−पूरी रात जागकर पढ़ाई करने और सुबह बिना
आराम किए परीक्षा देने जाने को जोखिम उठाते हैं। इस स्थिति से बचने के लिए
बच्चों के माता−पिता को चाहिए कि वे बच्चों को पढ़ाई के बीच में थोड़ी
चहलकदमी करने और कम से कम प्रतिदिन पांच छह घंटे की नींद लेने को
प्रोत्साहित करें। बच्चों को स्ट्रैस मैनेजमेंट भी सिखाया जाना चाहिए जिससे
तनाव उन पर हावी न हो सके। साथ ही बच्चों को पूरे साल नियमित पढ़ाई करने
की आदत डालनी चाहिए ताकि परीक्षा के समय वे दबाव में न आ जाएं।
परीक्षा
के दिनों में अनाप−शनाप खाने से भी बचना चाहिए। साथ ही नमक कम खाना चाहिए।
सिगरेट तथा शराब के सेवन से भी बचना चाहिए क्योंकि वैज्ञानिक जांच के
अनुसार हर सिगरेट पीने के बाद रक्तचाप 5 से 10 मिलीलीटर बढ़ जाता है। उच्च
रक्तचाप के रोगियों को यह भी चाहिए कि यदि उनका वजन ज्यादा हो तो उसे घटाने
की निरन्तर कोशिश करते रहें।
रक्तचाप को काबू में
रखने के लिए महंगी दवाओं का सेवन ही जरूरी नहीं है अपितु दशकों से इसके
इलाज में प्रयोग होने वाली डायाटाइड आदि सस्ती दवाएं भी काफी असरदार होती
हैं। ये दवाएं भी रक्तचाप को नियंत्रित रखने और रोगी को दिल की बीमारी से
बचाने में सक्षम होती हैं। उच्च रक्तचाप और दिल की बीमारी को जल्दी पकड़ने
और उसकी रोकथाम के उपाय अब आसान हैं तथा सभी स्थानों पर उपलब्ध भी हैं।
दिल
की धमनियों में खून का थक्का जमने का प्रभावशाली इलाज अब एंजियोप्लास्टी
के जरिए धमनी के प्रभावित स्थान में दवा में लेप वाला स्टेंट लगाकर किया
जाता है। स्टेंट पर कैंसररोधी दवा का लेप किया जाता है और उससे स्टेंट के
ऊपर गाद नहीं जमता। दमा ओर जोड़ों के दर्द में भी स्टेंट पर संबंधित दवा का
लेप करके उसे धमनी में रुकावट की जगह बैठा देने से बार−बार इनकी दवा नहीं
खानी पड़ती। इससे दिल की बाईपास सर्जरी की परेशानी भी नहीं उठानी पड़ती।
साभार
वर्षा शर्मा
नई दिल्ली
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