मुंबई हमले का दोषी था अजमल आमिर कसाब ,पाकिस्तान के ओकारा जिले का निवासी था
बी बी सी हिंदी से साभार
शिंदे के अनुसार गृहमंत्रालय ने कसाब की दया याचिका नामंज़ूर करने की सिफ़ारिश 16 अक्तूबर को राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के पास भेजी थी और राष्ट्रपति ने कसाब की दया याचिका को ख़ारिज करने संबंधी फ़ाइल पांच नवंबर को वापस गृहमंत्रालय को भेज दी थी.शिंदे ने बताया कि सात नवंबर को उन काग़ज़ात पर हस्ताक्षर करने के बाद उन्होंने आठ नवंबर को उन्हें महाराष्ट्र सरकार के पास भेज दिए थे.शिंदे के अनुसार आठ तारीख़ को ही इस बात का फ़ैसला ले लिया गया था कि 21 नवंबर को पुणे की यरवडा जेल में कसाब को फांसी दी जाएगी.
दफ़ना दिया गया
कैसे हुआ फ़ैसला
- 16 अक्तूबर,2012: गृहमंत्रालय ने कसाब की दया याचिका नामंज़ूर की.
- 05 नवंबर: राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने दया याचिका ख़ारिज की.
- 07 नवंबर: गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने उनपर दस्तख़्त किए.
- 08 नवंबर: गृहमंत्रालय ने फ़ाइल महारष्ट्र सरकार को भेजी.उसी दिन कसाब को 21 नवंबर को फांसी देने का निर्णय कर लिया गया.
- 19 नवंबर: कसाब को मुंबई के आर्थर रोड जेल से पुणे के यरवडा जेल ले जाया गया.
- 21 नवंबर: सुबह साढ़े सात बजे यरवडा जेल में फांसी दी गई
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण के अनुसार कसाब के शव को यरवडा जेल परिसर में ही दफ़ना दिया गया है.
साल 2008 में नवंबर की 26 तारीख़ को कसाब अपने 10 साथियों के साथ समुद्र के रास्ते मुंबई आया था.
उन लोगों ने शिवाजी रेलवे स्टेशन, ताज होटल और ट्राइडेंट होटल समेत शहर के कई इलाक़ों को निशाना बनाया था.
इस हमले में कुल 166 लोग मारे गए थे और सैंकड़ों अन्य घायल हुए थे. इनमें कई पुलिस अधिकारी और विदेशी भी शामिल थे.
पुलिस और एनएसजी कमांडो की जवाबी कार्रवाई में कसाब के नौ साथी मारे गए थे जबकि वो पकड़ा गया था.
फांसी पर राजनीति भी शुरू
लंबी कानूनी प्रक्रिया और लगभग चार साल के इंतज़ार के बाद कसाब को फांसी दी गई. लेकिन इसको राजनीतिक रंग भी दिया जा रहा है.शीतकालीन सत्र से एक दिन पहले कसाब को फांसी दिए जाने को कई विश्लेषक सरकार की उस कवायद का हिस्सा मान रहे हैं जिसके जरिए उसने विपक्ष की रणनीति पर पानी फ़ेर दिया है.
दूसरी ओर विपक्ष अब नए मुद्दे तलाशने में जुट गया है. गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्विट किया, “अफ़ज़ल गुरू का क्या होगा, जिसने हमारे जनतंत्र के मंदिर – संसद भवन – पर 2001 हमला किया था. उसका अपराध कसाब के अपराध से कई साल पहले किया गया था.”
हालाँकि विदेशमंत्री सलमान खुर्शीद ने मीडिया से बात करते हुए उन्होंने कहा, “मैं ऐसी बातों का जवाब देना भी उचित नहीं समझता. (जो लोग ऐसी बातें कह रहे हैं) क्या वो चाहते थे कि कसाब को फाँसी न दी जाती.”
'यही अंजाम होना था'
कसाब को फांसी दिए जाने पर पाकिस्तान में भी कोई ख़ास हलचल नहीं दिखी है.पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता मोआज्जम अली ख़ान ने अपनी प्रतिक्रिया में कसाब का ज़िक्र किए बिना कहा है, "हम किसी भी तरह के आतंकवादी हरकतों की निंदा करते हैं और इसके ख़िलाफ़ लड़ रहे देशों का सहयोग करने को तैयार हैं."वहां के ज़्यादातर राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक भी उन्हें भारत सरकार के इस कदम का इंतज़ार था.
राजधानी इस्लामाबाद स्थित एक और वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक एहतेशामुल हक़ के अनुसार आम पाकिस्तानी में इसको लेकर कोई ख़ास दिलचस्पी नहीं है. उनके मुताबिक़ ज़्यादातर लोगों का यही मानना है कि कसाब ने जो किया था उसकी यही अंजाम होना था.एहतेशामुल हक़ का कहना है कि आम पाकिस्तानी नागरिकों को लगता है कि मुंबई पर हमले के कारण पाकिस्तान और भारत के रिश्ते और ख़राब हो गए हैं और अब जबकि कसाब को फांसी दे दी गई है तब हो सकता है कि भारत और पाकिस्तान के संबंध थोड़े बेहतर हों.
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