Thursday, August 25, 2011

समाजसेवी अन्ना हजारे के बारे में मैं भी कुछ कहूँ ?

क्या शांतिपूर्ण आंदोलन करने वाले को गिरफ्तार करना सही है?

हिसार।
देश की राजधानी दिल्ली में 16 अगस्त मंगलवार की सुबह दिल्ली पुलिस ने जब प्रभावी लोकपाल बिल की मांग को लेकर शांतिपूर्ण आंदोलन करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता गांधीवादी अन्ना हजारे को गिरफ्तार कर गुलामी के दिनों की याद दिला दी। अन्ना का कसूर सिर्फ इतना था कि उसने सख्त लोकपाल बिल को लागू करवाने को लेकर 16 अगस्त से दिल्ली के जेपी पार्क में आंदोलन कर अनशन शुरू करने की बात कही थी। दिल्ली पुलिस ने अनशन करने के लिए सशर्त अनुमति देने की बात कही, लेकिन उनकी गिरफ्तारी के बाद देश में उनके समर्थकों के बढ़ते आक्रोश को देखते हुए दिल्ली पुलिस ने अन्ना हजारे को रामलीला मैदान में बिना किसी शर्त के अनशन की अनुमति भी दे दी। अन्ना हजारे व साथियों की गिरफ्तारी के बाद राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने
दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी कर गिरफ्तारी का कारण पूछा। दूसरी तरफ देश में अन्ना के समर्थन में चले आंदोलन के दबाव में अन्ना को जेल से रिहा करने का फैसला लिया गया। लेकिन अन्ना हजारे ने अनशन की अनुमति मिलनेके बाद ही जेल छोड़ी। ये दिल्ली पुलिस के मुंह पर करारा तमाचा था।
अन्ना के समर्थन में हुआ देशभर में आंदोलन
दिल्ली पुलिस ने अन्ना हजारे व साथियों को गिरफ्तार कर जब तिहाड़ जेल भेजा तो देश के विभिन्न संगठनों , राजनीतिक दलों व युवाओं का खून खौल उठा। पल भर में अन्ना के समर्थन में देश भर में आंदोलन खड़ा हो गया।
यदि गुलामी के दिनों की याद करें तो 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर में जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद देशभर में
आंदोलन हुए थे। 23 मार्च 1931 में जब ब्रिटिश हुकूमत ने क्रांतिकारी शहीद भगतसिंह, राजगुरू व सुखदेव को फांसी पर लटकाया था तो उस वक्त भी देश के नौजवानों ने सरकार के खिलाफ आंदोलन चलाया था, ठीक उसी तरह एक लंबे अंतराल के बाद जब 16 अगस्त 2011 को अन्ना हजारे को गिरफ्तार कर तिहाड़ जेल भेजा गया तो देश भर में आंदोलन खड़ा हो गया। बच्चे, बूढ़े, जवानों व महिलाओं ने हाथों में तिरंगा झण्डा लेकर दिल्ली सरकार व केंद्र सरकार के खिलाफ दहाड़ लगाई। सोचने की बात है कि देश में शांतिपूर्ण आंदोलन करने वालों को तो जेल भेजा जाता है जबकि सरेआम उपद्रव मचाने वालों को टोका भी नहीं जाता। वर्ष 2010 व 2011 में हरियाणा व उत्तरप्रदेश में एक समुदाय विशेष के लोगों ने आरक्षण व मिर्चपुर कांड के नाम पर रेलवे मार्गों को रोका था, तब सरकार व प्रशासन ने वहां कार्रवाई करने की जहमत भी नहीं उठाई। ये सोचने का विषय है।

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